ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन का अस्तित्व हुआ समाप्त

ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन का अस्तित्व हुआ समाप्त

गाजीपुर- गंगा इस पार को गाजीपुर शहर की ओर से निहारने वाले लोगों के लिए 01 फरवरी 2023 का दिन ऐतिहासिक पल था, जब उन्होंने अपने क्षेत्र में पहली बार इलेक्ट्रिक इंजन को दौड़ते देखा। पूरे 141 साल बाद जब दिलदारनगर- ताड़ीघाट रूट पर डीटी पैसेंजर विद्युत इंजन के साथ दौड़ी। ताड़ीघाट स्टेशन अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए हैं। कभी इसका नाम स्टेशन की शुरुआत करने वाले अंग्रेज प्रशासक टेरी के नाम पर रखा गया था,तो गुलाबों की महक की ख्याति सुनकर गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद जैसी महान विभूतियों ने भी बिल्कुल वीराने में बने इस स्टेशन तक यात्रा करके आए।

ताड़ीघाट रेलवे स्टेशन का नाम ताड़ीघाट नहीं था इसका नाम टेरी घाट था जो बाद में ताड़ीघाट हो गया। ब्रिटिश काल में ईस्ट इंडिया कंपनी के कारोबार को गति देने के उद्देश्य से गंगा के किनारे एक रेलवे स्टेशन बनवाया और उसे पटना जाने वाली रेल लाइन से दिलदारनगर मे जोड़ दिया। इससे कोलकाता से आने वाले सामान यहां उतरते थे। ताड़ीघाट रेलवे लाइन 1880 में बनाई गई थी तथा इसकी लम्बाई 19 किमी थी। 5 अक्टूबर 1880 में अंग्रेज प्रशासक टेरी द्वारा स्टेशन का शुभारंभ किया गया। उसके नाम से ही इसका नाम टेरी घाट पड़ा था। बताया जाता है कि गाजीपुर जिले में 3 चरणों में रेलवे सेवाएं शुरू हुई। इन सारे प्रोजेक्ट के मैनेजर ईस्ट इंडिया रेलवे के कमीशन ऑफिसर टेरी थे।जिले में सबसे पहले 1862 में जमानिया, भदौरा, गहमर प्रोजेक्ट शुरू हुआ।इसके बाद दिलदारनगर,नगसर, ताडीघाट प्रोजेक्ट 18 80 में पूरा हुआ। 1902 में गाजीपुर औडिहार ,बलिया प्रोजेक्ट पूरा हुआ।अंग्रेज सरकार इसे गाजीपुर घाट तक ले जाना चाहती थी। अंग्रेज सरकार ने इसके लिए प्रोजेक्ट को 1882 में प्रोविंशियल रेलवे कमेटी की निगरानी में ताड़ीघाट से गाजीपुर घाट प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया गया। तत्कालीन मुद्रा मे 8500 रूपये में इसका टेंडर पास हुआ और 1912 तक इसे बनकर तैयार होना था।इस समय स्वतंत्रता आंदोलन अपने शबाब पर होने के चलते इसे रोक दिया गया। दिलदारनगर से ताड़ीघाट के संबंध में डब्लू इरविन की गाजीपुर गजेटियर पृष्ठ संख्या 34, नेविल के गाजीपुर गजेटियर खंड संख्या 29, पृष्ठ संख्या 121 और फिसर एन्ड गिल के गाजीपुर गजेटियर के खंड संख्या 29 भाग संख्या 2,पृष्ठ संख्या 58 पर विवरण मिलता है।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने ताड़ीघाट-गाज़ीपुर घाट प्रोजेक्ट को 1882 में शुरू किया था वह तो शुरू होते ही ठप्प गया पर अब 135 साल बाद उस पर फिर काम शुरू हुआ और तेजी से निर्माण कार्य जारी है। तब स्वतंत्रता आंदोलन के चलते अंग्रेज सरकार इस प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पाई , उसके बाद यह प्रोजेक्ट पटेल आयोग के संज्ञान में आया। आयोग की संस्तुति के आधार पर पिछली सरकार ने वर्ष 2014 में तत्कालीन रेल राज्य मंत्री व गाजीपुर के सांसद मनोज सिन्हा की कोशिश से करीब 135 साल बाद प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ। वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताड़ीघाट से मऊ रूट और गंगापुर रेल कम रोड ब्रिज का शिलान्यास किया। इसे मऊ रेलवे रूट से जोड़ा जा रहा है। इसके बन जाने से कोलकाता की तरफ से आने वाली गाड़ियां भी इस वैकल्पिक मार्ग से पूर्वांचल में भी जूड़ जाएंगी।

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