June 21, 2025

रक्षाबंधन क्‍यों मनाते हैं, सबसे पहले किसने बांधी थी राखी-डा०सानंद

रक्षाबंधन का इतिहास और मान्यताएं

रक्षाबंधन को लेकर कई प्रकार की मान्‍यताएं प्रचलित हैं। पौराणिक ग्रंथों इसको लेकर कई कहानियां बताई गई हैं। किसी कहानी में द्रौपदी और कृष्‍ण का जिक्र हैं तो किसी में राजा बलि और माता लक्ष्‍मी के बारे में बताया गया है। तो कहीं यह भी बताया गया है कि इसकी शुरुआत सतयुग में हुई थी। आइए आपको ले चलते हैं रक्षाबंधन के इतिहास में और बताते हैं सारी कहानियां

द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कहानी

जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते हुए सुदर्शन चक्र से भगवान की छोटी उंगली थोड़ी कट गई और रक्त बहने लगा। यह देख द्रौपदी आगे आईं और उन्होंने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी के चीर की लाज रखी। कहते हैं जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी का पल्लू बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था और यहीं से शुरू हो गई बहन द्वारा भाई को रक्षासूत्र बांधने की परंपरा।

इसलिए सैनिकों को इस दिन बांधी जाती है राखी

राखी की एक अन्य कथा है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि हे कान्हा, मैं कैसे सभी संकटों से पार पा सकता हूं? मुझे कोई उपाय बतलाएं। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधें। इससे उनकी विजय सुनिश्चित होगी। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी बने। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है। तब से इस दिन पवित्र रक्षासूत्र बांधा जाता है। इसलिए सैनिकों को इस दिन राखी बांधी जाती है।

श्रवण कुमार से राखी का संबंध

हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को लेकर कई मान्‍यताएं हैं। कहीं-कहीं इसे गुरु-शिष्‍य परंपरा का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि यह त्‍योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्‍यु से भी जुड़ा है। इसलिए मानते हैं कि यह रक्षासूत्र सबसे पहले गणेशजी को अर्पित करना चाहिए और फिर श्रवण कुमार के नाम से एक राखी अलग निकाल देनी चाहिए। जिसे आप प्राणदायक वृक्षों को भी बांध सकते हैं।

जब भगवान विष्णु जा बसे पाताल लोक में

राजा बलि की विनती स्‍वीकार करके जब भगवान विष्‍णु उनके साथ पाताल लोक में वास करने चले गए तो मां लक्ष्‍मी परेशान हो गईं। फिर उन्‍होंने अपने पति को वापस लाने के लिए लीला रची। गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी।

बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीने चर्तुमास के रूप में जाने जाते हैं जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक होते हैं।

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