कोई भी पर्व उदयातिथि में ही लाभप्रद होता है-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी
रक्षा बंधन का पर्व १२ को ही मनाये।
आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने कहा की कोई भी पर्व उदयातिथि में ही शुभ प्रद होता है। रक्षा बंधन पर बहुत चिन्तन, मनन ,शास्त्रार्थ व भद्रा कव से कव तक कहँ कैसे सब हो चुका इस बीच सबसे अजीब जो बात देखने को मिली वह यह है कि बहुत से तर्क प्रिय लोग साकल्यपदिता या उदया तिथि के सिद्धांत को चुनौती दे रहे हैं!
वह भद्रा के वास को देख रहे हैं जो कि निर्णय सिंधु में उस संदर्भ में भद्रा के वास की चर्चा निर्णय सिंधु ने नहीं दी है भद्रा को सर्वथा त्याज्य ही बताया है !
अन्य परिपेक्ष्य में भद्रा के वास पर चर्चा की गयी है श्रावणी व फाल्गुनी के लिये नहीं हमें एैसा ही प्रतीत हो रहा है !
ये हमारा मत है
अब एक चर्चा उदया तिथि के महत्व पर कर लेते हैं
उदया यानि जिस तिथि में सूर्योदय हो यानि भोर के सूर्य की किरणें जो वायुमंडल से पृथ्वी पर पँहुच रही है वह महत्व पूर्ण हैं !
न कि दोपहर की किरणें ये साधारण वात है भोर की किरणों से जो उष्मा हमें प्राप्त होती है वह दोपहर की किरणों से प्राप्त नहीं होती !
अब अगर उर्जा के सिद्धांत को देखे तो पूर्णिमा तिथि श्रवण नक्षत्र से संयोजित होकर एक विशेष प्रकार की उर्जा हमें प्रदान कर रही है !
अब समझें उदया तिथि को तिथि का प्रत्यक्ष कारण है चन्द्रमा
जैसे 11 तारीख को पूर्णिमा तकरीवन 10 : 30 पर लग रही है
जो कि 12 को सूर्योदय के बाद लगभग 48 मिनट तक रह रही है
अब सीधा सा बिचार करें दिन में पूर्णिमा सीधे सूर्य के सम्पर्क में आयी वो भी कब जब पृथ्वी का का तापमान बढ चुका है यानि सूर्य लगभग युवा अवस्था में पहुंच चुका है तिथि में अमृत चन्द्र से आना है
इसको इस प्रकार भी समझ सकते हैं
उदाहरणार्थ
1:-आपने एक काली दीवार पर सफेद (चौदसका)रंग करना प्रारंभ किया 11 को 10:30 बजे से और आपने 12 को प्रात: वह दीवार पूरी (पूर्णिमा रंग से सफेद )हो गयी अब (पडवा का)पीला रंग कर रहे हैं !
तो बिचार करके देखिये
क्या 12 तारीख को शाम तक वह दीवार पूरी तरह पीली हो जायेगी या सफेद की मात्रा अघिक रहेगी ?
अगर समय का अनुपात देखें तो सफेद हिस्सा अभी भी पीले से अधिक होगा !
2:- रात्रि में पृथ्वी का तापमान सबसे कम रहता है और तिथि ,नक्षत्र की उष्मा हमे भोर में अधिक प्रभावित करती है !
3:- अगर आप प्रदूषण रहित क्षेत्र में ऊंचाई पर जा कर देखें तो नक्षत्र इत्यादि को प्रात: वेला में आसानी से देखा जा सकता है !
4:- तिथि का सबसे बडा प्रमाण है समुद्र जो कि जल के स्तर से प्रत्यक्ष प्रमाण देता है !
5:- सूर्य की किरणें चन्द्र से परावर्तित होकर पृथ्वी पर पंहँचती हैं वह पृथ्वी को अपने अमृत से आच्छादित कर देती है
सम्पूर्ण वायु मण्डल में वह व्याप्त रहती हैं !
और उदया कालीन सूर्य की रश्मियाँ जो कि 08: 30 सेकण्ड मे पृथ्वी पर आ जाती हैं और तिथि की व्याप्त उर्जा से योग करके सम्पूर्ण धरा पर अपना प्रभाव स्थापित कर देती हैं
और वह उर्जा तब तक रहती बै जब तक अग्रिम तिथि का प्रभाव फिर सूर्योदय से योग न करले
6: – उदया तिथि को मानना यानि भविष्य के लिये आशान्वित होना
7 :- गत तिथि को मानना भूत से प्रेरित रहना भी दर्शाता है
और सम्पूर्ण धरातल सूर्य ,चन्द्र की रश्मियां
नक्षत्र, योग,करण ,तिथि ,वार से क्रिया करती हैं
और ऊर्जा का सिद्धांत है
न तो वह पैदा होती बै न वह नष्ट हेाती है वह एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाती है
अत: रक्षा बंधन इस सिद्धांत से उदया तिथि में करना अधिक श्रेयस्कर है अत: विद्वानों को उदया तिथि को महत्व देना चाहिये न कि उदयहीन तिथि को
यह हमारा मत है व हमें यह ज्यादा तथ्य परक प्रतीत होता है !
अगर अभी भी संदेह है तो लाइव डिवेट करके चर्चा करना ज्यादा ठीक रहेगा जो भी मित्र अगर इच्छा रखते हों तो हम करने को तैयार हैं हम अपनी गुरु परंपरा को सिद्ध करने की सामर्थ्य रखते हैं अत: सभी वैष्णव जनों से अनुरोध है अपना उदया तिथि की ही सिद्धांत मानें और गर्व करें कि हम सही सिद्धांत पर हैं ।
और रक्षा बंधन का पर्व १२ को ही मनाये।