March 26, 2025

हमारे समाधान प्रकृति में हैं-राजेश शुक्ला

” जैव विविधता की समृद्धि में निहित है पृथ्वी की खुशहाली “

अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर विशेष :

प्रत्येक वर्ष 22 मई को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है ।इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस की थीम ‘ हमारे समाधान प्रकृति में हैं ‘ निर्धारित किए गए हैं । जैव विविधता से आशय जीवधारियों (पादप एवं जीवों) की विविधता से है, जो दुनियाभर में हर क्षेत्र, देश, महाद्वीप पर होती है । जैव विविधता दिवस का उद्देश्य लोगों में जैव-विविधता के महत्त्व के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है । यह भी बताना है कि जैव विविधता का क्षय दुनिया में मौजूदा पारिस्थितिक तंत्र को कैसे प्रभावित कर रहा है।वर्तमान समय में इसका महत्व बढ़ गया है। खासकर कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के चलते लोगों का ध्यान पर्यावरण संरक्षण पर बढ़ा है । धरती पर रहने वाले विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी तथा वनस्पति एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हैं, जिनका जीवन एक-दूसरे पर ही निर्भर रहता है। सही मायनों में जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है किन्तु विड़म्बना है कि निरन्तर बढ़ता प्रदूषण रूपी राक्षस वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। भारत सरकार द्वारा 2014 में पेश पांचवीं राष्ट्रीय रिपोर्ट में संकटग्रस्त जीव प्रजातियों की श्रेणियों की संख्या 646 थी जो छठी राष्ट्रीय रिपोर्ट में बढ़कर 683 हो गयी। देश में इस समय नौ सौ से भी अधिक दुर्लभ प्रजातियां खतरे में बताई जा रही हैं। भारत का समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र करीब 20444 जीव प्रजातियों के समुदाय की मेजबानी करता है, जिनमें से 1180 प्रजातियों को संकटग्रस्त तथा तत्काल संरक्षण के लिए सूचीबद्ध किया गया है । नदियों के आस पास अवैध खनन, लगातार निर्माण कार्यों, भू-स्खलन और गलत तरीकों से शिकार के कारण मछलियों के भोजन के स्रोत और उनके पलने-बढ़ने की परिस्थितियां प्रभावित हुई हैं । विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे क्षेत्रों में मछलियों के छिपने और प्रजनन की परिस्थितियां प्रतिकूल होती जा रही हैं, जिसका सीधा असर मछलियों की इन तमाम प्रजातियों के अस्तित्व पर पड़ रहा है। नदियों में जमा होते कचरे के कारण भी मछलियों का भोजन खत्म हो रहा है। गंगा में लगातार बढ़ते प्रदूषण और उसके सीमा क्षेत्र में बेरोकटोक हो रहे अतिक्रमण ने इसकी धारा को भी अवरुद्ध करना शुरू कर दिया है। इसके पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहे छेड़छाड़ से गंगा में गाद के टीले बन रहे हैं। पानी का प्रवाह कम होने से गांगेय डॉल्फिन पर भी खतरा मंडराने लगा है। कछुआ जैसे जीव जंतु पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं। कोरोना महामारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है। मर रहे लोगों के संक्रमित शवो को लोग आनन-फानन में गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। इस संक्रमण से गंगा में फल-फूल रहे जीव जंतुओं में भी महामारी फैलने की आशंका प्रबल हो गई है।
आधुनिक समय में जैव-विविधता विषय पर ध्यान देने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में विशेष बदलाव हुआ है। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। एक रिपोर्ट की मानें तो आने वाले समय में पौधों और जानवरों प्रजातियों में से 25 फीसदी विलुप्त अवस्था में है। यह सब वन क्षेत्रों के घटने और विकास परियोजनाओं के चलते वन्य जीवों के आश्रय स्थलों में बढ़ती मानवीय घुसपैठ का ही परिणाम है । पृथ्वी पर पेड़ों की संख्या घटने से अनेक जानवरों और पक्षियों से उनके आशियाने छिन रहे हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि यदि इस ओर जल्दी ही ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थितियां इतनी खतरनाक हो जाएंगी कि धरती से पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। माना कि धरती पर मानव की बढ़ती जरूरतों और सुविधाओं की पूर्ति के लिए विकास आवश्यक है लेकिन यह हमें ही तय करना होगा कि विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न न हो। हमें आसानी से समझ लेना चाहिए कि हम भयावह खतरे की ओर आगे बढ़ रहे हैं और हमें अब समय रहते सचेत हो जाना चाहिए। हमें अब भली-भांति समझ लेना होगा कि पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी और सबसे महत्वपूर्ण यही है कि हम धरती की पर्यावरण संबंधित स्थिति के तालमेल को बनाए रखें। जैव विविधता का सामाजिक, नैतिक तथा अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष महत्व है, जो हमारे लिये महत्वपूर्ण है।

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