पुरुषोत्तम मास में किया हुआ कर्म करोड़ों गुना फल देता है-फलाहारी बाबा
श्री माधव कुंज नया घाट अयोध्या में आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा में पूज्य फलाहारी बाबा ने अपने मुखारविंद से श्रीराम कथा रूपी अमृत वर्षा करते हुए (भाग्योदयेन बहुजन्मसमर्जितेन) की चर्चा करते हुए कहा कि जन्म-जन्मांतर जुग-जुगांतर कल्प कल्पांतर का जब पुण्य फलित होता है तब सत्संग रूपी अलभ्य लाभ से जीव लाभान्वित होता है। सत्संग से हमारे अंदर एक विवेक रूपी प्रकाश उदित होता है। जिसके माध्यम से सही और गलत का हम निर्णय कर पाते हैं। अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिकापुरी। द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायिका। सप्तपुरियों में सर्वोत्तम पुरी मोक्षदायिनी श्री अयोध्यापुरी श्री हरि नारायण भगवान का मस्तक है। उसमें भी पुरुषोत्तम मास उसमें भी पुरुषोत्तम श्री राम की कथा विशेष फलदाई होती है। चंद्रमा को 12 राशियों के चक्कर लगाने में 28 दिन लगते हैं जिसके कारण चंद्रमा का 1 वर्ष 354 दिन का ही होता है। सूरज एक राशि में 30 दिन रहता है। सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष में लगभग 10 दिन का अंतर 1 वर्ष में आ जाता है।3 वर्ष में लगभग 1 महीने का अंतर होता है। उस अंतर को पूरा करने के लिए पौराणिक काल से समान स्थिति लाने के लिए मलमास लगा करता है। हताश उदास निराश मलमास देवर्षि नारद को लेकर श्री हरि भगवान नारायण के पास जाकर अपने उपेक्षित जीवन की व्यथा जब सुनाया तो। श्री हरि नारायण कृपा करके वचन दिए कि हे मलमास तुम्हारे मास में किया हुआ कर्म अनंत गुना फल लेकर प्रगट होगा।तुम्हारा नाम मलमास नहीं पुरुषोत्तम मास होगा। जैसे
सीता विक्षिप्त बीजानि वर्धन्ते यथा कोटिशों।
तथा कोटिगुणं पुण्यं कृतं मे पुरूष पुरुषोत्तमे।
समय पर हल से बोया हुआ बीज अनंत गुना फल देता है वैसे ही पुरुषोत्तम मास में किया हुआ कर्म करोड़ों गुना फल देता है। प्रत्येक व्यक्ति को अधिक मास में कुछ ना कुछ विशेष अनुष्ठान साधना जप तप पूजा पाठ अवश्य करना चाहिए।(अधिकस्य अधिकं फलं) विशेष फल की प्राप्ति होती है। हमारा शरीर ही धर्म क्षेत्र है और कर्म ही खेती है।जैसा बुवाई करते हैं वैसा ही फल हमारे सामने प्रगट होता है। मां गंगा का अवतरण “यदि भगवान विष्णु के चरणों से है तो शारदा स्वरूपा परम कल्याणी मधुर मंगला मोक्षदा सरयू का अवतरण श्री हरि नारायण के नेत्र से है ।सरजू मैया साक्षात भगवान का आंसू यानी करुणा स्वरूपा है। जो भी सरयू में गोता लगता है सरयू नदी में नहीं बल्कि भगवान के करुणा में ही गोता लगता है (सरंति पापानि अनपा इति सरयू:।) जो पापों को नष्ट कर दे उसका नाम सरयू है। भगवान शंकर पार्वती से कहते हैं कि अयोध्या च परं ब्रह्म सरयु सगुण:पुमान। सरयू साकार ब्रह्म है।तन्निवासी जगन्नाथ: सत्यं सत्यं वदाम्हम्। अयोध्या का वासी भगवान जगन्नाथ का स्वरूप हो जाता है ।भगवान शंकर ने दो बार सत्यं सत्यं कहकर मोहर लगा दिया। रस्सी में एक गांठ देने पर गांठ को खोलने का भय रहता है किंतु दो गांठ दे दिया जाए तो गांठ पक्का माना जाता है।