June 20, 2025

मामा जी की याद- ए पहुना अब मिथिले में रहु ना

“ए पहुना अब मिथिले में रहु ना,
जवने सुख बा ससुरारी में, तवने सुख कहू ना,,

परम पूज्य ब्रह्मलीन मामा जी महाराज, (बक्सर वाले मामा जी ) का जन्म बक्सर जिले के अंतर्गत बक्सर प्रखंड के पाण्डेय पट्टी ग्राम में एक चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार मे अश्विन कृष्ण षष्ठी संवत् 1990 तदनुसार दिन रविवार “10 सितम्बर 1933ई.” को हुआ था।इनके दादाजी का नाम मेघवर्ण चतुर्वेदी था, जो प्यार से मामाजी महाराज को मन्नाजी कह कर पुकारते थे। इनके पिताजी का नाम मधुसुधन चतुर्वेदी था, जो बहुत बड़े कर्मकांडी एवं ज्योतिषी में पारंगत थे।

इनकी माताजी का नाम श्रीमती रामा देवी था, जो बिल्कुल संत ह्रदय, ममता की मूरत, कुशल गृहिणी थी।मामा जी महाराज के माता पिता ने इनका शुभ नाम “श्रीमन्ननारायण चतुर्वेदी” रखा था। जो प्यार से “नारायण” जी भी कह कर पुकारा करते थे। मामाजी महाराज की प्रारंभिक शिक्षा बक्सर से ही संपन्न हुई तथा उच्च शिक्षा आरा तथा रांची से वाणिज्य विभाग से स्नातक की शिक्षा संपन्न हुई।

1955 ई. में ही शासकीय पदाधिकारी की सेवा त्याग कर तथा पद से इस्तीफा देकर “श्री खाकी बाबा सरकार” से दीक्षा लेकर उनका शिष्य बन गए,
बचपन से ही भगवद् गीता के प्रति झुकाव था, तथा प्रभु श्रीराम में अनन्य भक्ति थी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और 1952 ई. में मामाजी महाराज ने किसी शासकीय सेवा में पदाधिकारी के तौर पर नियुक्ति हुई। शासकीय पद पर तैनात रहने के दौरान आरा में पहली बार “महर्षि खाकी बाबा सरकार” के किसी कार्यक्रम में दर्शन का सौभाग्य मिला, दर्शन के उपरान्त मामा जी महाराज, खाकी बाबा से इतने प्रभावित हुए की 1955 ई. में ही शासकीय पदाधिकारी की सेवा त्याग कर तथा पद से इस्तीफा देकर “श्री खाकी बाबा सरकार” से दीक्षा लेकर उनका शिष्य बन गए, तथा उनके साथ रहने लगे।

बाद में संत शिरोमणि स्वामी श्री रामचरण दास जी “श्री फलाहारी बाबा” के संपर्क में आए तथा उनकी खूब निष्ठा-भाव से सेवा की, इससे “श्री फलाहारी बाबा” ने प्रसन्न होकर मामाजी महाराज को “श्री नारायण दास” की उपाधि से विभूषित किया।युगल सरकार की नित्य लीला स्थली श्रीधाम वृन्दावन में मामा जी साधना करते हुए श्रीधाम वृन्दावन में निवास करने लगे। वही साधना करते हुए सुदामा कुटीर में इन्हें भक्तमाल के रसज्ञ, मर्मज्ञ, “पं. श्री जगरनाथप्रसाद भक्तमाल” जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। जिनसे इन्होंने संत शिरोमणि “नाभादास” जी द्वारा रचित भक्तमाल का अध्ययन किया।

सीताजी को अपनी बहन मानने के नाते प्रभु श्री राम को अपना बहनोई मानने लगे।
संत सेवा तथा संतो के आशीर्वाद से भागवत कथा भी कहने लगे, तथा सरस कथा व्यास हुए। बिना भाव के व्यक्ति कितना भी ज्ञानी हो, उसकी अभिव्यक्ति में मधुरता नहीं आ पाती है। युगल सरकार के प्रति भक्तिभाव तथा जगजननी माँ सीताजी जनकपुर की उपासना से भक्ति रस में आकंठ डूब गए, तथा कथा के माध्यम से भक्ति के मधुर रस का वितरण करने लगे। बिहार के होने के नाते तथा श्री सीता माँ का मिथिलांचल का होने के नाते श्री सीता माँ को वो इस भक्ति भाव में कब बहन मानने लगे कुछ पता नहीं चला। सीताजी को अपनी बहन मानने के नाते प्रभु श्री राम को अपना बहनोई मानने लगे। इसी रिश्ते के कारण आगे चलकर “मामा जी” महाराज के नाम से विश्वविख्यात हुए।

मामा जी महाराज ने अनेकों नाटकों, पुस्तकों, दोहों, कविताओं की रचना की। जिसमें प्रमुखता से उनकी विश्वविख्यात भोजपुरी कविता जो प्रभु श्री राम को “पाहुन” कह गाए थे :-

“ए पहुना अब मिथिले में रहु ना,
जवने सुख बा ससुरारी में, तवने सुख कहू ना,,
ए पहुना अब मिथिले में रहु ना।…”
अद्भुत क्षमता थी मामाजी महाराज की लेखनी में, साथ ही उन्हें अंग्रेजी भाषा का भी बहुत ज्ञान था उन्होंने अंग्रेजी में भी टी शब्द से सैकड़ो वाक्य एक कविता के माध्यम से लिख डाले थे :-

“जगत में कोई ना परमानेन्ट, जगत में प्रभु ही परमानेंट…”
इस कविता में अंतिम शब्द में सैकड़ो बार टी शब्द का प्रयोग अलग-अलग वाक्यों का प्रयोग कर प्रमुखता से मामा जी द्वारा किया गया था। भाषा का ज्ञान मामा जी महाराज के अंदर कूट-कूट कर भरा था, संस्कृत हो, हिंदी हो, अंग्रेजी हो, सही शब्द का सही प्रयोग मामाजी की लेखनी की महानतम श्रेणी को दर्शाता था। “मामाजी महराज” तथा उनके परम प्रिय गुरु महाराज “महर्षि खाकी बाबा सरकार” के प्रयासों के बदौलत आज भी बक्सर में “श्री सिय पिय मिलन महामहोत्सव” का कार्यक्रम हर वर्ष नवम्बर-दिसम्बर महीनें में होता है।

भक्तमाल रसज्ञ, मर्मज्ञ “पं. श्री जगरन्नाथप्रसाद जी भक्तमाली” की प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित “प्रिया प्रीतम मिलन महोत्सव” में पधारे जगतगुरु “श्री निम्बकाचार्य जी महाराज” ने “श्री मामाजी” महाराज के अंदर “जगरन्नाथप्रसाद भक्तमाल” जी के प्रति भाव देखकर उन्हें “पं. श्री जगरन्नाथप्रसाद भक्तमाल” जी का उत्तराधिकारी घोषित कर उन्हें “भक्तमाली” की उपाधि से विभूषित किया। इस तरह से मामाजी महाराज का पूरा नाम ” श्री नारायण दास भक्तमाली जी” हुआ। ऐसी अद्भुत भाव, अभिव्यक्ति के स्वामी होते हुए भी मामाजी महाराज अत्यंत विनयशील, निराभिमानी एवं सरल थे, अतिथि सत्कार उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही थी।

जो मानव एक बार परम पूज्य मामा जी महाराज का सान्निध्य का सुख पा लेता था, वह सदा के लिए उनका हो जाता था। हमेशा अपनी कथा के माध्यम से मामाजी ने सदा जीवन उच्च विचार जीवन जीने की कथा अपने भक्तों श्रोताओं के बीच कहा करते थे, जिससे भक्त तथा श्रोता जीवन जीने की कला सीखते थे। ऐसे सरस कथा अपनी मधुर वाणी से कहते थे की श्रोता जीवन जीने की इच्छा छोड़ कर बाकी बची जीवन की अभिलाषा भगवत भजन में लगाने लगते थे। मामाजी महाराज को दूसरे साधु, महात्माओं द्वारा उन्हें संतो की वाणी, भक्तों के चरित्र तथा मार्ग खोजने वाला व्यक्ति कहा गया है।

24 फरवरी 2008 में बक्सर के गौरव की एक झलक देखने के लिए उमड़ पड़ी।
अचानक एक ऐसा दिन आया, जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, इस महान पुण्यात्मा की असमय मृत्यु 75 वर्ष की आयु में एक सड़क दुर्घटना में अपने कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मणशरण दास जी तथा ओम प्रकाश जी सहित 24 फरवरी 2008 में हो गई। इस घटना से पूरे बक्सर सहित बिहार की जनता में शोक की लहर दौड़ गई, उनके अंतिम दर्शन को देश, विदेश से उनके अनेक शिष्यों भक्तों के साथ-साथ बक्सर की लाखों लाख जनता सड़को पर अपने बक्सर के गौरव की एक झलक देखने के लिए उमड़ पड़ी। सबकी आँखों में आश्रु भरे पड़े थे, सब नियति को दोष दे रहे थे, किसी तरह भक्तों को समझा बुझाकर तथा मामाजी द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने की संकल्प के साथ “मामाजी” का अंतिम संस्कार हुआ।

बक्सर वासी अपने आपको धन्य समझते हैं कि मामाजी जैसे महान सन्त ने बक्सर की धरती पर जन्म लेकर इस भूमि को पवित्र किया है!
पूज्य मामाजी द्वारा रचित कविता, दोहे, कहानी, नाटक, ग्रन्थ, श्लोक इत्यादि मामा जी महाराज से हमलोगों को दूर कभी नहीं होने देती हैं।आज भी ब्रह्मलीन मामा जी महाराज का आश्रम बक्सर नई बाजार में स्थित है, दर्शन की अभिलाषा लिए आए हुए भक्त यहाँ जाकर पूज्य मामा जी के प्रति-मूर्ति के दर्शन कर उनकी यादों को जी सकते है।

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