मंत्री गिरिराज सिंह के ट्वीट का कमाल, कुम्हार को मिला सम्मान ।

सही नीयत और प्रतिबद्धता से किए गए काम में सफलता जरूर मिलती है। अब गाजीपुर के सिद्धार्थ के खुरपी प्रोजेक्ट को ही ले लीजिए। सटीक लक्ष्य और परमार्थ का उद्देश्य रख सिद्धार्थ आगे बढ़े तो आज खुरपी की सफलता के किस्से दिल्ली तक पहुंचे और मोदी सरकार के कद्दावर मंत्री गिरिराज सिंह भी इसकी दिल खोल तारीफ करते हैं। वो कहा जाता है न कि संगत से गुण होत है और संगत से गुण जात। तो सिद्धार्थ की संगत ने उनके साथ जुड़े लोगों के लिए भी तरक्की के रास्ते खोले हैं और इस कड़ी में नया नाम शामिल हुआ है मोछू कुम्हार का।
आपको बता दें कि पिछले बुधवार को समाजसेवी सेवी सिद्धार्थ राय ने नई दिल्ली के कृषि भवन में केंद्रीय पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह से भेंट की थी। वैसे तो आजकल गुलदस्ता और बुके देने का चलन है, लेकिन इस मुलाक़ात के दौरान सिद्धार्थ अपने “खुरपी गाँव” में बने मिट्टी के सामान और खिलौने लेकर गये थे। इस देसी अंदाज को देखकर और मिट्टी से जुड़े प्रतीक चिह्न पाकर मंत्री गिरिराज सिंह बहुत खुश हुए और खिलौनों की तारीफ़ की। सिर्फ़ यही नहीं, उसके बाद एक ट्वीट के माध्यम से भी उन्होंने प्रशंसा करते हुए फ़ोटो भी डाली। सिद्धार्थ ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट ककर लोगों को बताया कि खिलौनों की तारीफ़ कृषि भवन में कैसे की गयी। इसका नतीजा मोछू कुम्हार के जीवन में खुशियां लेकर आया। इन खिलौनों को बनाने वाले मोछू कुम्हारजब रविवार को खुरपी पर अपनी दुकान लगाई तो मिलने वालों का हुजूम सा लग गया। सभी लोग उनसे मिट्टी के खिलौने बनाने सीखने लगे और उनकी मेहनत के लिए पैसे भी देना शुरू कर दिये।

अब मोछू कुम्हार की कहानी भी जान ही लीजिए
मोछू कुम्हार को मज़दूर से वापस कुम्हार बनाने का श्रेय भी सिद्धार्थ राय को ही जाता है। मोछू कुम्हार की पहली मुलाक़ात सिद्धार्थ से तब हो गयी जब वो मज़दूरी का काम माँगने उनके यहाँ पहुँचे। सिद्धार्थ ने बाक़ी मज़दूरों के साथ उनको काम करते देखा तो वो कुछ अलग से दिखे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी बड़ी बड़ी मूँछें थीं। फिर सिद्धार्थ ने किसी से पूछा कि इनकी तो मूँछ बड़ी शानदार है , कौन हैं यह ? तब लोगों ने बताया कि यह कुम्हार हैं। मिट्टी का सामान अब बिकना बंद हो गया है तो यह मज़दूरी करते हैं और अपने परिवार को पालते हैं। तब सिद्धार्थ ने इनसे मुलाकात की और चकरी को खुरपी पर लाने को कहा। अगले दिन मोछू कुम्हार अपनी चखरी लेकर पहुँच गये।
यहां लोग मिट्टी के बर्तन इत्यादि बनाना सीखने आने लगे। फिर सिद्धार्थ ने मिट्टी के बर्तन उनसे बनवा कर ख़रीदना शुरू कर दिया और लोगों को अपने रेस्ट्रॉंट पर मिट्टी के बर्तन में खाना परोसना शुरू करवा दिया। लोगों के लिए भी मिट्टी के बर्तन में खाने का सुख नया था और यह देसीपन लोगों को पसंद भी आया। फिर एक दिन सिद्धार्थ ने मिट्टी के खिलौने को मोछू कुम्हार को दिखाया और पूछा आप ऐसा बना लेंगे? तो झट से अपनी चकरी पर मोछू कुम्हार ने वैसा ही खिलौना ढाल दिया । अब सिद्धार्थ को दिल्ली केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह व अन्य लोगों से मिलने जाना था तो सिद्धार्थ अपने साथ खिलौनों को लेते गये और गिरिराज सिंह को वही भेंट किया। गिरिराज सिंह के लिए भी यह एकदम अलग था की उन्हें मिट्टी के खिलौने मिले। उन्होंने इसकी खूब प्रशंसा की। सिद्धार्थ की यह छोटी सी पहल एक कुम्हार को उसका रोज़गार वापस दिला गयी और एक मंत्री की मात्र प्रशंसा उस कुम्हार को कहाँ से कहाँ पहुँचा गयी। किसी ने सच ही कहा है कि हमारे छोटे छोटे प्रयास भी अक्सर बहुत बड़ी लकीर खींच जाते हैं।