*विनोबा भावे ने सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया-प्रो०हरिकेश सिंह* *आचार्य विनोबा भावे के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में सत्यदेव कालेज में संगोष्ठी का आयोजन*

*विनोबा भावे ने सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया-प्रो०हरिकेश सिंह*
*आचार्य विनोबा भावे के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में सत्यदेव कालेज में संगोष्ठी का आयोजन*
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता , भारत रत्न,”भूदान आंदोलन” के जनक तथा गांधीवाद के प्रबल समर्थक किया गया । इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर हरिकेश सिंह उपस्थित रहे तथा संगोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कवि यशवंत सिंह ‘यस’ ने की । संगोष्ठी के इस कार्यक्रम में सत्यदेव ग्रुप आफ कॉलेजेज के प्रबंध निदेशक प्रोफेसर सानंद सिंह ने अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान किया तथा प्रोफेसर सानंद सिंह की तरफ से संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन भी रखा गया ।
प्रोफेसर सानंद सिंह ने आचार्य विनोबा भावे के जीवन वृत्त पर संक्षिप्त में प्रकाश डालते हुए कहा कि,” आचार्य विनोबा भावे गांधीजी की तरह ही अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने अहिंसा और समानता के सिद्धांत का हमेशा पालन किया। उन्होंने अपना जीवन गरीबों और दबे-कुचले वर्ग के लिए लड़ने को समर्पित किया। वह उन लोगों के अधिकारों के लिए खड़े हुए। आचार्य विनोबा भावे के प्रयास से ही असंख्य भूमिहीनों को भूमि मिली ।उनको भूदान आंदोलन के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। सामुदायिक नेतृत्व के लिए 1958 में अंतरराष्ट्रीय “मैग्सेसे पुरस्कार” पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे। 1983 में मरणोपरांत उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। उनका निधन 15 नवंबर, 1982 को हुआ था। आगे उन्होंने बोलते हुए कहा
11 सितंबर, 1895 को उनका जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में हुआ था। उनका नाम विनायक नरहरि भावे था। उनके पिता का नाम नरहरि शम्भू राव और माता का नाम रुक्मिणी देवी था। उनके तीन भाई और एक बहन थीं। उनकी माता रुक्मिणी काफी धार्मिक स्वाभाव वाली महिला थीं। अध्यात्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा उनको मां से ही मिली थी।
छात्र जीवन में विनोबा को गणित में काफी रुचि थी। काफी कम उम्र में ही भगवद गीता के अध्ययन के बाद उनके अंदर अध्यात्म की ओर रुझान पैदा हुआ। वैसे विनोबा भावे मेधावी छात्र थे लेकिन परंपरागत शिक्षा में उनको काफी आकर्षण नहीं दिखा। उन्होंने सामाजिक जीवन को त्याग कर हिमालय में जाकर संत बनने का फैसला लिया था।
बाद में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया। उन्होंने इस सिलसिले में देश के कोने-कोने की यात्रा करनी शुरू कर दी। इस दौरान वह क्षेत्रीय भाषा सीखते जाते और साथ ही शास्त्रों एवं संस्कृत का ज्ञान भी हासिल करते रहते। जब जब गरीबों और असहायों के अधिकारों और उनके दुख-सुख बांटने की चर्चा होती रहेगी विनोबा भावे जीवंत होते रहेंगे ।”
मुख्य अतिथि प्रोफेसर हरिकेश सिंह ने उनके राजनैतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि,”
उनके राजनीतिक जीवन का सफर एक ऐसे समय में मोड़ लेता है जब वह बनारस जैसे पवित्र शहर में जाकर पवित्र मन और आत्मा से अपने कर्तव्य की शपथ लेते हैं और इस कर्तव्य पथ का प्रेरक मंत्र वहां उनको गांधीजी का वह भाषण मिल जाता है जो उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दिया था। इसके बाद उनकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आता है। 1916 में जब वह इंटरमीडिएट की परीक्षा मुंबई देने जा रहे थे तो उन्होंने रास्ते में अपने स्कूल और कॉलेज के सभी सर्टिफिकेट जला दिए। उन्होंने गांधीजी से पत्र के माध्यम से संपर्क किया। 20 साल के युवक से गांधीजी काफी प्रभावित हुए और उनको अहमदाबाद स्थित अपने साबरमती आश्रम में आमंत्रित किया। 7 जून, 1916 को विनोबा भावे ने गांधीजी से भेंट की और आश्रम में रहने लगे। उन्होंने आश्रम की सभी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लिया और साधारण जीवन जीने लगे। इस तरह उन्होंने अपना जीवन गांधी के विभिन्न कार्यक्रमों को समर्पित कर दिया। विनोबा नाम उनको आश्रम के अन्य सदस्य मामा फाड़के ने दिया था। दरअसल मराठी में विनोबा शब्द किसी को काफी सम्मान देने के लिए बोला जाता है।
विनोबा भावे को महात्मा गांधी के सिद्धांत और विचारधारा काफी पसंद आए। उन्होंने गांधीजी को अपना राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु बनाने का फैसला किया। उन्होंने बगैर कोई सवाल उठाए गांधीजी के नेतृत्व को स्वीकार किया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे विनोबा और गांधीजी के बीच संबंध और मजबूत होते गए। समाज कल्याण की गतिविधियों में उनकी भागीदारी बढ़ती रही। 8 अप्रैल, 1921 को विनोबा वर्धा गए थे। गांधीजी ने उनको वहां जाकर गांधी आश्रम का प्रभार संभालने का निर्देश दिया था। जब वह वर्धा में रहते थे, उन दिनों उन्होंने मराठी में एक मासिक पत्रिका भी निकाली जिसका नाम ‘महाराष्ट्र धर्म’ था। पत्रिका में उनके निबंध और उपनिषद होते थे। उन्होंने गांधीजी के सभी राजनीतिक कार्यक्रमों बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वह गांधीजी के सामाजिक विचार जैसे भारतीय नागरिकों और विभिन्न धर्मों के बीच समानता में विश्वास करते थे। स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
गांधीजी के प्रभाव में विनोबा भावे ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया। वह खुद भी चरखा कातते थे और दूसरों से भी ऐसा करने की अपील करते थे।
विनोबा भावे की स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी से ब्रिटिश शासन आक्रोशित हो गया। उन पर ब्रिटिश शासन का विरोध करने का आरोप लगा। सरकार ने उनको छह महीने जेल भेज दिया। उनको धुलिया स्थित जेल भेजा गया था जहां उन्होंने कैदियों को मराठी में ‘भगवद गीता’ के विभिन्न विषयों को पढ़ाया। धुलिया जेल में उन्होंने गीता को लेकर जितने भाषण दिए थे, उस सबका संकलन किया गया और बाद में एक किताब प्रकाशित की गई।
साल 1940 तक तो विनोबा भावे को सिर्फ वही लोग जानते थे, जो उनके इर्द-गिर्द रहते थे। 5 अक्टूबर, 1940 को महात्मा गांधी ने उनका परिचय राष्ट्र से कराया। गांधीजी ने एक बयान जारी किया और उनको पहला सत्याग्रही बताया।
विनोबा भावे ने सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। गांधीजी ने जो मिसालें कायम की थीं, उससे प्रेरित होकर उन्होंने समाज के दबे-कुचले तबके लिए काम करना शुरू किया। उन्होंने सर्वोदय शब्द को उछाला जिसका मतलब सबका विकास था। 1950 के दौरान उनके सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें से एक भूदान आंदोलन था।
साल 1951 में वह आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के हिंसाग्रस्त क्षेत्र की यात्रा पर थे। 18 अप्रैल, 1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे भेंट की। उनलोगों ने विनोबा भावे से करीब 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया ताकि वे लोग अपना जीवन-यापन कर सकें। विनोबा भावे ने गांव के जमीनदारों से आगे बढ़कर अपनी जमीन दान करने और हरिजनों को बचाने की अपील की। उनकी अपील का असर एक जमीनदार पर हुआ जिसने सबको हैरत में डालते हुए अपनी जमीन दान देने का प्रस्ताव रखा। इस घटना से भारत के त्याग और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया।”
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कवि यशवंत सिंह यश जी ने राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी हुई उनकी कृतियों के विषय में भी चर्चा की उन्होंने बताया की किस तरह से उन्होंने उपनिषद गीता भारतीय चिंतन इन सब का अध्ययन मनन करके वह अपनी रचनाएं करते रहे । इससे पता चलता है कि देश सेवा और राष्ट्रवाद किस तरह उनके अंदर रचा-बसा था । आचार्य विनोबा भावे अपनी कृतियों की तरह ही भारतीय इतिहास में हमेशा याद किए जाते रहेंगे ।”
सत्यदेव डिग्री कॉलेज के निदेशक अमित सिंह रघुवंशी ने बताया कि 14 सितंबर 2021 हिंदी दिवस के अवसर पर सत्यदेव डिग्री कॉलेज में एक संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा । इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह. प्रोफेसर राघवेंद्र पांडे (जिनका विशेष रूप से सम्मान भी किया जाना है) गाजीपुर गौरव से सम्मानित वरिष्ठ कवि हरिनरायण हरीश जी, अपने गीतों के लिए प्रसिद्ध कवि अक्षयवर पांडेय जी, युवा कवयित्री अनुश्री की गरिमामई उपस्थिति रहेगी ।
इस अवसर पर शिवम भृगुवंशी,दिनेश सिंह अनुज नारायण सिंह मोतीलाल वर्मा इत्यादि उपस्थित रहे ।