June 20, 2025

*गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से पहले का है यह कुंड, पितृपक्ष में यहां लगता है प्रेतों का मेला* प्रेतात्माओं को यहां मिलती है मुक्ति

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वाराणसी. मोक्ष नगरी काशी के बारे में कहा जाता है कि यहां देह त्यागने वाली आत्मा को मोक्ष मिल जाता है। जिसकी मृत्यु काशी के बाहर होती है उसका महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करने से भी उसे मुक्ति मिल जाती है। साथ ही काशी में एक तीर्थ ऐसा भी है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां प्रेत आत्माओं को मुक्ति मिलती है। यह तीर्थ पिशाच मोचन कुंड के नाम से विख्यात है। कुंड के महत्व के बारे में यहां के पुरोहितों का कहना है कि यह कुंड मां गंगा के पृथ्वी पर आने से पहले का है। और पितृ पक्ष में यहां प्रेतों का मेला लगता है। साथ ही यहां पितरों के साथ ही प्रेत आत्माओं को भी मुक्ति मिलती है। इसके लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि, पार्वण के अनुष्ठान कराए जाते है।

पिशाच मोचन कुंड के प्रधान तीर्थ पुरोहित कुंड के महत्व के बारे में बताते है कि यह रामा अवतार के पहले की बात है। जब पृथ्वी पर गंगा अवतरित नहीं हुई थी उससे पहले का यह सरोवर है। यह विमलोदत्त तीर्थ है। यहां पूरे भारत वर्ष से लोग आते है। जो भी प्रेत योनि से पीड़ित है उसे यहां मुक्ति मिल जाती है। वह कुंड के महत्व के बारे में बताते है कि रामा अवतार के समय पिशाच नाम का एक ब्राम्हण था। जो दान नहीं देता था। वह सिर्फ लोगों से दान लिया करता था। और इतना दान ले लिया कि उसकी आत्मा को शांति नहीं मिल रही थी। एकबार जब वाल्मीकि जी कुंड पर पूजा कर रहे थे तो पिशाच ब्राह्मण यहां पहुंचे और उन्होंने वाल्मीकि जी से कहा कि महराज मेरी आत्मा को शांति नहीं मिल रही। मेरा भी कल्यण करें। जिसके बाद उन्होंने पिशाच ब्राम्हण को तालाब में नहाने के लिए बोला। पिचाश ब्राह्मण जैसे ही स्नान के लिए कुंड में उतरे तो पानी भागने लगा। वह एक कदम आगे बढ़ते तो पानी दो कदम पीछे भाग जाता। इसके बाद उन्होंने पानी गिलास में पानी लिया तो वो भी सूख गया।

इसके बाद उन्होंने एक बार फिर वाल्मीकि जी से आग्रह किया कि महाराज हमारे कष्ट को दूर करें। उन्होंने कहा कि मैं ठीक नहीं कर पाऊंगा। इस पर पिशाच ब्राह्मण ने उनसे कहा महाराज उपाय करें नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। इसके बाद वाल्मिकी जी ने उन्हें यहां भगवान शंकर और विष्णु जी की तपस्या करने को कहा। आखिर में शंकर उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और यहां आए और पिशाच ब्राम्हण से पूछा कि क्या कष्ट है तो उन्होंने शिव जी को कष्ट बताया। शिव जी ने ब्राह्मण से पानी में उतरने को कहा। जब वो तालाब में उतरे और उनके शरीर पर तालाब का पानी पड़ा तो वो जलाशय हो गये। इसके बाद इन्होंने यहीं लोगों के मुक्ति के लिए उनसे आशिर्वाद मांगा और यही भोले शंकर के सामने विराजमान हो गए।

साथ ही कुंड के महत्व से एक घटना और जुड़ी हुई है। तीर्थ प्रधान पुरोहित बताते है कि शंकर जी के बाद गणेश जी यहां एक ज्ञानदस नामक प्रेत को मोक्ष की प्राप्ति के लिए लेकर आए थे। वह बताते है कि ज्ञानदस को मुक्ति नहीं मिल रही थी। जिसके बाद उन्होंने भगवान गणेश कार्तिकेय जी से मुक्ति के लिए आग्रह किया। तो उन्होंने ज्ञानदस से कहा कि काशी में तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन जब ज्ञानदस काशी पहुंचे तो मां गंगा से उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया। आखिर में मां गंगा से प्रार्थना करने के बाद कहा कि उत्तर दिशा में स्थित पिशाच मोचन कुंड पर जाओं वहां तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी।

तब से प्रेत आत्माओं की मुक्ति, पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए यहां पितृ पक्ष में लोग आते है। साथ ही मान्यता है कि पितृ पक्ष में यहा प्रेतों का मेला लगता है। तीर्थ पुरोहित बताते है कि यहां पितृरों, प्रेतों, अकाल मौत से मोक्ष व जो प्रेत परिवार की सुख शांति में बाधक बने हुए उनकी मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि, पार्वण के अनुष्ठान कराए जाते है।

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