June 18, 2025

ए सरकार! किसान हईं हम पर एगो समीक्षात्मक नज़र……

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ए सरकार! किसान हईं हम पर एगो समीक्षात्मक नज़र……

हर तरह के जीव में गुण आ दोष जन्मजात सुषुप्तावस्था में ओही तरे रहेला जे तरे धरती के भीतर ज्वालामुखी। जइसे ज्वालामुखी मोका पवते धरती फारि के बाहर निकल जाला ओही तरे जीव के गुण दोष भी समयानुसार बहरा निकल के आपन स्वरूप देखावे लागेला। कवनो रचनाकार के संगे भी इहे आकार आकारित होला। लेखन के गुण सुषुप्तावस्था में ज्वार-भाटा अइसन उठत-गिरत रहेला आ जब संवेदना के ठोकर लागेला त उ बहरिया जाला। ई एगो रेघरिआवे जोग विषय बा। निरक्षर रत्नाकर जेकरा के बाद में वाल्मीकि कहल गइल उ अगर गंगा स्नान से लवटत में नर क्रौंच चिरई के बहेलिआ के तीर से मारि के खुनियाइल आ मुवत ना देखले रहिते त एकबाएक संस्कृत के जटिल श्लोक ना निकलल रहित आ उ रामायण अइसन लोकप्रिय ग्रंथ के रचना ना कइले रहिते। छोट-बड़ रचनाकार ओही श्रेणी में आवेला। जब उ प्रकृति के पटल पर कवनो घटित घटना के बारीक नज़र से एकबाएक देखेला त ओकर हाल सुषुप्तावस्था वाला ज्वालामुखी के होला। कागज़ धरती बनि जाली आ दृढ़विश्वास क़लम। ऊ भयभीत आ कंपित मन से कागज़ पर कलमि के अधमरु सांप अस सरकावे लागेला। गते-गते उ ढीठ हो जाला आ ओकरा हौसला में पाखि लागि जाला‌।

एगो रचनाकार चाहे कवनो भाषा, बोली चाहे विषयवस्तु के होला कवनो मठाधीश, आचार्य, ऋषि-मुनि, वैराग्य के शिखर पर पहुंचल संत चाहे साधक से ढेर ऊपर होला। साधक विह्वल मन से विरोधाभास में विपरीत माहौल साधना कs सकs ता। लेकिन एगो रचनाकार जब तक अपना के पूर्ण रूप से ओ विषय पर आत्मसात ना कली तब तक ओकर कलम रज़ मात्र भी आगे ना बढ़ि सकेले। रचनाकार के रचना धर्मिता, अर्चना, योग, जप-तप आ व्रत मये से शीर्ष पर होला, कवनो जरूरत नइखे अखण्डवत् आ कवनो दोसर साधना के। ई अपना जगहा पर देदीप्यमान नक्षत्र नीयर पूज्यमान होला।
जहाँ तक संजीव कुमार ‘ त्यागी ’ के बात बाटे त ‘ए सरकार! किसान हईं हम’ जइसन कालजयी रचना केहू त्याग वाला त्यागिये के मान के बाटे। आधुनिक तकनीकि क ज़माना में जहाँ लोग गूगल, ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब जइसन पुस्तक के असफल विकल्प तलाशि के जे तरे चिउटा गुर पर लरियाला ओही तरे लागल रहता ओइजा एह बिगरत व्यवस्था में त्यागी जी पुस्तक छपवा के समाज के पारदर्शी बनावे के प्रयास करतानीं इ एगो सराहनीय कदम बाटे। हम उहाँ के हिम्मत-हौसला के अफजाई करत सलाम करतानीं। मंगल के देवता गनेश जी के सुमिरन के पहिले आपन पुरखा-पुरनिया लोग के ध्यान धइल काबिले तारीफ लउकता। पुस्तक के कभर पृष्ठ क साज-सज्जा केहू माहिर साहित्यकार के दिशा-निर्देश में भइल होई इ दर्पण अस झलकता। कभर पृष्ठ के उभयपक्ष अनुकरणीय बाटे। भीतर के सन्दर्भ आ विषयवस्तु कहाँ से शुरू करीं आ कवना के छोट चाहें बड़ रचना कहीं इ तुलसी बाबा के चौपाई ‘ को बड़ छोट कहत अपराधू ’ के हाल बा। भोजपुरी के मर्यादा खातिर ‘ छतिया के तानि कहीं हईं भोजपुरिया ’ आ बनारस के हर तरह से महिमामण्डित कइल मये भोजपुरी सर्जक लोग के बूता के बहरा के बात बाटे। ‘ ज्ञान से बिज्ञान सब बतिये से ज्ञात बा ’। भोजपुरिहा,खास कके पूर्वांचल आ बिहार के पश्चिमाञ्चल के लोगन के सस्ता, सरल आ सहज भोजन लिट्टी-चोखा के सन्दर्भ में राह चलत सुगमता से, सरलता से बनवला खइला पर प्रकाश डालल, फटकल, छाँटल, जँतसार गीत के यथास्थान समुचित प्रयोग अनायास अतीत के ओर झाँके के मजबूर कs देता। देश में रोज किसान-मजदूर के दोहाई देत हर पार्टी के नेता लोग लच्छेदार भाषण से साक्षात सरग देखावेतारे लेकिन कवि के कल्पना में किसान-मजदूर के खून चूसि के आपन उल्लू सोझ कइला अइसन प्रसंग के पुस्तक में जगहा देके कवि अपना मेधा के बारीकी बतवले बाड़ें। ‘ना जाला’ शीर्षक में कुछ-कुछ बातन पर सतर्कता,जहाँ चतुराई के प्रयास त बटले बा,ओही जा महाराज फतेह बहादुर शाही के क्रूर अंग्रेजन के प्रति आक्रोश के वर्णन असीमित बाटे। देश के सबसे नीचली पंचायत में परधानी के पद लड़ला में जेतना समस्या कवि दरशवले बाड़े ओकरा अपेक्षा संसदीय जइसन विस्तारपरक चुनाव सहज बुझाता। जवन पन्ना चाहें शीर्षक खोलि के नजर दउरावल जाता ओके बेरि-बेरि इहाँ तक की लगातार पढ़ला से मन नइखे हटत।

बनारस के जेतना सांगो-पांग वर्णन त्यागी जी कइले बानीं ओतने चरचा आपन जन्मभूमि गाजीपुर के चाहत रहल ह। काहें कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। घरे दिया बारि के मसजीदि में दिया बारे के चाही। बनारस से गाजीपुर खरहो भर कम नइखे। इ डॉ० राही मासूम रजा, भोलानाथ गहमरी, गोपाल गहमरी, नज़ीर हुसैन, वीर अब्दुल हमीद, बाबू मंगला सिंह आदि-आदि विभिन्न बिधा के लोगन के ऐतिहासिक धरती ह। हमरा उमेद बा जे त्यागी जी के अगिली पुस्तक में जरूर ए धरती के अखियान कइल जाई। दूनो बगल शुरू में आ अंत में अनेकन लोगन के लिखित विचार तुष्टिकरण के ओर संकेत दे रहल बा। अतीत में जेतना महानतम लोग केहू के आशिरबाद देले बाटे त उ मौखिक देले बाटे। एगो-दूगो लोगन के अभिमत आ आपन विचार पुस्तक के सफलता खातिर पर्याप्त बाटे।जब कवि समाज के दिशा देबे चलल बा त पुस्तक में उ मुख्य रहो आ अन्य केहू गौड़ रहे के चाहीं। भोजपुरी के स्थान पर हिन्दी के शब्दन के प्रयोग कहीं कहीं ढेर हो गइल बा। शब्द ब्रह्म होला। आजु ठेठ भोजपुरी के शब्द विलुप्त हो तारे स जवना के बचावे क काम रचनाकार ना करी त के करी!आशा बा कि अपना आगे के रचना में त्यागी जी एपर धियान जरूर देइब।

हम भगवान से दसो नोह जोरि के बिनती करतानीं जे त्यागी जी के त्याग दिन दूना आ राति चौगुना बढ़े आ इहाँ के मेधा से निकट भविष्य अइसन रचना से परिपूर्ण पुस्तक निकलs सs जवना में के विषयवस्तु कालजयी होखो। अभी पहिली पुस्तक हवे। त्यागी जी साहित्य के पहिला पायदान पर कदम रखले बानीं,एके ना भुलाए के होखी। भोजपुरी जवना के मिठास सात समुन्दर पार तक आपना झंडा लहरवले बा ओमे रचना कके रउआ भोजपुरी आ भोजपुरिहन के सम्मान में चारि चान लगा देले बानीं। हम रउआ के कोटिशः प्रणाम कके साधुबाद देत साहित्य के शिखर पर पहुँचे के कल्पना करतानीं।
बृजमोहन प्रसाद प्रजापति ‘ अनारी ’
बलिया
9450953545

(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन सम्मान’ तथा ‘भिखारी ठाकुर सम्मान’ से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार है ।

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