गौरैया को बचाने के लिए हम सभी को मिल कर प्रयास करना होगा-फादर विक्टर

बिकास राय गाजीपुर-याद करिए प्रकृति के सान्निध्य में बीते अपने खुशनुमा बचपन को। जब पंछियों के कलरव के बीच सांझ ढला करती थी और सुबह आंख खुलती थी चिड़ियों की चहचहाहट से। कभी गौर किया है कि घर के आंगन, छतों, मंदिरों, बावड़ियों या नलकूपों के आसपास फुदकती रहने वाली घर-घर की चिरैया अब बहुत कम क्यों दिखती है? बेशक घर हमारे बड़े हो गए हैं लेकिन दिल इतने छोटे कि हम इस नन्हे से पक्षी को उसमें जगह नहीं दे पा रहे। जिससे यह अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष को मजबूर है। कुछ लोग भले ही यह मान रहे हों कि निजी या सरकारी प्रयासों के कारण चिरैया फिर दिखने लगी है। लेकिन फादर पी विक्टर का मानना है कि ऐसी कोई स्टडी नहीं है जिससे यह माना जाए कि वास्तव में ही चिड़ियाओं की संख्या फिर से बढ़ने लगी है।

अगर इस पक्षी को बचाना है तो सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। सोच और रहन-सहन की आदतों में सुधार करना होगा। उसे हमारे थोड़े से प्यार और फिक्र की जरूरत है। तभी पर्यावरण की हितैषी और हमारे बचपन की साथी चिरैया फिर से हमारे आंगन में फुदकती नजर आ सकती है।

दुनिया में गौरेया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से पांच भारत में देखने को मिलती है।फादर विक्टर ने बताया कि गोरैया के अस्तित्व पर मोबाइल टॉवर ही जिम्मेदार है। इस बात से कम से कम हम इत्तेफाक नहीं रखते। क्योंकि यह सिर्फ अभी धारणा ही है। ऐसा कोई शोध अभी सामने नहीं आया है।
वन्य प्राणी विभाग कर रहा चिड़ियों के संरक्षण पर काम
फादर पी विक्टर ने बताया कि विभाग समय-समय पर चिड़ियों या अन्य पक्षियों के संरक्षण के लिए अभियान चलाता रहता है और उसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।गांव में तो चिड़िया फिर से आंगन में देखी जाने लगी हैं लेकिन शहर में अब भी यह कम ही नजर आती है।
गौरैया के बारे में अहम तथ्य

यह पूरे एशिया और यूरोप महाद्वीप में पाई जाती है। इसका रंग हल्का भूरा और सफेद होता है। इसकी एक चोंच पीली होती है और दो पंख भी होते हैं जो इन्हें उड़ने में मदद करते हैं। ग्रामीण इलाकों में गौरैया के रहने की जगह मिल जाती है इसलिए गांवों में इनकी तादात ज्यादा है लेकिन शहरों में इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। गर्मियों में बहुत सी गौरैया प्यास से मर जाती हैं। इसके अलावा उनके लिए कृत्रिम घर बनाना भी बहुत आसान है और इसमें खर्च भी बहुत ही कम आता है। जूते के डिब्बों, प्लास्टिक की बड़ी बोतलों और मटकियों में छेद करके इनका घर बना कर उन्हें उचित स्थानों पर लगाया जा सकता है।