आंवले का पेड़ साक्षात भगवान विष्णु का रूप है-फलाहारी बाबा
आंवले का पेड़ साक्षात भगवान विष्णु का रूप है-फलाहारी बाबा
मानस मर्मज्ञ भागवतवेत्ता श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने अक्षय नवमी के बारे में जानकारी देते हुए कहा की पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना कर दान पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।
ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान्न आदि का भोग लगाया जाता है। कई धर्मप्रेमी तो आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते हैं।
कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय नवमी कहलाती है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इसमें पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है। आंवला नवमी के दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य विधि-विधान से आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से इस पर्व को मनाते हैं। इस दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा लपेटकर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
आंवला नवमी की कहानी व्रत के समय कही और सुनी जाती है।आंवला नवमी की यह विशेष कथा।
एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया।
एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए।
राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं।
जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा।
इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए।
सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
राजा, रानी से कहने लगे
रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए।
आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू बेटे के बुरे दिन आ गए।
राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे।
उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया।
बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा।
आज वे लोग न जाने कहां होगे ?
यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है?
उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए।
तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है।
बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे।
हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
पद्म पुराण में यह कहा गया है कि भगवान विष्णु को आंवले का फल बहुत अच्छा लगता है और इससे शुभ माना गया है। भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए लोग इस फल को चढ़ाते हैं और यह माना जाता है कि इस फल को खाने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आंवला हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है इसे खाने से आयु बढ़ती है। यह कहा जाता है कि इसका रस पीने से धर्म-संचय होता है। आंवले का पानी दरिद्रता दूर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जहां भी आंवले का फल मौजूद होता है वहां भगवान विष्णु का वास होता है। उनके साथ भगवान ब्रह्मा और माता लक्ष्मी भी वास करते हैं। इसीलिए हिंदू घरों में आंवले का पेड़ रखना शुभ माना जाता है। पद्म पुराण में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भगवान शिव ने एक बार कार्तिक से कहा था कि आंवले का पेड़ साक्षात भगवान विष्णु का रूप है। यह फल भगवान विष्णु को बहुत पसंद है इसलिए इसको याद करने से ही गोदान जितना फल मिलता है।
आँवला या अक्षय नवमी पूजा कथा एवम महत्व
एक व्यापारी और उसकी पत्नी जो काशी में रहते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दुखी सी रहती थी और उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था. एक दिन उसे किसी ने कहा कि अगर वो संतान चाहती हैं, तो वह किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे. इससे उसको संतान प्राप्ति होगी. उसने यह बात अपने पति से कही, लेकिन पति को यह बात फूटी आँख ना भायी. पर व्यापारी की पत्नी को संतान प्राप्ति की चाह ने इस तरह से बाँध दिया था, कि उसने अच्छे बुरे की समझ को ही त्याग दिया और एक दिन एक बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने दे दी, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कई रोग हो गये. अपनी पत्नी की यह हालत देख व्यापारी बहुत दुखी था. उसने इसका कारण पूछा. तब उसकी पत्नी ने बताया कि उसने एक बच्चे की बलि दी. उसी के कारण ऐसा हुआ. यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया और उसने उसे बहुत मारा. पर बाद में उसे अपनी पत्नी की दशा पर दया आ गई और उसने उसे सलाह दी कि वो अपने इस पाप की मुक्ति के लिए गंगा में स्नान करे और सच्चे मन से प्रार्थना करे. व्यापारी की पत्नी ने वही किया. कई दिनों तक गंगा स्नान किया और तट पर पूरी श्रद्धा के साथ पूजा की. इससे प्रसन्न होकर माता गंगा ने एक बूढी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए और कहा उसके शरीर के सारे विकार दूर करने के लिए वो कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में आँवले का व्रत रख उसकी पूजा करेगी, तो उसके सभी कष्ट दूर होंगे.
व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि विधान के साथ पूजा की और उसके शरीर के सभी कष्ट दूर हुये. उसे सुंदर शरीर प्राप्त हुआ. साथ ही उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई. तब ही से महिलायें संतान प्राप्ति की इच्छा से आँवला नवमी का व्रत रखती हैं।