सर्प के जहर का नाश करती है सती माँ

सर्प के जहर का नाश करती है सती माँ
गाजीपुर जनपद मे स्थित अमवां गांव की सतीमाई सर्प के जहर का नाश करने वाली मानी जाती हैं। जनपद गाजीपुर के बाराचंवर इलाके में पड़ने वाले अमवा गांव में स्थित सती माई का दरबार इस वैज्ञानिक युग में झुठलाने वाला है। सर्पदंश से मुक्ति पाने के लिए इस स्थान पर न केवल पास-प़डोस के जनपदों से बल्कि अन्य प्रदेशों से पी़डित आते हैं और मुस्कुराते हुए जाते हैं।
यहां आने वाले श्रद्घालुओं, प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय दुकानदारों की मानें, तो यहां पर कई सर्पदंश पी़डितों को जीवन-दान मिल चुका है। देश के अन्य देवी मंदिरों की भांति यहां पर भी चैत्र और आश्र्विन (क्वार) की नवरात्रि में श्रद्घालुओं का पूजा-पाठ के लिए तांता लगा रहता है।
गाजीपुर जनपद की भूमी पर एक से एक सिद्ध पुरूष समय समय पर प्रकट होते रहे है। दर्जनो सिंद्ध स्थल आज भी पूरे जनपद में मौजूद है। अनेक सूफी सन्त पैगम्बर क्रान्तिकारी बीरो की भूंमी है यह ।अनेक सिद्ध पुरूषों की ज्ञान स्थली तप स्थली एवम कर्म स्थली रही है यह ।
सती माई को लेकर इलाके में एक किंवदंती प्रचलित है, जिसे बड़े-बुजु़र्गों के मुख से आज भी सुना जाता है, जिसके अनुसार अमवां सिंह गांव के परमल सिंह की शादी बलिया जनपद के दौलतपुर गांव में हुई थी। विदाई कराकर अपनी पत्नी को लेकर वह गांव चले आये। अभी तो सुहागरात भी नहीं हुई थी। जब परमल सिंह अपने खेत की तरफ घूमने गये तो रास्ते में ही उन्हें एक सांप ने डस लिया। फलस्वरूप परमल सिंह की मौत हो गयी। यह खबर उनकी पत्नी को मिली तो वह रोती-बिलखती शव के पास गयी और दहाड़ें मार कर गिर पड़ी और शरीर का त्याग कर दिया।कुछ लोग कहते है की परमल सिंह की जहां मौत हुई थी उस रास्ते में एक पोखरा है जिसमें पानी लबालब भरा था। जब उनकी पत्नी ने यह समाचार सुना तो वह पोखरे के पानी पर दौडते हुवे उस जगह पर पहूंची थी।उस वक्त सती का पता नहीं चल सका। अब वही स्थान अमवां की सतीमाई के नाम से चर्चित हो गया है।अमवां गांव के
बुजु़र्गों ने बताया कि काफी दिन बीतने के बाद एक चरवाहा गाय चरा रहा था। उसी दौरान उसे भी सर्प ने डस लिया। वह अपने घर की ओर भागा जा रहा था, किंतु जैसे ही सती माई के स्थान पर आया तो वह वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ा। यहां गिरने के कुछ समय बाद सर्प का जहर स्वतः खत्म हो गया और वह भला-चंगा हो गया। कहते हैं कि उसके लौटने के बाद यह चर्चा चारों तरफ जंगल के आग की तरह फैल गयी और तभी से सर्पदंश से पी़डित लोग यहां आकर सर्पदंश के जहर से मुक्ति पाने लगे।
मंदिर के पुजारी अंजनी सिंह सर्पदंश के जहर से मुक्ति पा चुके तमाम लोगों के साक्षात गवाह हैं। यहां प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को भक्तों का हुजूम अपनी मन्नतें पूरी होने पर पूजा पाठ करता है।श्रावण मास में तो प्रत्येक सोमवार एवम शुक्रवार को हजारो की सख्या में भक्त केवल बक्सर के रास्ते बिहार से आते है। सोमवार एवम शुक्रवार को सैकडों की संख्या में ट्रैक्टर एवम चारपहिया गाडीयों की भरमार अमवा सती स्थान पर देखने को मिलती है। बाराचंवर रसडा मार्ग पर सती धाम का एक भव्य गेट का निर्माण किया गया है। पूरे सावन भर यहां मेले जैसा नजारा दिखाई देता है। प्रसाद एवम अन्य सामग्री की दुकाने तो यहां पूरे साल भर रहती है।