June 19, 2025

संकष्टी गणेश चतुर्थी : औघड़दानी की नगरी में प्रथमेश की पूजा

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संकष्टी गणेश चतुर्थी : औघड़दानी की नगरी में प्रथमेश की पूजा

संतान की कुशलता के लिए महिलाओं ने रखा व्रत, मंदिरों में लगी लंबी कतार

भारतीय संस्कृति के हिंदू धर्मशास्त्रों में पंचदेवों में प्रथम पूज्य देव भगवान श्रीगणेशजी की अनन्त गुण विभूषित माना गया है। सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक परंपरा है। चतुर्थी तिथि प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी को समर्पित है। प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत रखने की मान्यता है। इस दिन गणेश जी की उपासना करने से जीवन के संकट टल जाते हैं।

साथ ही संतान की प्राप्ती होती है और संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं। धर्म नगरी काशी में मंगलवार को सुबह से ही गणेश मंदिरों में काफ़ी भीड़ उमड़ी। लोहटिया स्थित “बड़ा गणेश मंदिर” एवं सोनारपुरा स्थित चिंतामणि गणेश मंदिर के अलावा अन्य गणेश मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालु व व्रती महिलाओं की लंबी कतारें लग गई थी। सभी ने भगवान को गुड़ और तिल के लड्डू के साथ मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाकर उनका पूजन अर्चन की। इसके साथ ही दुर्गाकुंड स्थित दुर्गविनायक गणेश मंदिर में भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

साथ ही मंदिरों के बाहर भगवान गणेश की प्रतिमा माला फूल आदि की दुकानें भी सजी हुई थी। वहीं बड़ा गणेश मंदिर के पुजारी पंडित रामानाथ दुबे ने बताया कि आज प्रातः काल भोर में 3 बजे भगवन गणेश का भव्य श्रृंगार करके पंचामृत से स्नान कराकर भव्य आरती पूजन करके बाबा का कपाट 4 बजे से भक्तों के लिए खुल गया था। श्रीनारदीय पुराण में वर्णित महर्षि व्यास के कथनानुसार द्वापर के महाभारत काल में सर्व प्रथम द्रौपदी समेत पांडवों ने इस व्रत को किया था।

इसके प्रताप से कौरवों की महाभारत में पराजय व पांडवों को राज्याधिकार एवं द्रौपदी के पांचों पति महाभारत का युद्ध जीतने के बाद भी दीर्घायु रहे। लोक मान्यता है कि माघ कृष्ण चौथ पर महिलाएं संतति की दीर्घायु व संतान सुख के लिए साथ ही सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति के निमित्त इस व्रत को करती हैं। इस व्रत से जीवन में आने वाली समस्त विघ्न बाधाओं से मुक्ति के साथ सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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