अपनी भीतर की दुर्बलताओं को जीत लेना ही विजय का मूल मंत्र है-आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि

महाकुंभ 2021 के अंतर्गत श्री हरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार में 16 मार्च से 22 मार्च तक श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस का समापन हुआ।
श्रीमद्भागवत कथा के प्रारंभ में जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने सप्तपुरियों में से एक कुम्भ नगरी हरिद्वार में कथा श्रवण के माहात्म्य पर प्रकाश डाला। पूज्य “आचार्यश्री” कहते हैं कि एकमात्र ब्रह्म ही है जो नित्य-नूतन और सर्वत्र विस्तृत है। वही नित्य विद्यमान सत्ता अनेक रूपों में अनुभूत होती है। इसलिए वैदिक अभिमत या भारतीय दर्शन ऐसा मानता है कि प्रकृति की विविधता के मूल में एक ही तत्व है जो सर्वत्र प्रकाशित है। अपने भीतर के ईश्वर की उपलब्धि ही कथा का मूल फल है।
प्रथम दिवस के आरम्भ में पूज्य “आचार्यश्री” जी ने भगवान शिव -पार्वती संवाद द्वारा अमरत्व का स्त्रोत अर्थात भगवान की कथा शुक के माध्यम से कैसे सांसारिक प्राणियों के मध्य आई और कब -कब किनके-किनके द्वारा कही गई यह दृष्टांत सुनाया। श्रीमद्भागवत के पहले श्लोक में सन्निहित परोपकार और पारमार्थिक भाव को उद्धृत करते हुए पूज्य “आचार्यश्री” जी ने आधिदैहिक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दु:खों की चर्चा की। पूज्यश्री जी कहते हैं कि अपनी भीतर की दुर्बलताओं को जीत लेना ही विजय का मूल मंत्र है। हम बाह्य जगत में उलझें हैं। खान-पान, रहन-सहन और पहनावे में से बाहर निकल कर अपनी अज्ञानता, अविवेक, अल्पता और अन्यान्य दुर्बलताओं पर ध्यान दीजिए। अगर आप अपनी दुर्बलताओं और अंधेरों से परिचित हैं, आप कामनाओं के सैन्य दल की रणनीति समझ लेते हैं और उनसे ऊपर उठने का प्रयत्न करते हैं, उस दिन आप विजयी हैं।

इस अवसर पर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा पूजनीया महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि जी, महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अपूर्वानन्द गिरि जी, पूज्य स्वामी सोमदेव गिरि जी, पूज्य स्वामी कैलाशानन्द गिरि जी, आदरणीय श्री आई.डी. शास्त्री जी, न्यासी गण एवं बड़ी संख्या में साधक गणों की उपस्थिति रही।