June 19, 2025

श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से मनुष्य में सद्गुणों का विकास होता है-फलाहारी बाबा

गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील अंतर्गत बगेन्द में आयोजित सरस संगीतमय श्रीमद्भागवत के प्रथम दिवस पर भागवत्वेत्ता.मानस मर्मज्ञ अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवरामदास जी फलाहारी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को ज्ञान एवं वैराग्य की कथा रूपी अमृत का पान कराते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा के वाचन व श्रवण से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ती हो जाती है। संसार दु:खों का सागर है। प्रत्येक प्राणी किसी न किसी तरह से दुखी व परेशान है। कोई स्वास्थ्य से दुखी है, कोई परिवार, कोई धन, तो कोई संतान को लेकर परेशान है। सभी परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए ईश्वर की आराधना ही एकमात्र मार्ग है। इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन का कुछ समय हरिभजन में लगाना चाहिए।उन्होंने कहा की मनुष्य में ज्ञान के साथ प्रेम का होना अति आवश्यक है। प्रेमरहित ज्ञान मनुष्य को अभिमान की ओर अग्रसर करता है। मनुष्य जिस वस्तु पर घमंड करता है। वह वस्तु उसका साथ नहीं देती। उसका पतन हो जाता है। घमंड पतन का कारण है। भागवत कथा मनुष्य को अभिमानरहित बनाती है। भागवत के कथा श्रवण से मनुष्य में सद्गुणों का विकास होता है। भागवत मनुष्य के वास्तविक लक्ष्य का आभास कराती है।
पूज्य फलाहारी बाबा ने कहा कि भागवत कथा वह अमृत है, जिसके पान से भय, भूख, रोग व संताप सब कुछ स्वत: ही नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को मन, बुद्धि, चित एकाग्र कर अपने आप को ईश्वर के चरणों में समर्पित करते हुए भागवत कथा को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। श्रीमद भागवत कथा के श्रवण से महापापी धुंधुकारी का भी उद्धार हो गया। कथा व्यास ने बताया कि धुंधुकारी अति दुष्ट था। उसके पिता आत्मदेव भी उसके उत्पातों से दुखी होकर वन में चले गए थे। धुंधुकारी वेश्याओं के साथ रहकर भोगों में डूब गया और एक दिन उन्हीं के द्वारा मार डाला गया। अपने कुकर्मों के फलस्वरूप वह प्रेत बन गया और भूख प्यास से व्याकुल रहने लगा। एक दिन व्याकुल धुंधुकारी अपने भाई गोकर्ण के पास पहुंचा और संकेत रूप में अपनी व्यथा सुनाकर उससे सहायता की याचना की। गोकर्ण धुंधुकारी के दुष्कर्मों को पहले से ही जानते थे, इसलिए धुंधुकारी की मुक्ति के लिए गया श्राद्ध पहले ही कर चुके थे। लेकिन इस समय प्रेत रूप में धुंधुकारी को पाकर गया श्राद्ध की निष्फलता देख उन्होंने पुन: विचार विमर्श किया। अंत में स्वयं सूर्य नारायण ने गोकर्ण को निर्देश किया कि श्रीमद्भागवत का पारायण कीजिए। उसका श्रवण मनन करने से ही मुक्ति होगी। श्रीमद् भागवत का पारायण हुआ। गोकर्ण वक्ता बने और धुंधुकारी ने वायु रूप होने के कारण एक सात गांठों वाले बांस के भीतर बैठकर कथा का श्रवण मनन किया। सात दिनों में एक-एक करके बांस की सातों गांठे फट गईं। धुंधुकारी भागवत के श्रवण मनन से सात दिनों में सात गांठे फोड़कर, पवित्र होकर, प्रेत योनि से मुक्त होकर भगवान के वैकुण्ठ धाम में चला गया।

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