राजनीति समाज को तोड़ने का काम करती है जबकि धर्मनीति समाज को जोड़ने का काम करती है-स्वामी राजनारायणाचार्य
राजनीति समाज को तोड़ने का काम करती है जबकि धर्मनीति समाज को जोड़ने का काम करती है,इसलिए सदैव ही राजनीति धर्मनीति से नियंत्रित होनी चाहिए।उक्त बातें पूर्वांचल पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी राजनाराणाचार्य ने बेबाक भारत न्यूज से बातचीत के दौरान कही। स्वामीजी ने कहा कि वर्तमान में बिहार सरकार की घिनौनी राजनीति चिंता का विषय बन रही है। बिहार में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ श्रीरामचरितमानस को नफ़रत फैलानेवाला ग्रन्थ कहकर बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री ने भारत के अट्ठासी करोड़ हिन्दू जनता का अपमान कर राष्ट्रद्रोह का कार्य किया है। ये राजनैतिक दल के लोग समाज में विघटन पैदा करके देश को कमजोर करने पर लगे हुए हैं जिससे सावधान रहना चाहिए।जातीय विद्वेष को बढ़ावा देकर धर्म परिवर्तन कराने के उद्देश्य से ही बिहार में जातीय जनगणना कराया जा रहा है।
आजकल वर्ण को जाति कहा जा रहा है।
श्रीमद्भागवत के अनुसार मनुष्य जाति तो एक ही है,जबकि वर्ण चार है जो जन्म पर आधारित है।
स्वजातीय विवाह के लिये सनातनधर्म की आज्ञा है ; विद्वेष करने के लिये नहीं। ध्यातव्य है कि भगवान् मनु की संतान होने से हमलोग मानव या मनुष्य कहलाते हैं।श्रीरामचरितमानस में वर्णित भगवान् श्रीराम की गुहराज भील से मैत्री,केवट पर कृपा,शबरी के घर बिना बुलाये जाकर बेर का फल भोजन के रूप में ग्रहण करना सनातनधर्म की मर्यादा है। भगवान् श्रीराम अयोध्या से सेना न बुलाकर बन्दर,भालुओं को संगठित करके राक्षस संस्कृति का विनाश करते हुए भारतीय संस्कृति का विजयध्वज फहराये हैं।
श्रीरामचरितमानस की चौपाई या दोहों का अर्थ प्रकरण के अनुसार किया जाता है । यदि स्वयं ग्रंथ या पुस्तकों को पढ़ने से ही ज्ञान हो जाता तो स्कूल,कॉलेज,विश्वविद्यालय बनाने की आवश्यकता है।
श्रीरामचरितमानस का दिव्य संदेश पर ध्यान दें-
सियाराममय सब जगजानीं।
करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥
की श्रीरामचरितमानस सभी जाति,प्रजाति,प्राणियों में श्रीभगवान् का दर्शन करते हुए आदर करने की आज्ञा देता है। सनातनधर्म के अनुसार किसी भी जाति का व्यक्ति दलित,मलीन या अछूत नहीं होता है।
ज्ञातव्य है कि वर्ण एवं आश्रम की मर्यादा के आलोक में हम सभी हिन्दू एक हैं,नेक रहने का हमारा संकल्प है ।
वैदेशिक मिशनरियों से पैसे खाकर हम सभी को लड़ाने का कुत्सित प्रयास हो रहा है, इसलिए सनातनधर्म को विघटित होने से बचाने के लिए संकल्प लेना ही सामयिक धर्म है।