June 24, 2025

महामंडलेश्वर भवानीनंदन यति जी का अवतरण दिवस आज

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महामंडलेश्वर भवानीनंदन यति जी का अवतरण दिवस आज

 

गाजीपुर-भारतीय समाज सदियों से चरित्र को पूजता आ रहा है।जिस चरित्र का चिंतन समष्टि केंद्रित होता है उसे सदैव आदर और सम्मान के साथ पूजा जाता है।जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामण्डलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति जी महाराज एक ऐसे ही सन्त हैं जिनका चिंतन समष्टि केंद्रित है।उनका जन्मोत्सव प्रति वर्ष भादों शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को सिद्धपीठ हथियाराम ,गाजीपुर स्थित मठ परिसर में भक्तों तथा अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।आज उनका जन्मदिवस है।यह देखा गया है कि जूना अखाड़े के अधिकांश आश्रम दुर्गम क्षेत्रों में हैं।किसी जमाने में यहाँ रहना बेहद मुश्किल रहा होगा।लेकिन अखाड़े के सन्यासियों ने कठोर अनुशासन के बल पर यहाँ रहते हुए साधना की तथा राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए अपना योगदान दिया है।घने जंगलों के बीच आज से आठ नौ सौ साल पहले बेसों के किनारे गाजीपुर जनपद में हथियाराम मठ की भी स्थापना हुई होगी जिसके छब्बीसवें पीठाधीश्वर के रूप में महामण्डलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति वर्य विद्यमान हैं।महाराज श्री को काशी विद्वत परिषद द्वारा विद्वत वत्सल की उपाधि दी गई है।इनके संरक्षकत्व में शास्त्रार्थ,धार्मिक अनुष्ठान तथा सांस्कृतिक विचार विमर्श का आयोजन वर्ष पर्यंत मठ परिसर में होता रहता है।विगत 23 मार्च को दुनियां के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत का भी पदार्पण हथियाराम में हो चुका है।महाराज श्री के अनुसार गाय, गंगा,गीता और गांव हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक धरोहर हैं।उनकी मान्यता है कि सभी धर्मों से बड़ा राष्ट्र धर्म होता है।इसके पालन से राष्ट्र तथा समाज का कल्याण सम्भव है।भवानीनन्दन यति जी महाराज राम मन्दिर आंदोलन से लम्बे समय से जुड़े थे।उनके बारे में यह कहना सर्वथा समीचीन होगा कि फकीराना तबियत है मिले जो बांट देते हैं।भगवान राम के मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने पर महाराज श्री ने एक करोड़ रुपये की धनराशि प्रदान किया।डॉ. मोहन भागवत से संवाद करते हुए उन्होंने संघ प्रमुख को आमंत्रित किया कि राष्ट्र और समाज हित में जब भी जरूरत पड़े मठ रूपी इस संस्था के संसाधनों का प्रयोग किया जा सकता है।महाराज श्री स्वयं छब्बीस वर्षों से अन्नाहार नहीं करते हैं तथा मां सिद्धिदात्री एवं भगवान सिद्धेश्वर की साधना में लीन हैं जिसका निमित्त लोककल्याण के सिवाय और कुछ भी नहीं।सन्यास आश्रम में प्रविष्ट होने के उपरान्त उन्होंने सिले हुए वस्त्रों का भी परित्याग कर दिया है।एक चादर नीचे लपेटना और एक चादर ऊपर ओढ़ना तथा पदवेश के रूप में काष्ट निर्मित खड़ाऊँ धारण करते हैं।वेशभूषा साधारण किन्तु हृदय की विशालता का आंकलन करना कठिन है।स्वामी भवानीनन्दन यति जी महाराज सिद्धपीठ की सुदीर्घ परंपराओं का सुंदर तरीके से निर्वहन करते हुए जन सामान्य से गहरे जुड़े हैं।आबाल वृद्ध नर -नारी प्रत्येक मिलने वाले भक्त या श्रद्धालु के मन में इस बात की प्रतीति होती है कि मैं महाराज श्री का विशेष स्नेहभाजक हूँ।उनके जन्मदिवस पर यही कामना है कि आस्तिकता का संचार करने के साथ युवा पीढ़ी के अंदर राष्ट्रीयता का भाव जगाने वाले महात्मा के ऊपर भूत भावन भगवान भोलेनाथ की कृपा अनवरत बरसती रहे ।सन्तों का सानिध्य हमें पाप ताप सन्ताप से निवृत्ति देता है।अनुयायियों के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि आध्यात्मिक चेतना का संचार करने वाले एक दिव्य महात्मा का सानिध्य लाभ एवं पाथेय समय समय पर प्राप्त होता रहता है।हमारे यहाँ लोक में प्रचलित है कि “आग लगी आकाश में झर झर पड़त अंगार/सन्त न होते जगत में तो जल मरता संसार”।ऋषि परम्परा के पर्याय स्वामी भवानीनन्दन यति जी महाराज को जन्मदिन पर कोटि कोटि प्रणाम।

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