तीज ब्रत के बारे मेँ आईये आप भी जाने क्या और कैसा है यह ब्रत

तीज ब्रत के बारे मेँ आईये आप भी जाने क्या और कैसा है यह ब्रत
भगवान शिव के लिए माता पार्वती ने भी किया था यह व्रत.भादव मास के तृतीया को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाता है.यह शिव एवम पार्वती के विवाह की संकल्प तिथि है.हरतालिका तीज व्रत का सामाजिक के साथ ही धार्मिक महत्व भी है.तीज के दिन ही पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने का व्रत लिया था.इसके लिए उन्होनेँ कठिन तपस्या की अंततः वे शिव को पति के रुप मे पाने मेँ सफल हुई.इसी वजह से कुंवारी कन्याएं भी तीज का व्रत रखती है जिससे इच्छित वर के साथ विवाह की उनकी कामना शिव और पार्वती पूरी करे.इसी दिन भगवान का वाराहावतार हुआ था.दक्ष के यज्ञ मेँ शरीर का त्याग करने के समय सती ने शिव से विवाह का संकल्प लिया था,हिमवान के घर वे पुनः जन्म लेती है और उनका नाम पार्वती रखा गया,महर्षि नारद ने पार्वती का ललाट एवम हाथ देखकर भविष्य बताया था जिसे गोस्वामी तुलसी दास ने लिखा है,वे उन्हे उमा अम्बिका भवानी के नाम से सम्बोधित करते है,नम उमा अम्बिका भवानी,सब लच्छन सम्पन्न कुमारी,होइहि संतत पियहि पियारी.सदा अचल एहिकर अहिवाता,एहि ते जसु पैहहिँ पितु माता.होइहि पूज्य सकल जग माही.एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं.एहिकर नाम सुमिरि संसारा,त्रिय चढ़िहहिँ पति व्रत असिधारा, नारद जी आगे हस्त रेखा के बारे मेँ कहते हैँ.जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगलवेश,अस स्वामी एहि कह मिलहि.परी हस्त अस रेख.नारद ने उपाय के रुप मेँ उन लक्षणो को शिव से जोड़ते हुए कहा था.जौ विवाह शंकर सन होई.दोषउ गुन सम कह सब कोई.जे जे बर के दोष बरवनि,तो सब शिव पहिँ मै अनुमाने.नारद के कथन एवम शिव पार्वती विवाह से स्पष्ट है कि ज्योतिष कभी गलत नहीं होती.माता मैना तो पति से यहां तक कह देती है कि यदि पार्वती के अनुकूल पति नहीँ मिलेगा तो.नत कन्या वरु रहउ कुंवारी कंत उमा मन प्राण पियारी.तब पिता हिमवान स्पष्ट कर देते है.वरुपावक प्रकटई ससिमाही नारद वचनु अन्यथा नाही.पार्वती तपस्या करती है.तृतीया की तिथि शिव पार्वती के विवाह का कारण बनती है.तभी से तीज ब्रत का पूरे विश्व मेँ प्रचलन हो गया।