June 19, 2025

मनु के चार धर्मो को चरितार्थ करने के लिए भगवान अंशो के सहित प्रकट हुए-गंगा पुत्र त्रिदंडी स्वामी

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मनु के चार धर्मो को चरितार्थ करने के लिए भगवान अंशो के सहित प्रकट हुए-गंगा पुत्र त्रिदंडी स्वामी

महर्षि विश्वामित्र की तपस्थली बक्सर के राजपुर ब्लाक के पिपराढ में श्री श्री 1008 गंगा पुत्र श्री लक्ष्मी नारायण त्रिदंडी स्वामी ने उपस्थित श्रोताओं से कहा की
सृष्टि के प्रारंभ में ब्रम्हा ने अपने शरीर के दो भाग किए तब मनु शतरूपा हुए।मनु और सतरूपा ने तप किया और भगवान से कहा आप हमारे यहां बेटा बन के आओ।हमे पीड़ा है हमने मनु स्मृति लिखा है,लेकिन मनुष्य तो कर नही सकते ,तो आप बेटा बन के आओ और पालन करके दिखाओ।जिसमे राम जी का आचरण अनुरूप है।राम जी ने उस धर्म को चार रूपो में प्रकट किया।इसीलिए रामो विग्रह्वान धर्मः।1,सामान्य धर्म,2,विशेष धर्म,सामान्य धर्म तो नीव है,लक्ष्मण जी का धर्म विशेष धर्म है,राम जी ने कहा हे लक्ष्मण मै तो पिता के सत्य में बंधा हुआ हू,मैं तो 14वर्ष के लिए वन में जाऊंगा, भरत शत्रुघ्न यहां है नही, इस लिए वे धर्म में बंधे है नही,जब आयेंगे तो उनपर भार होगा, इस बीच माता पिता की देख रेख कौन करेगा।अब तुम्हारा धर्म है पिता का ध्यान रखो, मैं बस यही जनता हूं,
माता रामो मत पिता राम चंद्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।

 

 


राम जी ने कहा ऐसा करोगे तो संसार में तुम्हारी अपकीर्ति होगी, नरक जाना पड़ेगा, हमे तो बस आप और आपकी सेवा चाहिए। भरत जी का धर्म विशेषतर धर्म है, भरत जी ने तो वल्कल वस्त्र धारण कर लिया, जटा बना ली।पर शत्रुध्न जी का धर्म विशेषतम धर्म है। शत्रुघ्न जी तो राज वस्त्र धारण करते है,नृत्य गान देखते है, हसनें वालो को बुला कर हंसी नाटक करवाते है।क्यों 14साल बाद राम जी आयेंगे और तुम सब रोवोगे तो स्वर्ग से विदूषक आवेंगे तुम्हारा अधिकार छीन जायेगा। इसलिए इतना अभ्यास करो की तुम्हारी कला को देख राम जी खिलखिला कर हंस पड़े। राम जी के वियोग में गाए चारा नही खाती ,जल नही पीती ,शत्रुघ्न जी उनके गले से लिपट जाते हैं , अरे आप चारा नही खाएंगी और कही शरीर छूट गया और राम जी आयेंगे और आपको नही देखेंगे तो उनको कितना कष्ट होगा। राम जी को रुलाना चाहती है, तब गाए चारा खाना प्रारंभ करती है,ऐसे ही सबको सांत्वना देते है ,घोड़ों को हाथी को और शाम को दिन भर की सूचना भरत को सुनाते है,और रात भर राम और भरत के विरह ताप में हा राम हा भरत करते रात भर रोते है और फिर सुबह मुस्कुराते हुए सबको सांत्वना देते है। ये है दिव्य शत्रूघ्न जी का चरित्र।

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