आज के विद्यार्थियों के लिए सुभाष चंद्र बोस जी का जीवन प्रेरणा का मंत्र है-डा०प्रीति सिंह

सत्यदेव इंटरनेशनल स्कूल में पराक्रम दिवस के रूप में मनाई गई सुभाष चंद्र बोस जयंती

गाजीपुर जनपद के सत्यदेव इंटरनेशनल स्कूल गाधिपुरम (बोरसिया) फदनपुर गाजीपुर के तत्वाधान में सुभाष चंद्र बोस की जयंती “पराक्रम दिवस”के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाई गई ।
इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि “सत्यदेव ग्रुप आफ कॉलेजेज” की प्रशासनिक निदेशक डॉ प्रीति सिंह ने सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा पुष्पार्चन किया।डॉ प्रीति सिंह ने अपने संबोधन में सुभाष चंद्र बोस के जीवन और संघर्ष पर विस्तृत प्रकाश डाला।उन्होंने कहा,”भारत के वीर सपूत सुभाष चंद्र बोस जी अपने व्यक्तिगत जीवन में भी कभी हार मानने वालों में से नहीं थे । अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उन्होंने संघर्ष किया और विपरीत परिस्थितियों में भी अपने शौर्य का परचम लहराया ।” उन्होंने बताया कि,”किस तरह स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भी इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।

आज के विद्यार्थियों को उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए । आगे उन्होंने कहा,”49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया। किसी प्रकार स्कॉटिश चर्च कॉलेज में उन्होंने प्रवेश तो ले लिया किन्तु मन सेना में ही जाने को कह रहा था। खाली समय का उपयोग करने के लिये उन्होंने टेरीटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में प्रवेश पा गये। फिर ख्याल आया कि कहीं इण्टरमीडियेट की तरह बीए में भी कम नम्बर न आ जायें सुभाष ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।
पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। सो उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली।”
आज के विद्यार्थियों के लिए सुभाष चंद्र बोस जी का जीवन वह प्रेरणा का मंत्र है जिसे पढ़कर अपने व्यक्तिगत जीवन को सार्थक कर सकते हैं,और राष्ट्र के लिए बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं ।

सत्यदेव डिग्री कॉलेज के निदेशक श्री अमित सिंह रघुवंशी ने सुभाष चंद्र बोस जी के भारतीय नायकत्व को लेकर कहा कि,”भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों में जो नायकत्व सुभाष चंद्र बोस जी का रहा कि एक ऐसा समय भी था, जब महात्मा गांँधी के प्रतिनिधि पट्टाभिसीता रमैया को हराकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे । अगर भारतीय राजनीति की बागडोर सुभाष चंद्र बोस जी के हाथों में होती तो शायद भारत और पहले ही स्वतंत्र हो गया होता, और आज की परिस्थितियां भी कुछ विशेष होती ।” उन्होंने कहा कि,”आज युवाओं को उनके जीवन से प्रेरणा लेने की जरूरत है ।

सत्यदेव ग्रुप आफ कॉलेजेज के काउंसलर डॉ दिग्विजय उपाध्याय ने समस्त अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

About Post Author