छठ पूजा क्यों मनाया जा ता है? क्या है इसका पौराणिक महत्व,लाभ और छठ पूजा की विधि

छठ पूजा क्यों मनाया जा ता है? क्या है इसका पौराणिक महत्व,लाभ और छठ पूजा की विधि   भारत की एक विशेष बात यह हैं कि यहा कई धर्मो और सभ्यताओं को मानने वाले लोग एक साथ मिलकर रहते है और देश की अखंडता का प्रमाण देते हैं। क्योंकि देश मे कई धर्मो और मान्यताओं को मानने वाले लोग निवास करते हैं तो जाहिर है कि वह कई तरह के त्यौहार भी मनाते हैं और इसी वजह से भारत को त्यौहारों का देश भी कहा जाता हैं। भारत के एक बड़े भूभाग बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रमुख और लोकप्रिय त्यौहार छठ पूजा का त्यौहार भी हैं। छठ पूजा सनातन धर्म से जुड़ा हुआ एक प्रमुख त्यौहार हैं जिसमे सूर्य व प्रकति की उपासना और आराधना को महत्व दिया जाता हैं। छठ पूजा का त्यौहार कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को दीवाली के बाद मनाया जाता हैं। यह देश मे मनाए जाने वाले उन पर्वो में से एक हैं जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं। इस पर्व में मूर्ति पूजा का कोई महत्व नहीं है। छठ पूजा के त्यौहार का तात्पर्य मुख्य रूप से सूर्य की उपासना और आराधना से हैं। इस पर्व के दिन भारी तादात में व्रत भी रखे जाते हैं। वैसे तो छठ पूजा का त्यौहार झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी मनाया जाता हैं लेकिन इस त्यौहार को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह बिहार राज्य में देखा जाता है। इस त्यौहार को बिहार की संस्कृति का प्रतीक माना जाता हैं। यह कहा जा सकता हैं कि छठ पूजा के त्यौहार को बिहार में होली-दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों की तरह मनाया जाता हैं। इस सनातनी त्यौहार को सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और इनकी बहन माता छठी (षष्टि) को समर्पित माना जाता है।
छठपूजा का त्यौहार भारत मे मनाए जाने वाले मुख्य त्यौहारों में से एक है और बिहार में तो यह त्यौहार अपना एक अलग ही महत्व रखता है। काफी सारे ऐसे लोग हैं जो छठपूजा के त्यौहार को मनाते तो हैं लेकिन ‘छठ पूजा क्यों मनाया जाता हैं’ के विषय के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं रखते। दरअसल सनातन धर्म विश्व के सबसे पुराने और सबसे महान धर्मो में से एक हैं। सनातन धर्म के अनुयायी शुरुआत से प्रकृति को पूजते है और उन्हें देवता स्वरूप मानते हैं। आधुनिक विज्ञान कहता हैं कि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं तो ऐसे में हमे सब कुछ सूर्य व प्रकृति से मिलता हैं। यह बात हमारा धर्म सालो से कहता आया है और जो हमे इतना सबकुछ देते हैं उन्ही का धन्यवाद और उपासना करने के लिए छठपूजा का त्यौहार मनाया जाता हैं। उस त्यौहार पर सूर्य के साथ उषा, प्रकृति, जल और वायु आदि जीवनदायी तत्वों का धन्यवाद और उपासना की जाती हैं। आज के समय में दुनिया मे कई धर्मो और मान्यताओं को मानने वाले लोग रहते है लेकिन यह बात सभी स्वीकार करते हैं कि सनातन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मो में से एक हैं और सबसे विकसित सभ्यताओं का भाग भी रह चुका हैं। सनातन धर्म के बारे में हम सभी भली भांति जानते हैं कि यह धर्म दुनिया के सबसे महान धर्मो में से एक हैं जो ज्ञान, सभ्यताओं और संस्कारों से भरपूर हैं। सनातन धर्म से जुड़े हुए हर एक त्यौहार का अपना एक महत्व होता है और यही मामला हैं छठ पूजा के साथ। जैसा कि हमने आपको बताया कि छठ पूजा के त्यौहार को सूर्य व अन्य प्रकृति के तत्वों की उपासना और धन्यवाद करने के लिये मनाया जाता हैं। यह त्यौहार देश मे मनाये जाने वाले प्रकृति से जुड़े हुए सबसे बड़े त्यौहारों में से एक हैं जो वैदिक काल से चला आ रहा हैं। छठ पूजा का त्यौहार लोगो को सिखाता हैं कि हमे सूर्य व प्रकृति का सम्मान करना चाहिए। ना केवल प्रकृति के सम्मान हेतु यह त्यौहार प्रेरणा देता हैं बल्कि यह उपदेश भी देता हैं कि जो हमे सब कुछ दे रहा हैं हम उन्हें सम्मान करना चाहिए और हमेशा उनके प्रति समर्पित रहना चाहिये। आज के समय मे जहा लोग अपने स्वार्थ हेतु प्रकृति को लगातार नुक्सान पहुचा रहे हैं वही इस तरह के त्यौहार हमे प्रकृति का सम्मान करने और उसका बचाव करने का उपदेश देते हैं।
सनातन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन धर्मो में से एक हैं और इस बात का प्रमाण इसी बात से मिल जाता है कि जब कई धर्मों की स्थापना तक नहीं हुई थी उससे सैकड़ों सालों पुराने मंदिर हमारे देश में आज भी मौजूद है। सनातन धर्म से संबंधित हर त्यौहार के बारे में एक खास बात यह भी है कि इनसे कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी होती है जो इनके पौराणिक महत्व को बढ़ा देती है। अगर बात की जाए छठ पूजा से संबंधित पौराणिक कथाओं की तो वह कुछ इस प्रकार है: छठ पूजा की कथा राजा प्रियंवद की कहानी छठ पर्व की शुरुआत कैसे हुआ इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। वेद-पुराण में छठ पूजा करने के पीछे की कहानी को राजा प्रियंवद से जुडी बताई गई है। कथा के अनुसार राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब वह महर्षि कश्यप से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं एवं ततपश्चात महर्षि ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद स्वरुप खाने को दी। जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई परन्तु उन्हें मरा हुआ पुत्र पैदा हुआ। प्रियंवद मरे हुए पुत्र को देखकर बहुत ही दुखी हुए एवं उस पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में वे स्वयं के प्राण त्यागने लगे। तभी भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इस कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा प्रियंवद को उनकी पूजा करने और दूसरों को उनकी पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। देवी षष्टी मैया के आशीर्वाद से राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की छठ व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि ये पूजा राजा प्रियंवद ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी और तभी से छठ पूजा होना प्रारम्भ हो गया। छठ पूजा क्यों मनाया जाता है इससे सम्बंधित और भी कई कथाएं प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं –
रामायण से सम्बंधित छठ पूजा कथा रामायण सनातन धर्म के सबसे महान ग्रंथों में से एक है और इस ग्रंथ के एक भाग में छठ पूजा का महत्व भी समाया हुआ है। मान्यता के अनुसार लंका को जीतने के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता के साथ भगवान राम ने उपवास किया था और सूर्यदेव की आराधना की थी। इसी के बाद से छठ पूजा का त्यौहार मनाया जाने लगा। महाभारत से संबंधित छठ पूजा कथा सनातन धर्म के एक लोकप्रिय ग्रंथ महाभारत में भी छठ पूजा का महत्व झलकता हैं। कहा जाता हैं कि वीर कर्ण भगवान सूर्य का परमभक्त था और उन्ही ने भगवान सूर्य की पूजा शुरू की थी। इसके अलावा एक कथा यह भी है कि द्रोपदी ने पांडवों को राजपाट वापस दिलाने की कामना से पहली बार छठ पूजा का व्रत रखा था और सूर्य की आराधना की थी जिसका फल बाद में पांडवों को मिला भी था।

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