पति-पत्नी के बीच अविश्वास नहीं होना चाहिए-रामविलास पाण्डेय

पति-पत्नी के बीच अविश्वास नहीं होना चाहिए-रामविलास पाण्डेय
श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में पहुंचे हिमांशु राय
गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील के भदेसर बैरान स्थित मठिया परिवार के द्वारा ठाकुर जी एवं मां सिद्धिदात्री की असीम अनुकम्पा एवं गुरु जी के सानिध्य में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ 13 मार्च को किया गया। कथा वाचक श्री रामविलास पाण्डेय जी के मुखारविंद से ज्ञान भक्ति एवं वैराग्य की कथामृत रूपी श्रीमद्भागवत कथा का रसपान 20 मार्च तक कराया जाएगा।13 मार्च को कलश यात्रा ज्ञान सरोवर भदेसर से कथा स्थल तक किया गया।मंडप प्रवेश पंचांग पूजन के पश्चात भागवत महात्म्य का वर्णन किया गया। व्यास पूजन सरजू राय मेमोरियल पी जी कालेज गांधीनगर गाजीपुर के प्रबंधक हिमांशु राय के द्वारा किया गया। कथा ब्यास रामविलास पाण्डेय जी ने सती वियोग की कथा को विस्तार से उपस्थित श्रोताओं को समझाते हुए कहा की पति-पत्नी के बीच अविश्वास नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा की
सीता के वियोग में दुखी थे श्रीराम, शिवजी के समझाने के बाद भी देवी सती ने ली श्रीराम की परीक्षा
कथा को विस्तार से समझाते हुए कथा व्यास ने कहा की शिव जी, देवी सती और श्रीराम से जुड़ा प्रसंग है। शिव जी श्रीराम को अपना आराध्य मानते हैं। एक दिन शिव जी देवी सती के साथ श्रीराम की कथा सुनकर लौट रहे थे। उस समय देवी सीता का रावण ने हरण कर लिया था और श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे।
शिव जी और सती को रास्ते में श्रीराम दिखाई दिए। श्रीराम सीता के वियोग में रो रहे थे। शिव जी ने श्रीराम को दूर से ही प्रणाम किया और देवी सती से कहा कि तुम भी भगवान को प्रणाम करो।
सती ने सोचा कि जो व्यक्ति रो रहा है, वह भगवान कैसे हो सकता है। ये बात सती ने शिव जी से कही। शिव जी ने समझाया कि ये सब श्रीराम की लीला है। आप श्रीराम पर संदेह न करें, वे भगवान ही हैं। बहुत समझाने के बाद भी सती नहीं मानीं।
शिव जी तो वहां से चले गए, लेकिन देवी सती ने सोचा कि वे श्रीराम की परीक्षा लेंगी। ऐसा सोचकर वे सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
जैसे ही सीता के रूप में सती श्रीराम के सामने पहुंची, श्रीराम ने उन्हें पहचान लिया, प्रणाम किया और पूछा कि देवी आप अकेली आई हैं, भगवान शिव कहां हैं।
श्रीराम की बात सुनकर सती लज्जित हो गईं और चुपचाप शिव जी के पास लौट आईं। शिव जी ने अपने ध्यान से जान लिया कि सती ने श्रीराम की परीक्षा ली है। इसके बाद शिव जी ने देवी सती का मानसिक त्याग कर दिया था। इस घटना के कुछ समय बाद देवी सती के पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में राजा दक्ष ने शिव-सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को बुलाया था। जब ये बात सती को मालूम हुई तो उन्होंने शिव जी से पिता के यहां जाने की अनुमति मांगी। शिव जी ने सती को समझाया कि हमें ऐसे आयोजन में बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए, लेकिन सती ने शिव जी की बात नहीं मानी और पिता के यहां यज्ञ में चली गईं।
सती जब यज्ञ स्थल पर पहुंची तो दक्ष ने सती के सामने ही शिव जी का अपमान करना शुरू कर दिया। सती ये सहन नहीं सकीं और यज्ञ कुंड में कूदकर देह त्याग दी।
इस कथा से हमें संदेश मिलता है कि पति-पत्नी के बीच अविश्वास नहीं होना चाहिए। अगर हम अपने जीवन साथी की बातों पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन बर्बाद हो सकता है।
इस संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन समस्त मठिया परिवार एवम पण्डित सीताराम तिवारी आई टी आई व एमएम पब्लिक स्कूल के द्वारा किया गया है। कार्यक्रम में ठाकुर जी एवम मां सिद्धिदात्री श्रद्धेय गुरु जी श्री गोपाल जी त्रिपाठी,
आचार्य मनमोहन तिवारी,
अमितेश तिवारी प्रबन्धक पण्डित सीताराम तिवारी प्राइवेट आई टी आई भदेसर बैरान,समेत सभी परिजन,एवं ग्रामवासी उपस्थित रहे।