June 19, 2025

वर्तमान का कर्म ही भविष्य का भाग्य बनता है-फलाहारी बाबा

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वर्तमान का कर्म ही भविष्य का भाग्य बनता है-फलाहारी बाबा

 

गाजीपुर जनपद के चंडी माता मंदिर ढढ़नी में श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हुए अयोध्या धाम से पधारे मानस मर्मज्ञ भागवत वेत्ता श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री शिव राम दास जी फलाहारी बाबा ने कहा कि जो आलसी होते हैं वह भाग्यहीन हो जाते हैं। भाग्य के भरोसे पर कर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। समुद्र मंथन से निकाला विष भगवान शिव को तथा लक्ष्मी भगवान विष्णु को मिली यह भाग्य का फल है ।परंतु कर्म से भाग्य का निर्माण होता है वर्तमान का कर्म ही भविष्य का भाग्य बनता है ।समस्त पाप का बाप लोभ है।

लोभ जैसा कोई असाध्य रोग नहीं,क्रोध के जैसा कोई दुश्मन नहीं ,और दरिद्रता के जैसा दुख नहीं तथा ज्ञान के जैसा कोई सुख इस जगत में नहीं है। श्रीमद् भागवत का विस्तार करते हुए बाबा ने कहा कि सबसे पहले भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को सुनाई ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने व्यास जी को व्यास जी ने शुकदेव को कथा सुनाई शुकदेव ने परीक्षित को भागवत कथा सुनाई। वेदव्यास अपने पुत्र शुकदेव को कथा रूपी अमृत नहीं दिया बल्कि पात्र शुकदेव को कथा रूपी अमृत दिया।पद पैसा या प्रतिष्ठा योग्य आदमी को देना चाहिए आयोग्य को देने पर तीनों का दुरुपयोग होता है। परम सत्ता जो ईश्वर है वह तो एक ही है किंतु विद्वान लोग अलग-अलग नाम से उसको पुकारते हैं। जैसे पानी जल वॉटर ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का मिश्रण मूलत:यह सब एक ही है। ब्राह्मण का शिर छेदना ही मृत्यु नहीं सीखा छेदन भी मृत्यु के बराबर है किसी का अपमान करना भी मृत्यु दंड का भागीदार बनना होता है अपमानित व्यक्ति घुट घुट कर जीता है किसी को सम्मान हम ना दे पावें कोई बात नहीं परंतु ध्यान रहे हमारे द्वारा किसी का अपमान भी अपराध के बराबर होता है। दूसरे को सम्मान दीजिएगा तो आपको भी सम्मान मिलेगा ।

द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद को अर्जुन के द्वारा बंदी बनाकर अपमानित किया गया था जिसके चलते राजा द्रुपद का तेजस्वी बालक दृष्टद्युम्न अपमान का बदला लेने के लिए महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य के मृत्यु का कारण बना। श्रुतियां कहती है (आचार्य पुरुषो वेद:) जिसका गुरु है उसी को ईश्वर का मार्ग मिलता है। धर्म मंजिल तक तो नहीं पहुंचता किंतु रास्ता अवश्य बताता है बिना धर्म का कर्म सही लक्ष्य से भटक जाता है। कर्म में धर्म आवश्यक नहीं अति आवश्यक नहीं परम आवश्यक आवश्यकता है।

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