मात्र गाय का गोबर खिला कर सिद्धार्थ द्वारा तैयार किए गये देशी मुर्गे
सिद्धार्थ का माडल खुरपी नेचर विलेज इस समय काफी चर्चा में है

विकास राय गाजीपुर-गाजीपुर जनपद के युवाओं के रोल माडल.प्रमुख समाजसेवी सिद्धार्थ राय ने लगभग 5 माह पहले 1600 देशी मुर्गी के चूजें खरीदे थे इन चूजों को एक ही स्थान पर 2 जगहों पर पाला गया है।
800 चूजों को मुर्गी फार्म के अंदर उनके लिए बनाये गये सुव्यवस्थित स्थान पर रखा गया और उन्हें नियमित बाजार का खरीदा हुआ दाना खाने को दिया गया शुरुआत में ₹36 किलो वाला दाना फिर ₹22 किलो वाला के साथ साथ मुर्गी फार्म के अंदर खाने के साथ-साथ पानी एवं गर्म तापमान की पूरी व्यवस्था की गई। वही 800 की दूसरी लाट के चूजों को साधारण रूप से घर बनाकर रखा गया।शुरू शुरू में 20 दिन उनको बाहर का खाना दिया गया और उसके बाद उनको बाहर खुले में चुनने के लिए छोड़ दिया गया। इन चूजों को नियमित गाय का गोबर परोसा जाने लगा जिसे वो खाने भी लगे।

गाय का गोबर ही क्यों सिद्धार्थ बताते हैं कि चूजे इसे बड़े चाव से खाते हैं।जो अनाज गाय को खिलाया जाता है उसका कुछ हिस्सा गोबर में निकल कर आ जाता है। उसी गोबर में से चूजे अनाज का हिस्सा चुग लेते हैं।
फिर भी गोबर नहीं होता बर्बाद
जब मुर्गे खा लेते हैं उसके बाद उसी गोबर को गोबर गैस प्लांट में डाल दिया जाता है।उसी गोबर से गैस तैयार होती है और वही गैस हमारे ईंधन के काम में आती है।

अभी गोबर की कहानी बाकी है जनाब
अभी एमबीए सिद्धार्थ की गोबर से फायदा कमाने की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है।गोबर गैस में से मीथेन गैस निकालने के बाद उसी गोबर को निकालकर केचुओं को परोसा जाता है। केंचुए उसी गोबर को खाकर उसे जैविक खाद के रूप में तैयार कर देते हैं।इस जैविक खाद को फिर बाजार में बेचा जाता है। जिस के खरीदार बहुत हैं। जिससे मुर्गों के दाने का खर्च बचा गोबर से दाना चुग कर मुर्गे हुए मजबूत और काम की चर्चा विदेशों तक गई। सिद्धार्थ ने बताया की देसी मुर्गे को दर्बे में बंद कर एक आम किसान नहीं पाल सकता है। मुर्गे के दानें में ही इतना खर्च होता है कि मुनाफे का सवाल गुम हो जाएगा।देसी मुर्गे तैयार होने में काफी वक्त लेते हैं। जब सिद्धार्थ ने दडबे वाले मुर्गो और खुले में चुगने वाले मुर्गों की तुलना की तो एक अंतर साफ साफ देखने को मिला।बाजार से खरीदा गया खाना खाकर बडा हुवा मुर्गा बंद मुर्गी फार्म वाला देशी मुर्गा कमजोर दिख रहा था।जबकि बाहर घूम घूम कर खुद से दाना खाने वाले मुर्गे काफी मजबूत और सुंदर दिख रहे थे।उनका वजन भी अधिक था।



इस देशी माडल की चर्चा आज कल देश और विदेश तक
सिद्धार्थ के इस प्रयोग और इस देशी माडल की चर्चा आज कल देश और विदेश तक हो रही है।सिद्धार्थ के यहां रोज दर्जन भर लोग पहुंच कर उनसे इसकी ट्रेनिंग ले रहे हैं।सिद्धार्थ का माडल.ड्रीम प्रोजेक्ट खुरपी नेचर विलेज इस समय जनपद ही नहीं पूरे पूर्वांचल समेत प्रदेश में प्रसिद्ध हो गया है।यहां पर गाय.बकरी.मछली पालन.बत्तख.मुर्गा.केचुआ.खरगोश.तीतर पालन समेत अन्य तरह के कृषि कार्य भी किये जा रहे है।सिद्धार्थ राय के दूध की पूरे गाजीपुर शहर में आपूर्ति की जा रही है।




