जो दूसरों के आनन्द का कारण बने वही ‘नन्द’ है तथा जो सबको यश व शुभ कर्मों का श्रेय देती है, और जिनके सत्कर्मों का गोपन है वो ‘यशोदा’ है-अवधेशानंद गिरि

कुम्भ नगरी हरिद्वार में जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर पूज्यपाद स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज के श्रीमुख से श्रीहरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का ‘षष्ठम दिवस’ सम्पन्न हुआ।

कथा के प्रारम्भ में पूज्य “आचार्यश्री’ जी कहते हैं कि साधन चतुष्टय की सिद्धि ही कथा की फ़लश्रुति है। भौतिक आकर्षण और केवल पदार्थों के प्रति आसक्त हमारी मनोवृत्तियाँ कथा के कारण एकाग्रता की ओर अग्रसर होती है। जब मन की तृष्णाएं शान्त और नियंत्रित होती हैं तो जीवन के उच्चतर उद्देश्य प्रकट और प्रकाशित होने लगते हैं और भगवान के कथा श्रवण से सद्प्रवृत्तियों की ग्राह्यता विकसित होती है। सारांशतः आत्मानुभूति अथवा ईश्वरानुभूति ही कथा का फलादेश है।

नन्द-उत्सव का वर्णन करते हुए पूज्य “आचार्यश्री” जी कहते हैं कि नन्द के घर बालक नही, अपितु मूर्तिमान आनन्द का प्रादुर्भाव हुआ। उत्सव वह है जहाँ उच्चता का प्रसव हो ! जो दूसरों के आनन्द का कारण बने वही ‘नन्द’ है तथा जो सबको यश व शुभ कर्मों का श्रेय देती है, और जिनके सत्कर्मों का गोपन है वो ‘यशोदा’ है। भगवान श्रीकृष्ण के आने से ब्रजवासियों के जीवन स्वतःस्फूर्त आंनद-औदार्य का समावेश हो गया।

तदनन्तर पूज्य गुरुदेव ने भगवान शिव के ब्रज आगमन की कथा श्रवण कराई। ‘पूज्यश्री’ जी के अनुसार भगवान भोलेनाथ का ब्रज आने का अर्थ है – भूतेश्वर के यहाँ भूतनाथ, जगन्नाथ के घर जगतनियन्ता और पूर्व के यहाँ अपूर्व का आगमन !!

पूतना के उद्धार की लीला श्रवण कराते हुए पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि जो स्वभावतः कामादि विकारों और पैशाचिक वृत्तियों के कारण अपवित्र है, उसका नाम ‘पूतना’ है। पूतना अविद्या का नाम है, किन्तु उसने भगवान को दुग्ध पान करवाया, इसलिए भगवान ने उसे मोक्ष प्रदान किया। भगवान के नामकरण के प्रसंग और दिव्य लीलाओं का श्रवण कराते हुए षष्टम दिवस संपन्न हुआ।

इस अवसर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा पूज्या दीदी महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि जी, महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी राज राजेश्वरानंद जी, महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अपूर्वानन्द गिरि जी, पूज्य स्वामी सोमदेव गिरि जी, पूज्य स्वामी कैलाशानन्द गिरि जी, कथा के मुख्य यजमान श्री अशोक डांगी जी, श्रीमती अनीता डांगी जी, संस्था के न्यासी गण एवं बड़ी संख्या में साधक उपस्थित रहे।

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