June 19, 2025

कृष्ण- रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है-त्रिदंडी महाराज

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कृष्ण- रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है-त्रिदंडी महाराज

रासलीला में कलाकारों ने खुबसूरत मयूर नृत्य प्रस्तुत किया

गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील के उंचाडीह में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में गंगा पुत्र त्रिदंडी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा प्रस्थान, कंस वध, उधव- गोपी संवाद, द्वारकानगरी की स्थापना, श्रीकृष्ण के संग रुक्मिणी का विवाह प्रसंग सुनाया।
उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से कहा कि कृष्ण- रुक्मिणी विवाह प्रसंग सुनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है। भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर सुखमय जीवन बिताया। कृष्ण-रुक्मिणी विवाह उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं ने खुशी मनाई। श्रीकृष्ण को रुक्मिणी ने वरमाला पहनाई तो कथास्थल पर फूल बरसाए गए।त्रिदंडी महाराज ने कथा को विस्तार से समझाते हुवे कहा की जब रुक्मिणी के कहने पर उन्हें लेकर भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ से द्वारका जा रहे थे तो नर्मदा तट का सिद्ध क्षेत्र होने के कारण यहां पर भगवान ने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को विवाह किया। इसके बाद द्वारका के लिए आगे बढ़े। वह क्षेत्र वर्तमान में सिद्धघाट से तिलवाराघाट के मध्य का माना जाता है। उस समय इस क्षेत्र को योधनीपुर नाम दिया गया था। महाभारत, भागवत कथा और स्कंद पुराण के रेवा खंड के 142वें अध्याय में यहां भगवान के विवाह का उल्लेख मिलता है। पुराणों में ऐसा वर्णन है कि प्राचीन त्रिपुरी और वर्तमान में जबलपुर का उत्तर भाग चेदि जनपद में शामिल था। जिसके राजा शिशुपाल थे। वहीं नर्मदा का दक्षिण भाग विदर्भ में आता था जिसके राजा भीष्मक थे। जिनकी बेटी रुकमणी थी। रुकमी चाहता था शिशुपाल से हो विवाह। विदर्भ के राजा का बेटा रुकमी चाहता था कि उसकी बहन रुकमणी का विवाह शिशुपाल से हो वहीं जरासंध भी रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था। इस सबके विपरीत राजा भीष्मक बेटी रुक्मिणी का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से करना चाहते थे। द्वारका से भगवान के पीछे बलराम सेना लेकर निकले। रुक्मिणी का संदेश मिलते ही भगवान श्रीकृष्ण विदर्भ के लिए निकले। जब यह बात बलराम को पता चली तो वे पीछे-पीछे सेना लेकर निकले तब बलराम ने शिशुपाल और जरासंध से युद्ध किया और वापस लौटने पर मजबूर किया। सजा पर रुकमी के काटे थे बाल- युद्ध में रुकमी जब भगवान श्रीकृष्ण से हार गए तो रुक्मिणी ने अभयदान की प्रार्थना की। तब सजा के तौर पर रुकमी के बाल काटे गए थे। उस समय रुकमी को भगवान ने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए थे। जिसके बाद रुकमी लौट गया था।इस समय दूर दूर से श्रद्धालु भक्त उंचाडीह पहुंच कर यज्ञशाला की परिक्रमा कर त्रिदंडी महाराज का दर्शन कर उनसे आशिर्वाद प्राप्त कर रहे हैं।वृन्दावन से आये कलाकार दोपहर में 11 बजे से रामलीला एवं रात्रि 7 बजे से बहुत ही सुन्दर मनमोहक रासलीला का मंचन कर रहे हैं।रासलीला में बहुत ही सुन्दर मयूर नृत्य की प्रस्तुति की गयी।27 को विशाल भण्डारे के साथ महायज्ञ की पुर्णाहुति होगी।इस अवसर पर कृष्णानंद राय.सत्यनरायण राय.छोटेलाल राय.अरूण राय.बिजय बहादुर राय.अजय राय.ओम प्रकाश राय समेत ढेर सारे लोग उपस्थित रहे।

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