श्राद्धपक्ष पितृपक्ष में देव पूजन विमर्श -आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

श्राद्धपक्ष पितृपक्ष में देव पूजन विमर्श -आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी
सोमेश्वर नाथ महादेव के परम भक्त आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने कहा की हे सनातन धर्मावलम्बी महानुभावों !
विगत कुछ दिनों से अनेक विद्वानों द्वारा उक्त विषय पर लेख लिखने का परामर्श दिया जा रहा है । तथा बहुत से श्रद्धालु जन यह पूछते रहे कि पितृपक्ष में देवाराधन किया जाना चाहिए अथवा नहीं।
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस तरह के अविवेक का मुख्य कारण अज्ञ पंडित जनों का अशास्त्रविहित परामर्श तथा कुतर्क परायणों का मन मुखी विचार प्रवाह ही हो सकता है ।
आइए!/ हम शास्त्रीय विचार अत्यन्त संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हैं ।
हमारे सनातन धर्म मे स्वर्ग में रहने वाले जीव विशेष को देवता कहा जाता है ।
वह स्वर्ग दो भागों में विभाजित है (१)देव लोक (२)पितृ लोक ।
देवता भी प्रधानतः दो कोटि के हैं (१)त्रिदश देव (२)पितृदेव।
त्रिदश देव उत्तर स्वर्ग देवलोक मे रहते हैं जिनका राजा इन्द्र हैं।
अग्निष्वात,बर्हिषद् आदि पितृदेव गण दक्षिण स्वर्ग पितृ लोक में
रहते हैं जिनका प्रधान विश्वे देव हैं।
यही कारण है कि—-
ऊं देवताभ्य:पितृभ्यश्च महा योगिभ्य एव च ।
नम:स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
इस पितृ गायत्री मन्त्र में सर्व प्रथम देवताभ्यः स्वाहा तत्पश्चात् पितृभ्य: स्वधा का प्रयोग किया गया है । हम सभी सनातन वैदिक धर्मानुयायी गण अनादिकाल से देवर्षि पितृ अर्चन कर अपना परम कल्याण साधन करते रहे हैं।
यह श्राद्ध पक्ष है ( पितरों का विशेष पर्वोत्सव) जो पन्द्रह दिनों का होता है। इसमें सूतक का कोई प्रावधान नहीं है। पितृ देवों का विशेष पक्ष होने के कारण यह पितृ देवताओं के पूजन के लिए विशेष तथा अनिवार्य काल है । इसमें सूतक का कोई स्थान नहीं है । सूतक का जन्म ही नहीं होता अतः इस श्राद्धकर्म का नाम पार्वण श्राद्ध है ।
अत एव जितने भी पितृ भक्त हैं वे पितृ पक्ष में अपने पितरों को तर्पण आदि विधिवत करेंगे साथ ही अन्य दिनों की भांति मन्दिर में देव दर्शन, पूजन, पाठ, तथा समस्त अनुष्ठान आदि कार्य भी करेंगे।
यदि कोई यह कह रहा है कि पितृ पक्ष श्राद्ध पक्ष कहा जाता है अत:सूतक दोष होगा इसमें पूजा पाठ नहीं करना चाहिए यह सर्वथा गलत तथा अशास्त्रीय वक्तव्य अग्राह्य ही नहीं अपितु आवश्यक रूप से त्याज्य भी है ।
यह कहीं भी नहीं लिखा हुआ है कि पितृ पक्ष में तर्पण तथा पार्वण श्राद्ध करने वालों को पूजा, पाठ,जप,देवार्चन नहीं करना चाहिए।
किन्तु यह अवश्य लिखा गया है कि पितरों के साथ देवों की आराधना नहीं करने वालों का पितृ अर्चन अपूर्ण ही रहता है। इसलिए हमारा पितृ तर्पण तथा पार्वण श्राद्धकर्म पूर्णतया सफल हो, देवताओं की पूजा आवश्यक रूप से करनी ही चाहिए।
सभी लोग नियमानुसार पूजनादि समस्त धार्मिक कार्यों को करते हुए पितृपक्ष में तर्पण तथा पार्वण श्राद्ध करें यही शास्त्रीय मत है ।
यह श्रुति सुमन भारत के समस्त पितृ भक्तों को समर्पित।