365 दिन में केवल चार दिन होते हैं स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन, धनतेरस से खुलेगा कपाट

365 दिन में केवल चार दिन होते हैं स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन, धनतेरस से खुलेगा कपाट
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित मां अन्नपूर्णा का दरबार इस बार भी धनतेरस पर खोल दिया जाएगा। पूरे साल में धनतेरस से अन्नकूट तक सिर्फ चार दिन ही स्वर्ण विग्रह का दर्शन मिलता है। यह देश का एकमात्र अन्नपूर्णा का मंदिर है जहां धनतेरस से अन्नकूट तक मां का खजाना बांटा जाता है। यहां से मिले सिक्के और धान का लावा लोग तिजोरी और पूजा स्थल पर रखते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पूरे वर्ष धन-अन्न की कमी नहीं होती।
कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है
अन्नपूर्णा मंदिर के महंत के अनुसार भगवान शंकर से विवाह के उपरांत देवी पार्वती ने काशीपुरी में निवास की इच्छा जताई। महादेव उन्हें लेकर अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। तब काशी महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को यह नहीं भाया। तब शिव-पार्वती के विमर्श से एक व्यवस्था दी गई। वह यह कि सत, त्रेता, और द्वापर युगों में काशी श्मशान रहेगी किंतु कलिकाल में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसेगी। इसी कारण वर्तमान में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ। पुराणों में काशी के भावी नामों में काशीपीठ नाम का भी उल्लेख है।
अन्नपूर्णा हैं अन्न की अधिष्ठात्रि
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्त्तपुराण’ के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रह कर उनकी उपासना का विधान है। इन्हें अन्न अधिष्ठात्रि भी माना जाता है।
ऐसा है देवी का स्वरूप
देवी पुराण के अनुसार मां अन्नपूर्णा का रंग जवापुष्प के समान है। भगवती बंधुक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके बाएं हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जड़ा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछुल है। जो प्रतीक है कि माता अन्नदान में सदा तल्लीन रहती हैं।