अधिकमास में श्री पुरुषोत्तम भगवान् को प्रसन्न करने के लिये दीपदान का अत्यधिक महत्त्व है-आचार्य पण्डित अभिषेक तिवारी

अधिकमास में श्री पुरुषोत्तम भगवान् को प्रसन्न करने के लिये दीपदान का अत्यधिक महत्त्व है।
और यह बिना व्रत के, बिना तीर्थ के, बिना दान के, बिना प्रयास के दरिद्रता दूर करने वाला है – कर्तव्यं दीपदानं च पुरुषोत्तमतुष्टये।
तेन ते तीव्रदारिद्रयं समूलं नाशमेष्यति॥
आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने बताया की यदि सामर्थ्यवान हैं तो शुद्ध घी से करें। सम्भव नहीं तो तिल के तेल से करें। विधिहीन दीप-दान करने से भी मनुष्यों को लक्ष्मी की वृद्धि होती है। यदि पुरुषोत्तम मास में विधिपूर्वक दीप-दान किया जाय तो क्या कहना!
अवैधं दीपदानं हि रमावृद्धिकरं नृणाम्।
विधिना कियमाणं चेत्किं पुनः पुरुषोत्तमे॥
आचार्य अभिषेक तिवारी ने कहा की अधिकमास में किये दीपदान के महत्व के बारे में कहा गया है
वेदोक्तानि च कर्माणि दानानि विविधानि च ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
तीर्थानि सकलान्येव शास्त्राणि सकलानि च ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
योगो ज्ञानं तथा साङ्ख्यं तन्त्राणि सकलान्यपि ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
कृच्छ्रचान्द्रायणादीनि व्रतानि निखिलानि च ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
वेदाभ्यासो गयाश्राद्धं गोमतीतटसेवनम् ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
उपरागसहस्राणि व्यतीपातशतानि च ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
कुर्वादिक्षेत्रवर्याणि दण्डकादिवनानि च ।
पुरुषोत्तमदीपस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ॥
वेद में कहे हुए कर्म और अनेक प्रकार के दान पुरुषोत्तम मास में दीप-दान की सोलहवीं कला की भी समता नहीं कर सकते। समस्त तीर्थ, समस्त शास्त्र पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला को नहीं पा सकते हैं । योग, दान, सांख्य, समस्त-तन्त्र भी पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला को नहीं पा सकते। कृच्छ्र, चान्द्रायण आदि समस्त व्रत पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की समता नहीं कर सकते। वेद का प्रतिदिन पाठ करना, गयाश्राद्ध, गोमती नदी के तट का सेवन पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की समता नहीं कर सकते । हजारो उपराग, सैकड़ो व्यतीपात पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला के तुल्य नहीं हो सकते। कुरुक्षेत्रादि श्रेष्ठ क्षेत्र, दण्डक आदि वन पुरुषोत्तम मास के दीप-दान की सोलहवीं कला की समता नहीं कर सकते।
अधिकमास में शुद्ध घी का अखण्ड दीपक जलाने का भी विधान है –
दीपः कार्यस्त्वखण्डश्च यावन्मासं च सर्पिषा।
पुरुषोत्तमस्य प्रीत्यर्थं सर्वार्थफलसिद्धये॥
पुरुषोत्तम मास पर्यन्त घृत का अखण्ड दीप समस्त फल की सिद्धि के लिये और पुरुषोत्तम भगवान् के प्रीत्यर्थ समर्पण करें ।
दीपदान कहाँ करें?
किसी भी मंदिर, गौशाला, नदी, तालाब, घर, छत आदि पर कहीं भी करें। बिना विधि के, बिना शास्त्र के जो पुरुषोत्तम मास में जिस किसी स्थान पर भी दीप-दान करता है. वह इच्छानुसार फल को प्राप्त करता है ।
विना विधिं विना शास्त्रं यः कुर्यात् पुरुषोत्तमे ।
दीपं तु यत्र कुत्रापि कामितं सर्वमाप्नुयात्॥