उत्सव एवम महोत्सव मनाने से भगवान की कृपा मिलती है-त्रिदंडी स्वामी
श्री कृष्ण जन्म महा महोत्सव का शानदार आयोजन सम्पन्न
कार्यक्रम में पधारे गायकों ने बिखेरा सुरों का जादू

गाजीपुर जनपद के श्री नागेश्वर नाथ धाम ऊंचाडिह में गंगा पुत्र श्री त्रिदंडी स्वामी जी के सानिध्य में श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया इसमें क्षेत्रीय भोजपुरी कलाकारों द्वारा भजन कीर्तन एवं रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गई।पूरा मंदिर परिसर श्रोताओं से खचाखच भरा था।इस मौके पर भगवान कृष्ण के बाल रूप की सुंदर झांकी भी निकाली गयी थी।इस मौके पर गंगा पुत्र त्रिदंडी महाराज ने अपने मुखारबिंद से ज्ञान एवं वैराग्य की कथामृत की वर्षा करते हुए कहा की हम मनुष्यों को अपने आचरण एवं व्यवहार से शिक्षा देने के लिए ही भगवान का इस जगत में अवतार होता है।उत्सव एवम महोत्सव मनाने से भगवान की कृपा मिलती है।
श्रीकृष्ण अवतार के बारे में श्रोताओं को समझाते हुए त्रिदंडी स्वामी ने कहा की
द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया।
कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
गंगा पुत्र ने श्रोताओं से कहा की श्री कृष्ण जन्म के कई कारण है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। गीता के इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अवतार का रहस्य बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे पार्थ संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ जाता है तब-तब धर्म की पुर्नस्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं। द्वापर युग में क्षत्रियों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी वह अपने बल के अहंकार में देवताओं को भी ललकारने लगे थे। इसके अलावा हिरण्यकश्य और हिरण्याक्ष ने रूप बदलकर धरती पर जन्म लिया था जिनका अंत करने के लिए भगवान विष्णु को स्वयं अवतार लेना था। इनके अलावा और भी कई कारण थे जिनके कारण भगवान को द्वापर के अंत में अवतार लेना पड़ा।
हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का धरती पर जन्म

भगवान श्रीकृष्ण का परमशत्रु कंस पूर्वजन्म में हिरण्यकश्यप था। भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के द्वरपाल जय और विजय शाप के कारण बार-बार असुर रूप में जन्म ले रहे थे। भगवान विष्णु ने इन्हें शाप से मुक्ति के लिए वरदान दिया था कि जब भी तुम जन्म लोगो तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों होगी और तुम्हारा उद्धार होगा। कंस ने धरती पर जन्म लेकर धरती पर हाहाकार मचा रखा था। इसके अत्याचारपूर्ण शासन से साधु-संत कष्ट पा रहे थे। दूसरी ओर शिशुपाल जो पूर्वजन्म में हिरण्याक्ष था वह भी धरती पर आ चुका था। इन दोनों को मुक्ति प्रदान करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अवतार लिया।
राधा का शाप बना कृष्ण अवतार का कारण
ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक कथा है कि एक बार देवी राधा श्रीकृष्ण से रूठकर गोलोक से कहीं चली गईं। अवसर का लाभ उठाकर राधा की सखी विरजा श्रीकृष्ण के समीप आ गईं। इसी बीच राधा का गोलोक में आगमन हुआ और उन्होंने विरजा को श्रीकृष्ण के समीप देखकर दोनों को भला बुरा कहने लगीं। विराजा वहां से तुरंत नदी रूप धारण करके चली गईं। श्रीकृष्ण पर नाराज होते हुए देवी राधा को देखकर सुदामा नाम के गोप से सहन नहीं हुआ और उन्होंने देवी राधा के क्रोध को शांत करने के लिए उन्हें समझाने का प्रयास किया। लेकिन इससे देवी राधा शांत होने की बजाय और उग्र हो गईं। देवी राधा ने सुदामा को शाप दे दिया कि वह असुर बनकर धरती पर चले जाएं। सुदामा भी क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाए और देवी राधा को शाप दे दिया कि आप भी गोलोक से पृथ्वी पर चली जाएं और कुछ समय तक आपको भी श्रीकृष्ण से विरह का दुख भोगना पड़े। श्रीकृष्ण ने देवी राधा को समझाया कि चिंता ना करें यह पूर्व निर्धारित है कि आपको पृथ्वी पर अवतार लेना है, आपके साथ मैं भी पृथ्वी पर अवतार ग्रहण करूंगा जिससे सुदामा का शाप भी फलेगा और हमारा साथ भी बना रहेगा।
नारद का शाप

त्रिदंडी स्वामी ने कहा की भागवत एवं शिव पुराण में एक कथा है कि नारद मुनि के मन में एक बार विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुई। मोह में फंसे नारद मुनि भगवान विष्णु के पास हरि के समान रूप मांगने पहुंच गए। भगवान विष्णु ने ही नारद के अहंकार को तोड़ने के लिए सारी लीला रची थी इसलिए उन्होंने तथास्तु कह दिया। नारद मुनि विवाह की इच्छा से स्वयंवर में पहुंचे लेकिन कन्या ने उनकी ओर देखा तक नहीं। निराश होकर नारद मुनि लौट रहे थे तो उन्होंने जल में अपना प्रतिबिंब देखा। नारद मुनि का चेहरा बंदर के समान था। भगवान विष्णु पर क्रोधित होकर नारद मुनि बैकुंठ पहुंचे। नारद मुनि ने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मुझे बंदर का रूप दिया है जिसकी वजह से मेरा विवाह नहीं हो पाया। मैं जिस विरह वेदना को महसूस कर रहा हूं आप भी उस वेदना को महसूस करेंगे। नारद मुनि ने विष्णु भगवान को शाप दे दिया कि आपको धरती पर अवतार लेना होगा और देवी लक्ष्मी से विरह का कष्ट भोगना होगा। नारद मुनि के इसी शाप के कारण भगवान विष्णु को रामावतार में देवी सीता का वियोग और कृष्णावतार में देवी राधा का वियोग सहना पड़ा।
कलियुग का आरंभ
ईश्वरीय विधान है कि सभी युग के अंत में भगवान का अवतार होता और वह धर्म की स्थापना करते हैं। इसके बाद चल रहा युग समाप्त होता है और नया युग आरंभ होता है। द्वापर में धरती महान योद्धाओं की शक्ति से दहल रही थी। जनसंख्या का भार भी काफी हो गया था। अगर उस युग के योद्धाओं का अंत नहीं होता तो धरती पर शक्ति का असंतुलन हो जाता। शक्ति के संतुलन और नए युग के आरंभ के लिए श्रीकृष्ण ने अवतार धारण किया। महाभारत का महायुद्ध शक्ति के संतुलन और धर्म की स्थापना के लिए किया गया था जिसकी पटकथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने लिखी थी। महायुद्ध से ही कलियुग के आगमन की आहट शुरू हो गई।
श्री कृष्ण जन्म महामहोत्सव में श्री रामचरित दास जी के द्वारा कथा के माध्यम एवं अनेक कलाकारों के द्वारा भगवान के सुंदर भजनों का लोगों ने आनंद लिया।जन्म महामहोत्सव में शामिल होने के लिए यूपी बिहार के अनेक गांव से लोगों के आने का तांता लगा रहा।लोगों ने पहुंच कर भगवान का दर्शन एवं संत श्री का दर्शन किया।