क्यों व कब से पुन: प्रारंभ हुआ चिता भस्म की होली

रगंभरी एकादशी के दुसरे दिन वाराणसी में महामशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है।
चिता भस्म की होली।

सुबह से भक्त जन दुनिया की दुर्लभ, चिता भस्म से खेली जाने वाली होली की तैयारी में लग जातेहैं। और जब समय आता है बाबा के मध्याह्न स्नान का उस समय मणिकर्णिका तीर्थ पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है।
(यह कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैं इनके स्नान के बाद सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुन्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वह पुन्य बांटते हैं)
अंत बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते है। वर्षों की यह परम्परा अनादि काल से यहा भव्य रूप से मनायी जाती रही हैं।
इस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने जो पिछले 20 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाया।
गुलशन कपूर ने इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा की काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना(विदाई) करा कर अपने धाम लाते हैं जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते है और रंग का त्योहार होली का प्रारम्‍भ माना जाता है, इस उत्सव में सभी शामिल होते हैं जैसे देवी, देवता,यछ,गन्धर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते हैं वो हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियाँ जिन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा है। लेकिन बाबा तो बाबा हैं वो कैसे अपनो की खुशियों का ध्यान नहीं देते अंत सब का बेडा पार लगाने वाले शिव शंम्भु उन सभी के साथ चिता भस्म की होली खेलने मशान आते हैं और उस दिन से ही सम्पूर्ण विश्व को प्रंश्नता, हर्ष-उल्लास देने वाले इस त्योहार होली का आरम्भ होता हैं जिसमें दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।

चुकी इस पारंपरिक उत्सव को काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओ के बीच मनाया जाता हैं जिसे देखने दुनिया भर से लोग काशी आते हैं। और इस अद्भुत,अद्वितीय,अकल्पनीय होली को देखकर,खेलकर दुनिया की अलौकिक शक्तियों के बीच अपने को खड़ा पाते हैं और जीवन के सास्वत सत्य से परिचित होकर बाबा में अपने को आत्मसात करते हैं। इस आयोजन में गुलशन कपूर के द्वारा बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली ( शिव शक्ति ) का मध्याह्न आरती कर बाबा व माता को चिता भस्म व गुलाल चढाया जाता है। और होली प्रारंभ किया जाता है जिससे पुरा मंदिर प्रांगण और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है।

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