June 18, 2025

आप भी जानें दर्दर और भृगु जी के पावन भूंमी दर्दर क्षेत्र के बारे में *दर्दर क्षेत्र महात्म्य*

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आप भी जानें दर्दर और भृगु जी के पावन भूंमी दर्दर क्षेत्र के बारे में

*दर्दर क्षेत्र महात्म्य*

 

तदाप्रभृति ब्रह्माद्य: सर्वेदेवा: सकिन्नरा:। उपासते भृगोसतीर्थ तुष्टो यत्र महेश्वरः।49

ब्रह्मा जी सहित सभी देव गण किन्नरों सहित उस भृगु तीर्थ की उपासना करते है जहां स्वयं भगवान शिव सन्तुष्ट हुए थे।

दर्शनात् तस्य तीर्थस्थ सद्यः पापात प्रमुच्यते। अवशा: स्ववशा वापि म्रियनते यत्र जन्तव:।50

उस भृगु तीर्थ का दर्शन करने से मनुष्य तत्काल ही पाप मुक्त हो जाते है, यहां स्वाधीन या पराधीन होकर जो भी प्राणी मात्र मृत्यु को प्राप्त करते है।

गुह्यातिगुह्या सुगबतिस्तेषां नि: संशयं भवेत। एततक्षेत्रं सुविपुलं सर्वपापप्रणाशनम्।51

उन्हें नि: सन्देह गुह्यातिगुह्य उत्तम गति प्राप्त होती है, यह विस्तृत क्षेत्र सभी पापो का विनाशक है।

तत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेफ्पुनर्भवा:।
उपानहोचं छत्रं च्यमंत्रच कान्चनम्।52

यहां स्नान करने वाले मानव स्वर्ग को प्राप्त करते है, तथा यहां जिनकी मृत्यु होती है, उनका संसार में आना छूट जाता है। यहां पर यथा शक्ति जूता छाता अन्न सोना का दान करना चाहिए । क्योंकि यह दान अक्षय हो जाता है।

नक्षरेतु तु तपस्तपतं भृगु तीर्थ युधिष्ठिरं। यस्य वै तुष्टेनैव तु शम्भुना।56मत्स्य पुराण

मारकण्डेय जी कहते है की हे युधिष्ठिर भृगु तीर्थ में किया गया तप यज्ञ दान और कर्म कभी क्षरित (नष्ट) नहीं होते है, क्योंकि स्वयं महेश्वर यहां सन्तुष्ट हुवे है।

गंगा द्वार हरिद्वार प्रयाग स्नान मुक्तम। वाराणसी दर्दरं च पन्चस्थान विमुक्तम।

गंगा द्वार (गोमुख हिमालय)हरिद्वार, प्रयागराज, वाराणसी, और दर्दर क्षेत्र वलिया उत्तर प्रदेश ये पांच स्थान मुक्ति प्रदान करने वाले है।

तवापि दर्दर क्षेत्रं गंगा सरयू संगम। दर्शनं स्पर्शन्नस्न्नरों नारायणे भवेत।

इन पांच मुक्ति दाता तीर्थों में भी दर्दर क्षेत्र के गंगा सरयू संगम का दर्शन, स्पर्श और स्नान करने वाला नर नारायण हो जाता है।

दर्दरं समनुप्राप्य श्राद्धं कुर्वन्ति मानरवा:।स्वयं तुतारितं तैस्तु तारिता: पितृदेवता:।

दर्दर क्षेत्र में पितरों का तर्पण ,श्रभद्ध करने वाले मानव स्वयं तो तरते ही है अपने पूर्वजों को भी मोक्ष दिलाते है।

सर्वयज्ञेषुयत्पुण्यं सर्वदानेषु यत् फलम्। दर्दरं स्पर्शनाज्लजनतुर्लभते नात्र संशय।

सभी प्रकार के यज्ञों और दान का जो फल होता है, वह सम्पूर्ण पुण्य मात्र दर्दर क्षेत्र के स्पर्श से प्राप्त होता है। इसमे संशय नहीं है।

यदा दर्दरक्षेत्रेषु गन्तु कृताधियो जना:। रूदन्ति सर्वपापानि व्याकुलीभूत मानसा:।

जो मनुष्य दर्दर क्षेत्र में आने के लिए प्रस्थान करता है तभी से उसके सारे पाप रोने लगते है और भू प्रेतादि व्याकुल हो जाते है।

या पाति योगयुक्तानां काश्यां वा मरणे रणे। सा गति स्नानमात्रेण कलौ दर्दर संगमे।

जो पुण्य काशी मे रह कर मृत्यु प्राप्ति और रण भूमि में वीर गति से प्राप्त होता है, वह कलयुग में दर्दर क्षेत्र में गंगा सरयू(तमसा) संगम मे स्नान करने मात्र से प्राप्त होता है।

पुष्करे नैमिषे क्षेत्रे, यत्पुण्यं वसतांनृणाम्। षष्टि वर्ष सहस्त्राणं काशीवासेषु यत्फलम्।

जो पुण्य पुष्कर तीर्थ नैमिषारण्य तीर्थ सेवन तथा साठ हजार वर्षो तक काशी वास से प्राप्त होता है वहीं पुण्य फल कलयुग में दर्दर क्षेत्र के संगम स्नान से प्राप्त होता है।

कामाल्लोभादलोभाद वा वाणिज्येनाति सेवया। दर्दर समनुप्राप्यं पूतात्मानो भवन्ति ते।

काम के लोभ अथवा बिना किसी लाभ के, ब्यापार के लिए अथवा सेवा के लिए किसी भांति जो दर्दर क्षेत्र में जा रहा है वह इस पुण्य क्षेत्र के प्रभाव से पवित्र हो जायेगा।
कार्तिक मास में इस तीर्थ का महत्व और अधिक बढ जाता है।

कार्तिके समनुप्रापते तुला संस्थे दिवाकरें,मुनयः सिद्ध गन्धर्वाः सा विद्या धरं चारणा:।
ऋषय: पितरो देवा: सस्त्रीकाश्च महान्श्रवया:, तीर्थ राजादि तीर्थानि सरांसि च नदी नदा:।
पम्पा, वाराणसी, माया कान्ची कान्ति कलावती, अयोध्या मथुरा अवन्तीपुरी द्वारावती तथा।
एताच्श्रन्याषु शतत: स्वेन क्षपणकाम्या, दर्दरसमनुप्राप्य सर्वतिष्ठन्ति कार्तिके। पद्मपुराण

कार्तिक माह में जब तुला का सूर्य होता है तब सभी ऋषि मुनि, सिद्ध गंधर्व, वीद्याधर,चारण पितृगण, देवगण और सारे तीर्थ पवित्र सरोवर नदियाँ इस दर्दर क्षेत्र में आकर निवास करती है।

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