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पावऀती जी की कठोर तपस्या के बाद ही का पुनर्जनम एवं शिवजी से बिबाह संम्भव हुआ- किशोरी जी - बेबाक भारत II बेबाक भारत की बेबाक खबरें

पावऀती जी की कठोर तपस्या के बाद ही का पुनर्जनम एवं शिवजी से बिबाह संम्भव हुआ- किशोरी जी

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पावऀती जी की कठोर तपस्या के बाद ही का पुनर्जनम एवं शिवजी से बिबाह संम्भव हुआ- किशोरी जी

गाजीपुर जनपद के भांवरकोल क्षेत्र के अवथहीं गांव स्थित काली मन्दिर पर नौ दिवसीय लक्ष्मी-नारायण महायज्ञ में अयोध्या धाम से पधारी कथा वाचिका आरती किशोरी जी ने राम कथा सुनाते हुए बताया कि श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे। बहुत कोशिशों के बाद भी सीता की खबर न मिलने से श्रीराम बहुत दुखी थे। जब श्रीराम की ये लीला चल रही थी, उस समय शिव जी और देवी सती ने श्रीराम को देखा। शिव जी ने दूर से ही श्रीराम को प्रणाम कर लिया, लेकिन माता सती के मन में शंका थी।
श्रीराम दुखी थे, रो रहे थे, ये देखकर सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि यही शिव जी के आराध्य राम हैं। देवी सती ने अपने मन की बात शिव जी को बताई तो शिव जी ने कहा, ‘ये सब राम जी की लीला है, आप शक न करें। उन्हें प्रणाम करें।’
शिव जी के समझाने के बाद भी देवी सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि राम ही भगवान हैं। शिव जी समझाया, लेकिन देवी सती राम जी की परीक्षा लेने वन में चली गईं।
सती जी ने सीता का वेश बनाकर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए निकल पड़ी. जब सती जी ने भगवान राम के सामने पहुंची तो मर्यादा पुरुषोत्तम ने सती जी को तुरंत पहचान लिया और भगवान भोलेनाथ का समाचार पूंछा. तब सती जी लज्जित होकर भगवान शिव जी के पास वापस चली आई. जब शिवजी ने पूंछा तो माता सती झूठ बोल गई और कहा कि हे स्वामी मैने कोई परीक्षा ही नहीं ली और वहां जाकर आपकी तरह मैंने भी प्रणाम किया, साथ सती जी ने यह भी कहा कि हे नाथ आपने जो भी कहा वह झूठ नहीं हो सकता है. ऐसे में परीक्षा लेने का कोई औचित्य नहीं होता.भगवान शिवजी ने ध्यान में सबकुछ जान लेते हैं. वे ध्यान में सती को माता सीता जी के रूप में देख लेते हैं और सती जी का झूठ भी जान लेते हैं. यह देखकर भगवान शिवजी को बड़ा दुःख होता है. इस कारण से शिवजी ने सती को अपनी पत्नी के रूप में परित्याग करने का प्राण कर लेते है. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार इस प्रकार से शिवजी का सती को पत्नी रूप में परित्याग, सती का शरीर त्याग, पार्वती के रूप में पुनर्जन्म तथा उनकी कठोर तपस्या, कामदेव द्वारा शिवजी का ध्यान भंग करना, कामदेव का भस्म होना, अंत में पार्वती जी का शिवजी के साथ विवाह होने की घटना घटती है.

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