सिद्धार्थ द्वारा तैयार किया गया फ़ोर इन वन मछली पालन मॉडल
सिद्धार्थ का माडल खुरपी नेचर विलेज इस समय काफी चर्चा में है

विकास राय-गाजीपुर जनपद के युवाओं के रोल माडल, समाजसेवी सिद्धार्थ राय जो की अब जनपद में अपने कृषि कार्यों को अपनी प्रबंधन की पढ़ाई से जोड़ कर हर समय एक नया मॉडल तैयार कर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसान की आय को दोगुना कर देने वाली सोच को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं ने एक बार फिर एक नया कार्य कर दिखाया है । इस बार सिद्धार्थ ने बताया है की कैसे मछली पालन के साथ साथ एक किसान तीन अन्य कामों को भी इसके साथ जोड़ कर अच्छा फ़ायदा, कम समय में और एक ही तालाब से कमा सकता है ।

सिद्धार्थ ने लगभग एक साल पहले अपने यहाँ मछली पालन का काम शुरू किया । लोगों से राय ली तो बतलाया गया की नये तालाब में मछली तेज़ी से नही बढ़ती हैं । कारण बतलाया गया कि तालाब में प्राकृतिक खाना नही होना । फिर सिद्धार्थ को एक तरकीब सूझी उन्होंने अपने फार्म का कचरा जैसे गाय के गोबर के साथ साथ , बकरी , मुर्ग़े और रसोई को एक नाली के माध्यम से तालाब में जोड़ दिया अब रोज़ तालाब में हरा कचरा गिरने लगा जो की मछलियों के लिए चारा बन गया और उसके बाद सिद्धार्थ ने बाज़ार से ख़रीद कर एक रुपये का भी दाना मछलियों को नही खिलाया ।

फिर सिद्धार्थ ने महसूस किया की इतने बड़े तालाब में सिर्फ़ मछली पालन ही क्युँ ? उसके बाद बतख़ पालन का भी काम उसी तालाब में शुरू किया गया जिस से हर रोज़ लगभग सौ से अधिक अंडे मिलने लगे जिसकी अच्छी बिक्री है बाज़ार में । यहाँ भी इन बतख़ो को ख़रीद कर खाना खिलाने की बजाये ढाबे का बचा हुआ जूठा खाना खिला कर तैयार किया गया ।

बाद में एक समस्या महसूस की गयी की तालाब में ऑक्सिजन की कमी हो रही है । वैज्ञानिको ने कहा की इसमें एक दो एच॰पी॰ की मशीन लगवानी होगी जो ऑक्सिजन बनायेगी । सिद्धार्थ ने सोचा यह मशीन महँगी भी होगी , बिजली भी खायेगी उस से फ़ायदा कितना होगा । फिर सिद्धार्थ ने पेडल बोट का ऑर्डर दिया और उसी तालाब में नौका विहार शुरू हो गया जिसका टिकट भी लिया जाता है मिनट के हिसाब से । अब जल्द वहाँ उसी तालाब में मचान बना कर रेस्टौरंट भी खोलने की तैयारी शुरू हो गयी है । मचान बांस का और पुल तैयार कर लिया गया है । आज इस मॉडल की लोग बहुत सराहना कर रहे हैं । सिद्धार्थ ने बतलाया की आदमी की पढ़ाई कभी ख़राब नही जाती उन्होंने एम॰बी॰ए॰ किया है गोल्ड मेडल पाया है अब वो उसी पढ़ाई को कृषि कार्य में लगा रहे हैं । आगे सिद्धार्थ ने बताया की जल्द वो कृषि वैज्ञानिको और एम॰बी॰ए॰ प्रोफेसरों की एक बैठक भी करवाने जा रहे हैं ताकि एक सार्थक विचार निकल कर सामने आये जिस से की किसान भी और रोज़गार की चाहत रखने वाला एक पढ़ा लिखा युवा भी लाभान्वित हो सके।
