यदि पात्रता नहीं है तो प्राप्त हुआ वह पद चाहे कितना ही महान क्यू न हो वह स्वयं समाप्त हो जाया करती है-राजन जी महाराज

जो अपने श्रेष्ठ की अनुपस्थिति को भी मानसिक रूप से उपस्थिति मानकर संस्कारवान बना रहता है वहीं सही मायने में सच्चा संस्कारी होता है, उक्त बातें स्थानीय नगर के लंका मैदान में चल रहे नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन श्रीरामचरितमानस के आदर्श पात्र भईया भरत जी के चरित्र प्रसंग पर कथा करते हुए कथा सम्राट मानस मर्मज्ञ पूज्य श्री राजन जी महाराज ने कही,कथा को आगे बढ़ाते हुए पूज्य महाराज ने कहा कि भरत एक ऐसे भाई थे जो अपने ज्येष्ठ भ्राता प्रभु श्रीराम को भाई के स्थान पर उन्हें अपना स्वामी मानते थे और स्वयं को उनका सेवक,उनका मानना था कि जीवन में सेवक को कभी भी अपने स्वामी की बराबरी नहीं करनी चाहिए यही कारण था कि प्रभु राम के वनगमन उपरांत तमाम प्रयासों के बावजूद भी उन्होंने अयोध्या की राज सत्ता को कदापि स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका यह मानना था कि जीवन में जब भी कोई पद मिलें चाहे वह राजपद ही क्यों न हो पद प्राप्त करने से पहले व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि क्या मुझमें इस पद को प्राप्त करने की पात्रता है अथवा नहीं यदि पात्रता नहीं है तो प्राप्त हुआ वह पद चाहे कितना ही महान क्यू न हो वह स्वयं समाप्त हो जाया करती है,

कथा में आज के मुख्य सपत्नीक यजमान श्री अनिल श्रीवास्तव द्वारा व्यासपीठ, पवित्र रामचरितमानस एवं कथा मंडप की आरती उपरांत आरम्भ हुयें कथा के अवसर पर कथा पंडाल में कथा समिति के सदस्य आलोक सिंह, सुधीर श्रीवास्तव, शशिकांत वर्मा, संजीव त्रिपाठी, राकेश जायसवाल, आकाशमणि त्रिपाठी, दुर्गेश श्रीवास्तव, आशीष वर्मा, मंजीत चौरसिया, अनिल वर्मा,अमित वर्मा, सुजीत तिवारी, राघवेंद्र यादव, कमलेश वर्मा, मीडिया प्रभारी पूर्व छात्र संघ उपाध्यक्ष दीपक उपाध्याय सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।