पढ़ाई MBA वाली और काम ‘गोबर से रोजगार निकालना’
गाय का गोबर खिला तैयार किए देसी मुर्ग़े!
आत्मनिर्भर भारत के लिए इससे आसान रास्ता नहीं
आपको पढ़कर अजीब लग रहा होगा लेकिन ग़ाज़ीपुर के एक युवा ने यह गजब का काम कर दिखाया है।

- कोरोना लॉकडाउन में जब बेरोजगारी की समस्या विकराल रूप ले रही है तो गाज़ीपुर के युवा उद्यमी सिद्धार्थ यूनिक आइडिया के साथ हाजिर हैं।
- सिद्धार्थ ने पढ़ाई तो MBA वाली की है लेकिन काम गोबर से रोजगार निकालने वाला कर रहे हैं।
- सिद्धार्थ ने गाय का गोबर खिला कर देसी मुर्ग़े तैयार कर दिखाये हैं। वह भी एक दो नही कई सौ मुर्ग़े।
पढ़िए सिद्धार्थ की सक्सेस स्टोरी
सिद्धार्थ ने 5 महीने पहले 1600 देसी मुर्गी के चूज़े ख़रीदे थे। इन चूज़ों को दो जगह कर पाला गया। 800 चूज़ों को मुर्गी फार्म में रखा गया और उन्हें बाज़ार का ख़रीदा हुआ दाना खाने को दिया गया। शुरुआत में 36 रुपए किलो वाला दाना फिर 22 रुपए किलो वाला। मुर्ग़ा फार्म के अंदर पानी, खाने के साथ गर्म तापमान की पूरी व्यवस्था दी गयी। 800 की दूसरी लॉट के चूजों को साधारण घर बना कर रखा गया। शुरू में 20 दिन बाहर का खाना दिया गया और उसके बाद बाहर खुले में चुगने को छोड़ा गया। इन्हें खुले वाले गाय का गोबर परोसा जाने लगा और ये खाने भी लगे।

गाय का गोबर क्यों: सिद्धार्थ बताते हैं कि चूजे बड़े चाव से इसे खाते है । जो अनाज गाय को खिलाया जाता है, उसका कुछ हिस्सा गोबर में निकल कर आ जाता है। उसी गोबर में से चूजे अनाज का हिस्सा चुग लेते हैं।
फिर भी गोबर नहीं होता बर्बाद: जब मुर्ग़े खा लेते हैं उसके बाद उसी गोबर को गोबर गैस प्लांट में डाला दिया जाता है। गैस तैयार होती है और हमारे ईंधन के काम में आती है।
अभी गोबर की कहानी बाकी है जनाब: अभी MBA सिद्धार्थ के गोबर से फायदा कमाने की कहानी यहीं नहीं खत्म होती। गोबर गैस में से मिथेन गैस निकालने के बाद उसी गोबर को निकाल केंचुओं को परोसा जाता है। केंचुए उसे खा कर जैविक खाद तैयार कर देते हैं। इस जैविक खाद को फिर बाज़ार में बेचा जाता है जिसके खरीदार बहुत हैं।

मुर्गों के दाने का खर्च बचा, गोबर से दाना चुग मुर्गे हुए मजबूत, काम की चर्चा विदेशों तक
5 महीने की रीसर्च में सिद्धार्थ ने सीखा की देसी मुर्ग़े को दड़बे में बंद कर एक आम किसान नही पाल सकता। दाने में ही खर्च इतना होगा कि मुनाफे का सवाल गुम हो जाएगा।देसी मुर्ग़े तैयार होने में काफी वक्त लेते हैं।
जब सिद्धार्थ ने दड़बे वाले मुर्गों और खुले में चुगने वाले मुर्गों की तुलना की तो एक और अंतर साफ दिखा। बाज़ार का खाना खा कर बड़ा हुआ बंद मुर्गी फार्म वाला देसी मुर्ग़ा कमजोर दिख रहा था, जबकि बाहर घूम घूम कर अपने से दाना खाने वाले देसी मुर्गे मज़बूत और काफ़ी सुंदर दिख रहे थे। उनका वजन भी अधिक था।

सिद्धार्थ के इस देसी मॉडल की चर्चा आज कल देश विदेश में हो रही है। रोज़ दर्जन भर लोग सिद्धार्थ के पास पहुँच कर उनसे इसकी ट्रेनिंग ले रहे हैं। सिद्धार्थ का मॉडल “खुरपी नेचर विलेज” फेमस हो गया है। यहां गाय, बकरी, बतख़, मछली, मुर्ग़ा , केंचुआ , तीतर , ख़रगोश पालन समेत तमाम तरह के कृषि कार्य हो रहे हैं।
