लोक आस्था की प्रतीक मां सायर, जिनकी शक्ति के आगे नतमस्तक हुआ था अंग्रेज इंजीनियर

लोक आस्था की प्रतीक मां सायर, जिनकी शक्ति के आगे नतमस्तक हुआ था अंग्रेज इंजीनियर
गाज़ीपुर-शारदीय नवरात्र का आरंभ होते ही शक्तिपीठों में देवी दर्शन कर अपने कुल परिवार की मंगलकामना को लेकर आस्था का सैलाब उमड़ रहा है।वहीं कुछ लोक देवी भी हैं जिनकी शक्ति भक्तों में आस्था और भक्ति को बलवती कर देती है।एक ऐसा ही लोक आस्था की प्रतीक मां सायर का दरबार है पूर्व मध्य रेलवे दानापुर मंडल के दिलदारनगर जं के अप और लूप मेन रेलवे ट्रैक के मध्य जिनकी शक्ति के आगे अंग्रेज रेल इंजीनियर को भी नतमस्तक होना पड़ गया था। लोक जन श्रुतियों के अनुसार माता सायर का अस्तित्व उस समय उभर कर सामने आया जब सन में अप लूप रेल ट्रैक बिछाने का कार्य अंग्रेज इंजीनियर जिसे प्लेटियर साहब के नाम से जाना जाता था की देख रेख में हो रहा था।रेल ट्रैक बिछाने के दौरान रास्ते में पड़ने वाले झाड़ झंकार और जंगल को साफ करने का आदेश अंग्रेज इंजीनियर प्लेटियर साहब द्वारा अपने मातहतों को दिया गया मजदूर झंझार झंझार साफ कर रहे थे तो इसी दौरान एक विशालकाय नीम का पेड़ सामने पड़ गया इसे काटने के क्रम में जब तने से लाल रक्तनुमा द्रव बहता देख मजदूर सहम गए। दोपहर का समय होने के कारण भोजन करने के बाद जब मजदूर विश्राम कर रहे थे तो माता उन्हें स्वप्न में प्रकट होकर नीम का पेड़ नहीं काटने का निवेदन की साथ ही अपने पिंडी होने का भी जिक्र उन्होंने मजदूरों से किया स्वप्न की घटना से मजदूर इतना सहम गए कि अंग्रेज इंजीनियर प्लेटियर साहब के सामने जाकर पेड़ को नहीं काटने की बात पर अड़ गए। किंतु अपनी जिद पर अड़े प्लेटियर साहब पेड़ को काटने और पिंडी को हटाने पर आमादा थे इसे देखकर पेड़ काटने वाले मजदूर भाग खड़े हुए तो प्लेटियर साहब ने अपने विश्वस्त मजदूरों का लगाकर पेड़ को कटवा दिया और पिंडी को भी हटवा दिया इस घटना से माता का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया और पेड़ काटने वाले तीनों मजदूरों की मौत तो हुई है साथ ही अंग्रेजी इंजीनियर प्लेटियर साहब का 5 वर्षीय पुत्र की भी मौत हो गई। जिसका कब्र आज भी वरीय अनुभाग अभियंता रेल पथ के बंगला परिसर में मौजूद है,साथ ही प्लेटियर साहब भी बीमार हो जब बिस्तर पकड़ लिया तो उनकी पत्नी इस अप्रत्याशित घटना से घबड़ा गईं।वहीं बुजुर्ग रेल पथ से जुड़े कर्मियों की मानें तो जिस जगह माता की चौरी थी वहां रेल ट्रैक दिनभर सीधा बिछाया जाता और सुबह रेल ट्रैक वहां से हटकर तीतर बितर नजर आता। इस संबंध में पूछे जाने पर मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण कांत जी ने बताया कि माता के प्रकोप से घबराई अंग्रेज इंजीनियर की पत्नी जब आसपास के लोगों से राय मशविरा किया तो लोगों ने सलाह दिया कि जब तक रेलवे ट्रैक को माता की पिंडी स्थल से हटाकर जहां माता का स्थान वहां चोरी का स्थापना नहीं किया जाएगा तो माता का कोप शांत नहीं होगा जब प्लेटियर साहब की पत्नी ने ऐसा किया और माता की चौरी निर्मित कर क्षमा मांगी तो तब जाकर माता का कोप शांत हुआ और प्लेट ईयर साहब की जिंदगी बच गई।भोजपुरी जगत की लोकप्रिय गायनविधा बिरहा के कवि गुरु मौला लाल पर भी थी मां की अनुकंपा—————अपने समय के सुप्रसिद्ध मौला लाल अखाड़े के बिरहा गायक पूर्व प्रधान ग्राम सभा भक्सी वर्तमान में रेलकर्मी बलिराम सिंह यादव ने माता की महिमा के विषय में बताये कि माता सायर का ही एकबाल था कि बिरहा जगत में देश विख्यात कवि व गुरु अखाड़े के जनक ग़ाज़ीपुर जिले के जंगीपुर विधानसभा क्षेत्र के जैतपुरा गांव से दिलदारनगर पधारे निरक्षर गुरु मौला लाल ने लोकविधा भोजपुरी में बिरहा लेखन में देश भर में ख्याति अर्जित किया माँ सायर की ही अनुकंपा थी।अपना संस्मरण सुनाते हुए श्री यादव ने बताया कि लगभग दो वर्ष पूर्व स्वप्न में जैसे नजर आया कि मेरे बिरहा गायकी के समय का सारा साजो सामान बिखरा पड़ा है।तभी एक साधारण वेश भूषा में माता प्रकट हुई और मेरे बगल में सो रहे 15 वर्षीय पुत्र विश्वजीत की ओर एक पुष्प फेंक दी।इस स्वप्न को आत्मसात करते हुए अपने पुत्र को सारा साजो सामान सौंप बिरहा गायन के लिए प्रेरित किया जिसका प्रतिफल यह है कि आज मेरा पुत्र इस लोक विधा में अपना विशिष्ट पहचान बना लिया है।इसे मैं मां की ही कृपा मानता हूं।वास्तविकता चाहे जो कुछ भी हो लेकिन भक्तों की मनचाही मुराद होने का साक्षात प्रमाण है।माता के दरबार में हजारों की संख्या में बंधे घंटे।