वृत्तियों की असुरता ही वृत्तासुर है, उसे विवेक के द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है-अवधेशानन्द गिरि

कुम्भ नगरी हरिद्वार में जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज के श्रीमुख से श्रीहरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का ‘तृतीय दिवस’ संपन्न हुआ।
तृतीय दिवस की कथा का आरंभ करते हुए पूज्य “आचार्यश्री” जी कहते हैं कि धर्म अभ्युदय और श्रेयस कारक है। हमारी संस्कृति में कामादि पुरुषार्थ भी मान्य है, उनकी निंदा नही है। किंतु, काम संतुलित, नियंत्रित और मूल्य आधारित होना चाहिए। धर्म की सिद्धि कैसे हो? इसका समाधान करते हुए ‘पूज्यश्री’ कहते हैं कि शरीर ही धर्म सिद्धि का एक मात्र साधन है। देवताओं और पितरों की सामर्थ्य सीमित है, क्योंकि उनके पास शरीर नही है, वो स्वर्ग के अधिकारी तो हैं किन्तु मोक्ष प्राप्त नही कर सकते। पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि अनन्तता के उपार्जन हेतु हमें निरंतर शुभ कर्म करते रहना चाहिए। धर्म की एक विशेषता यह भी है कि यह संत-सत्पुरुषों के सान्निध्य में ही जागृत होता है। मन की प्रवृत्तियां स्वभावतः पतन की है, वह हेय वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है, इसलिए धर्म का अवलम्बन लीजिए, क्योंकि धर्म से ही जीवन में दिव्यता का आरोहण होता है।
अजामिल उपाख्यान का वर्णन करते हुए पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि सैद्धांतिक निष्ठा के अभाव में व्यक्ति किस प्रकार पदभ्रष्ट हो जाता है, तदनन्तर ‘पूज्यश्री’ जी सत्संग और संगदोष का विवेचन करते हुए कहते हैं कि सदाचार सहेजकर रखने की वस्तु है। प्रायः संग दोष के कारण व्यक्ति पदभ्रष्ट हो जाता है।

वृत्तासुर का प्रसंग सुनाते हुए पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि वृत्तियों की असुरता ही वृत्तासुर है, उसे विवेक के द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है। जो सहज है, अकाम है जिसने कभी क्रोध न किया हो उन्हीं महात्मा दधीचि की अस्थियों द्वारा वृत्तासुर का वध किया जा सकता है। हिरण्यकश्यप उपाख्यान के माध्यम से पूज्य “आचार्यश्री” जी ने भक्त प्रह्लाद के विलक्षण भक्तियोग का निरूपण भी किया।
इस अवसर पर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा पूजनीया महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि जी, महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अपूर्वानन्द गिरि जी, पूज्य स्वामी सोमदेव गिरि जी, पूज्य स्वामी कैलाशानन्द गिरि जी, कथा के मुख्य यजमान श्री अशोक डांगी जी, श्रीमती अनीता डांगी जी एवं लोकसभा अध्यक्ष माननीय श्री ओम बिरला जी की सहधर्मिणी श्रीमती अमिता बिरला जी, न्यासी गण समवेत बड़ी संख्या में साधक उपस्थित रहे।