वट सावित्री पूजा देती है पर्यावरण संरक्षण की सीख -राजेश शुक्ला

सनातनी संस्कृति का परम वैभवशाली और अखंड सौभाग्य का व्रत है वट सावित्री ! सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा बरगद के पेड़ की पूजा से यह साफ पता चलता है कि परंपरागत रूप से हम प्रकृति के काफी करीब रहे हैं। हालांकि, पिछले कुछ सालों में आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में हरित क्षेत्र का दायरा लगातार सिमटता जा रहा है।राजेश शुक्ला गंगा सेवक ने बताया की गर्मी के दिनों में बरगद की छांव तले बैठकर लोग राहत महसूस करते थे। आज यह पेड़ बिरले ही कही दिखाई देता है। खासकर शहरी क्षेत्रों में बरगद के पेड़ अब शायद ही दिखते हैं। ऐसे में व्रती महिलाओं के लिए परंपरा अनुसार इस पूजा को सम्पन्न करने के लिए कई बार इसकी टहनियों से ही काम चलाना पड़ता है। प्रकृति की कीमत पर विकास को तरजीह नही दिया जा सकता। अब तक विकास के नाम पर प्रकृति के साथ अन्याय होता रहा है। एक समय में बरगद का पेड़ हर जगह उपलब्ध हुआ करता था। आज आलम यह है कि वट सावित्री व्रत करने के लिए भी यह पेड़ खोजने से नहीं मिलता है। अपनी परंपराओं व प्रकृति को बचाने के लिए सबको जागरूक होना पड़ेगा।