अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन हुआ था भगवान राम-सीता का विवाह-फलाहारी बाबा

अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन हुआ था भगवान राम-सीता का विवाह-फलाहारी बाबा

अयोध्या वासी मानस मर्मज्ञ भागवतवेत्ता महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने बताया की मार्गशीर्ष अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान राम एवं जनकनंदनी जानकी सीता का विवाह हुआ था।तभी से इस पंचमी को विवाह पंचमी पर्व के रूप में पूरे देश में बहुत ही श्रद्धा पूर्ण तरीके से मनाया जाता है।इस दिन भारत में अनेक स्थानों पर विवाह पंचमी को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था।जिसका वर्णन श्री रामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने बड़े ही सुंदरता से किया है।श्री रामचरितमानस के अनुसार महाराजा जनक ने सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया।सीता स्वयंवर में देश देश से पधारे सभी राजा महाराजा जब भगवान शिव का धनुष नहीं उठा पाये।तब महर्षि विश्वामित्र ने प्रभु श्री राम से आज्ञा देते हुवे कहा की हे राम उठो और इस शिव धनुष को तोड कर राजा जनक का संताप दूर करो।गुरू विश्वामित्र के वचन सुनकर श्री राम तत्पर उठे और धनुष पर प्रत्यंचा चढाने के लिए आगे बढ़े यह देख कर सीता जी के मन में उल्लास छा गया।प्रभु श्रीराम की तरफ देख कर सीता जी ने मन ही मन निश्चय किया की यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या तो रहेगा ही नहीं.माता सीता के मन की बात प्रभु श्री राम जान गये और उन्होंने देखते ही देखते भगवान शिव का महान धनुष उठाया।इसके बाद उस पर प्रत्यंचा चढाते ही एक भयंकर आवाज के साथ वह धनुष टूट गया।यह देख कर सीता जी के मन को संतोष हुआ।फिर सीता श्रीराम के निकट आई।सखियों के बीच जनक नंदिनी सीता ऐसी शोभित हो रही थी जैसे बहुत सी छवियों के बीच में महाछवि हो।तब एक सखी ने सीता से जयमाल पहनाने को कहा।उस समय उनके हाथ ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो डंडियो सहित दो कमल चंद्रमा को डरते हुए जयमाला दे रहे हो।तब सीता जी ने श्रीराम के गले में जयमाला पहना दी।यह दृश्य देख कर देवता भी फूल बरसाने लगे।नगर और आकाश में बाजे बजने लगे।श्रीराम और सीता की जोडी इस प्रकार सुशोभित हो रही थी मानो सुंदरता और श्रृंगार रस एकत्र हो गये हों।पृथ्वी स्वर्ग पाताल में यश फैल गया की श्रीराम ने धनुष तोड दिया और सीता का वरण कर लिया।फलाहारी जी महाराज ने आगे कहा की मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सीता के विवाह के कारण ही यह दिन अत्यंत शुभ एवम पवित्र माना जाता है।भारतीय संस्कृति में राम सीता आदर्श दम्पति माने गये हैं।जिस प्रकार प्रभु श्रीराम ने सदा मर्यादा पालन करके पुरूषोत्तम का पद पाया उसी तरह माता सीता ने सारे संसार के समक्ष पतिव्रत स्त्री होने का सर्वोपरि उदाहरण प्रस्तुत किया है।

About Post Author