खौफ खाते थे दुनिया के पहलवान ‘रूस्तम- ए-हिंद’ मंगला राय से


पहलवानी में “रूस्तम-ए-हिंद मंगला राय” का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। “मंगला राय” (1916 – 26 जून, 1976) भारत के एक प्रसिद्ध पहलवान थे।
जन्म व परिचय
मंगला राय का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के जोगा मुसाहिब गांव में सन् 1916 के क्वार महीने में हुआ था। उनके पिता का नाम रामचंद्र राय था। रामचंद्र राय और उनके छोटे भाई राधा राय अपने जमाने के मशहूर पहलवान थे। उन्ही की तरह मंगला राय और उनके छोटे भाई कमला राय ने भी कुश्ती में काफी नाम और यश प्राप्त किया। रामचंद्र राय और राधा राय दोनों अपने जवानी के दिनों में जीविकोपार्जन के चलते म्यांमार (बर्मा) के रंगून में रहते थे जहाँ दोनों एक अखाड़े में रोजाना अभ्यास और कसरत करते थे। दोनो भाइयों में राधा राय ज्यादा कुशल पहलवान थे और उन्होंने ही अपने दोनों भतीजों को कुश्ती की पहली तालीम दी और दाव-पेंच के गुर सिखाए।
शेर-ए-बर्मा’ की उपाधि
समय के साथ मंगला बड़े हुए और एक पहलवान की जवानी जोर मारने लगी। तब बर्मा में ईशा नट नामी पहलवान हुआ करता था। एक रोज हो गई मंगला राय की ईशा से भिड़ंत और देखते ही देखते भोजपुरिया माटी से रचे-बने मंगला राय ने उसे चारों खाने चित्त कर दिया। इसके बाद उन्हें ‘शेर-ए-बर्मा’ की उपाधि मिली।
‘रूस्तम- ए-हिंद’ की उपाधि
उन्होंने इलाहाबाद के भूमि पर 1933 में उत्तर भारत के मशहूर नामी-गिरामी पहलवान मुस्तफा के साथ कुश्ती लड़ी। उन्होंने अखाड़े में मुस्तफा के खिलाफ अपने सबसे प्रिय दांव ‘टांग’ और ‘बहराली’ का इस्तेमाल किया। मंगला के जोर के आगे मुस्तफा की एक न चली और वह चित्त हो गया। इसके बाद तो मंगला राय के नाम का पूरे देश में डंका बज गया।उन्होंने अकरम लाहौरी, खड्ग सिंह, केसर सिंह, गोरा सिंह, निजामुद्दीन, गुलाम गौस, टाइगर योगेंद्र सिंह सहित कई मशहूर पहलवानों को हराया। 1952 में उन्हें ‘रूस्तम- ए-हिंद’ की उपाधि मिली। वहीं 1954 में ‘हिंद केसरी’ के खिताब से नवाजा गया।
“मंगला राय” नाम से ही घबराते थे बड़े-बड़े पहलवान
इसके बाद बड़े-बड़े पहलवानों को धूल चटाते हुए लगातार बुलंदियों पर चढ़ते रहे। काशी में रहकर गुरु शिवमूरत पंडा के स्नेह से मंगला राय कुश्ती के प्रतिमान बन गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने प्रसन्न होकर इन्हें चांदी की गदा प्रदान की। मुंबई में शेरा गोरा सिंह को 20 मिनट में चित करने पर मंगला राय की जयकार होने लगी। विदेशों में अपनी विजय पताका फहराने वाले यूरोप के प्रसिद्ध पहलवान जार्ज कांस्टेनटाइन को भी नंदी बागान हावड़ा में वर्ष 1957 में पटकनी दी।
कसरत और भोजन

रोज चार हजार बैठक और ढाई हजार दंड
मंगला राय बहुत ही मजबूत कद-काठी के थे। उनका वजन 131 किलो था, जबकि लंबाई 6 फीट 3 इंच। वे रोज चार हजार बैठकें और ढाई हजार दंड लगाते थे। इसके बाद प्रतिदिन अखाड़े में 25 धुरंधर पहलवानों से तीन बार कुश्ती लड़ा करते थे। वे शुद्ध शाकाहारी और सात्विक व्यक्ति थे। उनके खाने में आधा किलो शुद्ध देसी घी, आठ से दस लीटर दूध और एक किलो बादाम शामिल होता था। कहा जाता है कि उनका जन्म मंगलवार को हुआ था, सो मां-बाप ने उनका नाम मंगला राय रख दिया।
आखिरी बार वे 1963 में अखाड़े में उतरे
कहते हैं कि ढ़लती उम्र में मंगला राय जब अपने गांव जोगा मुसाहिब में ही रहा करते थे तब आखिरी बार वे 1963 में अखाड़े में उतरे। उस वक्त जिला गाजीपुर का कोई कलक्टर था, जिसने अखाड़े में खड़े पहलवान मेहरूद्दीन के खिलाफ मंगला राय को ललकार दिया। कलक्टर ने उनकी दुखती रग पर हाथ रखते हुए कुछ ऐसी बात कह दी, जो वहां खड़े गाजीपुर के लोगों को लग गई। सबों ने मंगला राय से एक स्वर में कहा, ‘बाबा लड़ जाईं ना त गाजीपुर के इज्जत ना रही।’ इतनी बात सुनते ही बूढ़ी हो चली हड्डियों में जुंबिश हुई और दुनिया के नामी-गिरामी पहलवानों को धूल चटा चुके मंगला राय लंगोट पर हो गए। अखाड़े में दांव-पेंच शुरू हुए। एक तरफ शबाब लिए मेहरूद्दीन की जवानी और दूसरी तरफ मंगला की बूढ़ी हो चली काया। बावजूद मंगला राय ने गाजीपुर वालों को निराश नहीं किया। अपनी माटी की लाज रख ली। यह कुश्ती टाई हो गई। हालांकि उम्र के इस पड़ाव पर यही बहुत बड़ी बात थी कि मेहरूद्दीन उन्हें शिकस्त नहीं दे सका।
देश और देश की मिट्टी से बेपनाह मोहब्बत करने वाले इस पहलवान ने 26 जून 1976 को बीमारी के कारण करीब 60 वर्ष की अवस्था में मल्ल विद्या का पुरोधा सदा के लिए विलीन हो गया।