June 19, 2025

जब हम कहीं से निराश होते हैं, दुखी होते हैं ,तो ईश्वर और संत की शरण में चले जाते हैं-प्रोफेसर सानंद सिंह

IMG-20230913-WA0025

जब हम कहीं से निराश होते हैं, दुखी होते हैं ,तो ईश्वर और संत की शरण में चले जाते हैं-प्रोफेसर सानंद सिंह

बाबा कीनाराम जी की जयंती जन्मदिन समारोह के शुभ अवसर पर, गाजीपुर जनपद की तपोभूमि रामपुर माझा में एक समारोह का आयोजन स्थानीय भगवान कीनाराम जी के भक्तों के द्वारा आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सत्यदेव ग्रुप आफ कॉलेजेस गाजीपुर के प्रबंध निदेशक डॉक्टर सानंद सिंह ने किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर सदानंद शाही रहे ।

 


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर नंदलाल सिंह रसायन विज्ञान विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी रहे ।
आज के इस कार्यक्रम का संचालन गाजीपुर जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता रामाश्रय सिंह ने किया ।
कार्यक्रम में राधा शंकर सिंह और अनेक स्थानीय जनप्रतिनिधि, भगवान के भक्ति और जनता जनार्दन माता बहनों की उपस्थिति विद्यार्थियों के साथ सराहनीय रही ।
ऐसे कार्यक्रमों में अघोर पंथ के गाजीपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता रणजीत सिंह सेवक से आयोजक के रूप में बने रहते हैं ।।
आज अतिथियों के आगमन से लेकर के उनकी देखरेख में, सकुशल संपन्न हुआ ।।
स्थानीय स्तर पर, अनेक विद्यालयों के बच्चे ने अपना रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया ।
आज के इस अघोर परंपरा के बौद्धिक आयोजन में ,,सर्वप्रथम अध्यक्ष उद्बोधन ,प्रोफेसर सानंद सिंह ने दिया । उन्होंने बताया की हमारे दुखों से मुक्ति का मार्ग संतों के सत्संग और आचरण से हमें प्राप्त होता रहा है ।

 


भारत के प्राचीनतम इतिहास की ओर हम नजर डालते हैं, तो अनेक संतों का आविर्भाव भारत की भूमि पर हुआ है ,जिन्होंने जनता को अपने संदेशों के माध्यम से उनकी पीड़ा को समाप्त किया है ।।
मध्यकालीन संतों में गुरु गोरखनाथ से गुरु नानक देव जी कबीर दास जी ,सूरदास जी, मीराबाई रसखान तुकाराम, तुलसीदास, बाबा कीनाराम जी ने अनवरत जनता को मुक्ति का मार्ग दिया है ।
तत्कालीन मध्यकालीन समय में, मुगलों के शासन में जनता के दुख को कोई सुनने वाला नहीं था । क्योंकि सम्राट के अंतर्गत ही व्यवस्थापिका कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्ति थी ।
राजा ही सब कुछ था ।ऐसे समय में जनता जब दुखी हो जाती थी ,तो सिर्फ उसके सामने संतों के चरण ही रहते थे
बाबा कीनाराम जी ने अपने प्रभाव और चमत्कारों से जनता का विश्वास जीता और अपनी शरण में आए हुए सभी का उनकी समस्याओं का समाधान का रास्ता दिया ।भगवान कीनाराम जी एक ऐसे संत हुए हैं जो रामानुज संप्रदाय के बाबा शिवराम बाबा से दीक्षित होने के बाद कालूराम बाबा के अघोर परंपरा तक के जीवन से दीक्षित होते हैं ।।
ऐसे संत जो भगवान विष्णु और भगवान शिव के दोनों रूपों को एकत्रित करते हैं ।
ऐसा अवसर विश्व के लिए यह पहला रहा होगा, आज के वर्तमान युग में तत्कालीन से समय समय से चली आ रही है परंपरा आज भी है कि जब हम कहीं से निराश होते हैं, दुखी होते हैं ,तो ईश्वर और संत की शरण में चले जाते हैं ।।
मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर सदानंद शाही ने अघोर शब्द की परिभाषा से अपने उद्बोधन की शुरुआत की और उन्होंने यह बताया की बाबा कीनाराम ने जन गण मन की अशांति को ,अपने साधना पथ से मुक्ति प्रदान किया ।
अपने चमत्कारिक प्रभावों से जनता के दुखों को समाप्त किया ।
बाबा कीनाराम कहते हैं कि संतोष ही सुख सुख है ।भगवान और भक्ति में कोई फर्क नहीं है । भगवान ने भक्त को बनाया है और भक्तों ने भगवान को ।
देश का किसान जो जमीन में अनाज पैदा करता है और उसे अनाज से सभी का जीवन चलता है । उसमें भी ईश्वरीय शक्ति है ।
बाबा कीनाराम की वाणी आज के इस वर्तमान कालखंड में भी प्रासंगिक है ।
जब मन की निराशा आगे बढ़ती है ,तो बाबा के दिखाए गए ,रास्ते और संदेश हमें शक्ति प्रदान करते हैं ।

 


कार्यक्रम के विशिष्ट काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोफेसर नंदलाल सिंह ने अपने उद्बोधन में अघोर परंपरा में संतो के द्वारा किए गए आचरण और संदेशों की जनता के बीच में चर्चा किया और यह बताया यह संत अपने प्रभावों के माध्यम से दुखी जनता की जीवन पर्यंत सेवा करके ईश्वरीय रूप में धरती पर कार्य किए हैं ।
अतिथियों का सम्मान कार्यक्रम के संयोजक रणजीत सिंह और स्थानीय अभिभावक के माध्यम से ,सभी को स्मृति चिन्ह और अंग वस्त्रम से किया गया और सभी ने प्रसाद ग्रहण करके बाबा का ईश्वरी आशीर्वाद प्राप्त किया ।

About Post Author