धर्म की यदि हम रक्षा करते हैं तो धर्म हमारी रक्षा करता है-फलाहारी बाबा

धर्म की यदि हम रक्षा करते हैं तो धर्म हमारी रक्षा करता है-फलाहारी बाबा
वाराणसी के पड़ाव के बगल में डुमरी में अयोध्या से पधारे महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास उपाख्य फलाहारी बाबा ने अपने मुखारविंद से कहा की
महाभारत युद्ध नहीं समर्पण की महान गाथा है वृकोदर भीम की गदा ने जब दुर्योधन की कमर तोड़ डाली तो द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा महाभारत के रणांगण और समरांगण में आकर घायल दुर्योधन से पूछा मित्र मैं क्या सहायता कर सकता हूं। दुर्योधन ने कहा कि मित्र जब तक पांचो पांडव जिंदा है तब तक मैं चैन से मर भी नहीं सकता। अश्वत्थामा ने वचन दिया कि आज की रात पांचों पांडवों की अंतिम रात होगी।रात के अंधेरे में गया और और द्रोपदी के पांचों सोए हुए पुत्रो का सिर काटकर दुर्योधन को दे दिया। दुर्योधन ने जब पंजों से दबाया तो कच्चे घड़े की तरफ पांचों सिर्फ फुट गए। हताश उदास दुर्योधन ने कहा कि अरे अश्वत्थामा तूने तो पांडवों के वंश को ही मिटा डाला ।अर्जुन जब अश्वत्थामा को पकड़ कर ले गया है द्रोपती के सामने तो रोती हुई द्रोपदी ने कहा कि मुच्यताम् मुच्यताम् एस ब्राह्मणो नितरां गुरु:। छोड़ दो छोड़ दो यह ब्राह्मण है उसमें भी गुरु पुत्र है। पुत्र का वियोग मां के सिवा और कोई नहीं जान पाता और अश्वत्थामा तो मां कृपी का इकलौता पुत्र है। इसे छोड़ दो छोड़ दो। द्रोपदी अग्नि पुत्री है और सीता धरती पुत्री है दोनों पर अत्याचार हुआ है। दोनों सही है परंतु अंतर यह है कि द्रोपदी बोलकर सही है और सीता मौन होकर सही है। महाभारत के समरांगण में दोनों सेनाओं के मध्य भगवान कृष्ण के मुख से गीता के श्लोक का पहला शब्द निकला है धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे। महाभारत का युद्ध धन दौलत के लिए नहीं बल्कि धर्म के लिए हुआ है। धर्म के लिए युद्ध भी करना पड़े तो वह युद्ध धर्म बन जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को धन से ऊपर उठकर धर्म की रक्षा के लिए भी विचार करना चाहिए। धर्म की यदि हम रक्षा करते हैं तो धर्म हमारी रक्षा करता है। परीक्षित के जन्म की कथा सुनाते हुए महामंडलेश्वर फलाहारी बाबा ने कहा कि भक्तों की रक्षा करने के लिए भगवान को यदि गर्भ जैसे नरक में भी जाना पड़े तो भगवान जाने को तैयार हो जाते हैं। उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके भगवान कृष्ण ने चक्र सुदर्शन से परीक्षित की अश्वत्थामा के द्वारा छोड़े हुए ब्रह्मास्त्र से रक्षा की। भगवान करुणा का सागर और दया का महासागर होता है। अकारण ही जीव पर कृपा करके दया करता रहता है। बस थोड़े से समर्पण की आवश्यकता है।करुण स्वर में परमात्मा को पुकारने में देर है। ईश्वर को आने में विलंब नहीं होगा। परमात्मा की कृपा पाने के लिए भजन करने की आवश्यकता है।भक्ति करने का कोई उम्र नहीं होता। ध्रुव जी 6 वर्ष की उम्र में भजन करके परमात्मा की प्राप्ति की है। प्रहलाद बाल्यावस्था में ही भजन शुरू कर दिया। भविष्य किसी ने देखा नहीं है वर्तमान का सदुपयोग करना ही बुद्धिमानी है। श्रीमद्भागवत महापुराण के मुख्य जजमान रितेश कुमार सिंह और उनकी माता श्री ने बताया कि नित्य संध्या 5:00 से 8:00 तक एक 11 जून तक यह कथा चलेगी