आषाढ़ पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने गुरू पूर्णिमा पर्व पर कहा की सीखने और सिखाने की परंपरा न हो तो ज्ञान एक ही जगह पर ठिठक जाएगा। यही वजह है कि जीवन में गुरु की महत्ता है। कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था। उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है। अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह। आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है। जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों। शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं। उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी। यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।
गुरू के प्रति आभार का पर्व गुरु की महत्ता को समर्पित इस पर्व को व्यास पूर्णिमा या मुड़िया पूनों भी कहा जाता है। इस दिन कई श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत परिक्रमा देते हैं। बंगाली साधु सिर मुंडाकर परिक्रमा करते हैं क्योंकि आषाढ़ पूर्णिमा को ही चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ था। ब्रज में इसे ‘मुड़िया पूनों”कहा जाता है। यह अपने गुरु की पूजा का दिन है। उनसे जो भी कुछ पाया है उसके लिए आभार व्यक्त करने का दिन है। यूं तो ‘व्यास’ नाम के कई विद्वान हुए हैं परंतु वेदव्यास को आदिगुुरु माना जाता है। वे ही वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है।