समस्त इंद्रियों को भगवान में लगाना ही एकादशी व्रत है-फलाहारी बाबा

समस्त इंद्रियों को भगवान में लगाना ही एकादशी व्रत है-फलाहारी बाबा
गाजीपुर जनपद के भांवरकोल ब्लाक के पलिया में गंगा तट पर स्थित हनुमान मंदिर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में अयोध्या से पधारे मानस मर्मज्ञ भागवतवेत्ता महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी उपाख्य फलाहारी बाबा ने अपने मुखारविंद से ज्ञान एवं वैराग्य की कथामृत की वर्षा करते हुए कहा की
समस्त इंद्रियों को भगवान में लगाना ही एकादशी व्रत है। पांच ज्ञानेंद्रियां एवं पांच कर्मेंद्रियां तथा एक मन जिस दिन भगवान में लग जाए उसी दिन आपके लिए एकादशी व्रत हो जाता है ।उप समीपे वसति इति उपवास:। भगवान के नजदीक सामीप्य सन्निकट निवास करते हुए नाम का उच्चारण और स्वरूप का स्मरण ही वास्तव में उपवास है ।वैष्णवों के लिए सबसे बड़ा पर्व एकादशी पर्व होता है। एकादशी व्रत करने वाले राजा अंबरीष की रक्षा भगवान नारायण का चक्र सुदर्शन किया। बामन भगवान की कथा सुनाते हुए फलाहारी बाबा ने कहा कि दान से बढ़कर दानी होता है दान के साथ-साथ दानी यदि स्वयं को भगवान के प्रति समर्पित कर दे तो भगवान उसके पहरेदार बन जाते हैं। राजा बलि ने दान के साथ-साथ स्वयं को जब दान कर दिया तो भगवान को दरवान बनना पड़ा लक्ष्मी को झाड़ू लगाना पड़ा। धर्म का चार पैर सत्य तप दया और दान है। सतयुग का अंत आते आते सत्य त्रेता का अंत आते आते तप द्वापर के अंत आते-आते दया रुपी पैर कट गया राजा परीक्षित के आख्यान से कलयुग में केवल दान पर ही धर्म खड़ा है। दान यदि अहंकार रहित हो तो हो तो कल्याण निश्चित है। श्रीमद्भागवत के रंतिदेव के जैसा यदि गृहस्थ धर्म के नियम का पालन करते हुए ,अतिथि देवो भव, को जीवन में चरितार्थ किया जाए तो भगवत प्राप्ति हो जाती है। भगवान का अवतार दुर्जनों के लिए नहीं केवल सज्जनों के लिए होता है। देवकी और वसुदेव जैसा जिसका भी दांपत्य शुद्ध और विशुद्ध हो जाए तो दांपत्य का माध्यम बनाकर ईश्वर निरंकार से नराकार अव्यक्त से अभिव्यक्त उरवासी से उदरवासी, हृदय से निकलकर आंखों के सामने प्रगट हो जाता है।
फलाहारी बाबा के मुखारविंद से सरल सरस भागवत के करुण ध्रुव प्रसंग सुनकर सबकी आंखें गीली हुई तो वहीं पर प्रहलाद और नरसिंह का प्रसंग सुनाकर बाबा ने कहा कि आजकल के पुत्र जो पिता का अपमान करते हैं उनको प्रहलाद और हिरण्यकश्यप का प्रसंग अवश्य पढ़ना सुनना चाहिए। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को इतना असह्य दुख दिया था उसके उपरांत भी प्रह्लाद ने भगवान से अपने पिता की गति और मुक्ति मांगी। जो माता-पिता का अनादर करता है वह कितना भी आगे बढ़ जाए किंतु समाज में उसका सम्मान नहीं होता। बारिश होने के उपरांत भी भीगे हुए पंडाल में श्रोता भागवत कथा का रसपान करने के लिए डटे रहे बड़े धूमधाम से नंदोत्सव मनाया गया।
भागवत का पूजन अयोध्या से आए संतोष दिक्षित तथा हरेंद्र उपाध्याय ने कराया एवं भागवत कथा को सफल बनाने के लिए संतोष चौधरी, विनोद राय, मनरखन यादव, पारस यादव, घुरहू यादव,योगेंद्र राय, प्रहलाद राय, रमेश राय, फुन्नू राय, बब्बन यादव, अखिलेश उपाध्याय, हीरालाल यादव, राजेश यादव, ज्योति यादव,रामनिवास यादव, विश्वनाथ राम, विक्रम राम, दयाशंकर यादव,लगे हैं।