कर्मयोगी डुमरांव महाराजा कमल सिंह की आज 94 वी जयन्ती

विकास राय –पौराणिक एवं ऐतिहासिक काल से ही बिहार की उर्वरा धरती को अनेक ऋषियों, महर्षियों, राजर्षियों एवं कर्म योगियों की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त रहा है। यह परंपरा आधुनिक काल मे भी सतत गतिशील है। देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, बिहार केसरी डॉ श्री कृष्ण सिंह जैसी महान विभूतियों के रूप में बिहार ने राष्ट्र को महान सपूतों को दिया है। ऐसे ही लोगों ने लोक सेवा के क्षेत्र में मिल का पत्थर बनने का आदर्श उपस्थित किया है। इसी गौरवशाली परम्परा की एक अन्यतम पहचान महाराजा बहादुर कमल सिंह हैं। जीवन के 93 बसन्त देख चुके महाराजा बहादुर कमल सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं।

महाराजा कमल सिंह का जन्म 29 सितम्बर 1926 को डुमरांव राजगढ में हुवा था

राजमहल में जन्म पाकर भी वैभव विलास से निर्लिप्त इस महान कर्मयोगी का जन्म 29 सितंबर 1926 को डुमरांव राजगढ़ में हुआ था। आप महाराजा बहादुर रामरण विजय सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र थे।आपकी माता का नाम महारानी कनक कुमारी था। आपकेे पितामह महाराजा बहादुर सर केशव प्रसाद सिंह थे। आपकी शिक्षा-दीक्षा उस समय के राष्ट्रीय स्तर के विद्यालय कर्नल ब्राउन्स स्कूल देहरादून में आठ वर्ष की अवस्था से प्रारंभ हुई। विद्यालयी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात देहरादून के ही डीo. एo. वीo इंटर कॉलेज से इंटर की शिक्षा पूर्ण हुई। तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नामांकन कराया गया। स्नातक स्तर पर आपके अध्ययन के विषय अंग्रेजी,इतिहास और राजनीति शास्त्र थे।

9 मई 1946 को महाराजा कमल सिंह महारानी उषा रानी के संग प्रणय सूत्र में आबद्ध हुए

डुमरांव महाराजा कमल सिंह एवं महारानी उषा रानी की फाईल फोटो

शिक्षा समाप्ति के पश्चात 9 मई 1946 को आप महारानी उषा रानी के संग प्रणय सूत्र में आबद्ध हुए और इसके साथ ही रियासत के कार्यों में सक्रिय भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। पिता श्री के निधन के पश्चात आपने महाराजा के रूप में राज प्रशासन का भार ग्रहण किया।

यदि आज कहा जाए तो आपका जीवन एक राजर्षि जैसा था। समय निष्ठा एवं कर्म निष्ठा आपके जीवन के दो विशेष पहलू थे जिनका आज के जीवन मे घोर अभाव सा हम पाते हैं। शिष्टता और सौम्यता की प्रतिमूर्ति महाराज एक साधारण से व्यक्ति को भी पूरा मान सम्मान देना बखूबी जानते थे। प्रदर्शन या दिखावे से कोसो दूर कर्म में ही आपकी गहरी आस्था थी।
महाराजा बहादुर का सामाजिक जीवन अत्यंत विस्तृत और विशाल था। आपकी स्मरणशक्ति बेजोड़ थी। एक बार जो आपसे मिल लेता था वो आपके उदार और आपके आत्मीयता पूर्ण व्यहार से निहाल हो जाता था। सामाजिक संबंधों का आप भरपूर ध्यान रखते थे। यही कारण है कि आपके लोग आपका बनकर रहने में गर्व की अनुभूति करते थे।


राजनीति आपको विरासत में प्राप्त हुई थी। आपके पितामह महाराजा सर केशव प्रसाद सिंह जी गवर्नर की कार्यकारिणी समिति के वित्त सदस्य थे। आपके पिता महाराजा रामरण विजय सिंह भी सेंट्रल एसेम्बली के सदस्य थे।

1952 से 1962 तक आप लोक सभा सदस्य रहे

यही कारण है कि भारतीय संविधान के तहत प्रथम आम चुनाव की घोषणा होने पर आपने बक्सर संसदीय क्षेत्र से 1952 में चुनाव लड़ा और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विजयी घोषित किये गए। पुनः 1957 के द्वितीय आम चुनाव में भी बक्सर लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में विजय श्री का हार पहना।

एक सांसद के रूप में आपका कार्यकाल सक्रियता से भरा रहा। क्षेत्र के विकास के लिए आपने संसद के भीतर और बाहर पूरी दक्षता के साथ कार्य किया। लोकसेवा के क्षेत्र में महाराज बहादुर का अवदान महान है। सच पूछा जाए तो जमींदारी उन्मूलन के बाद भी महाराजा ने शिक्षा के क्षेत्र में जो अमिट दान दिया वो स्वयं में एक किर्तिमान स्थापित करता है। आप ने महाराजा कॉलेज आरा को 21 बीघा से कुछ अधिक भूमि दान दिया। कुंवर सिंह इंटर कॉलेज बलिया को अपनी कचहरी की भूमि भवन सहित दान दिया। एम.वी. कॉलेज बक्सर को चरित्रवन स्थित अपनी पूरी जमीन दान कर दिया।

डुमरांव राज उच्च विद्यालय में विज्ञान भवन के साथ ही खेल कूद के विकास हेतु पृथ्वी सिंह पवैलियन का निर्माण कराया, डुमरांव राज संस्कृत उच्च विद्यालय को भूमि दान किया। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी आपका योगदान सराहनीय एवं प्रेरक है। सर्वप्रथम आपने यक्ष्मा रोगियों हेतु निर्मित मेथोडिस्ट अस्पताल, प्रतापसागर(बक्सर) के लिए विशाल तालाब सहित पूरी जमीन दान कर दिया। वर्षों से लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर डुमरांव राज अस्पताल में एक्सरे क्लिनिक का निर्माण कराया जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था। वेटनरी अस्पताल पटना को अपने कीमती घोड़ों को दान में दिया। डॉ रघुवीर सिंह चिकित्सालय, डुमरांव के निर्माण हेतु भूमि का दान दिया।

5 जनवरी 2020 को आपका 93वर्ष 3 माह की उम्र में देहान्त हो गया।वर्तमान में आपका परिवार भरा पूरा है। आपके दो सुपुत्र युवराज चन्द्रविजय सिंह और महाराज कुमार मानविजय सिंह जी हैं। पौत्रों में सुमेर विजय सिंह . शिवांग विजय सिंह , एवं समृद्ध विजय सिंह हैं। पौत्री आकृति सिंह एवं रोहिणी सिंह तथा प्रपौत्र में ध्रुव विजय सिंह एवं प्रपौत्री सुभाँगना है।

आज आप हमारे बीच नहीं हैं। डुमरांव समेत बक्सर के विशाल वृक्ष के आश्रय में पल रहे समस्त जन छायाविहीन हो गए। आपके श्री चरणों में श्रद्धा के दो फूल सादर समर्पित करते हुए आपकी 94 वी जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुवे आपकी स्मृतियों को नमन् करते हुवे ईश्वर से आपकी आत्मा को सद्गति प्रदान करने की अश्रुपूरित कामना करता हूं।
@विकास राय

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