जिस घर मे श्रीमद्भागवत गीता,रामायण पुराण आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़े जाते है वहा से सारे कष्ट कोसो दूर भाग जाते है-स्वामी राजनारायणाचार्य

जिस घर मे श्रीमद्भागवत गीता,रामायण पुराण आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़े जाते है वहा से सारे कष्ट कोसो दूर भाग जाते है-स्वामी राजनारायणाचार्य
पौराणिक नगरी बक्सर के ब्रह्मपुर प्रखंड के निमेज गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के पांचवे दिन पूर्वांचल पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी राजनाराणाचार्य जी महाराज ने श्रीकृष्ण भगवान के जन्म की कथा को आगे बढ़ते हुए गोबर्धन पूजा के महत्त्व और 56 प्रकार के भोग की चर्चा करते हुए भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए कहा की एक बार ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा करने के लिए एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रहे थे। कृष्ण ने नंदबाबा से पूछा कि यह आयोजन क्यों किया जा रहा है?तब नंदबाबा ने कहा कि इस पूजा से देव राज इंद्र प्रसन्न होंगे और वह अच्छी बारिश देंगे। कृष्ण ने कहा कि वर्षा तो इंद्र का काम है, उनकी पूजा क्यों करें। पूजा करनी हो तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करें क्योंकि इससे फल और सब्जियां प्राप्त होती हैं और पशुओं को चारा मिलता है। तब सभी को कृष्ण की बात पसंद आई और सभी ने इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन की पूजा करना शुरू कर दिया।
इंद्रदेव ने इसे अपना अपमान माना और वे क्रोधित हो गए। क्रोधित इंद्रदेव ने ब्रज में भारी बारिश की , हर तरफ पानी नजर आ रहा था। ऐसा नजारा देखकर ब्रजवासी घबरा गए, तब कृष्ण ने कहा कि गोवर्धन की शरण में जाओ, वह हमें इंद्र के प्रकोप से बचाएगा। कृष्णजी ने अपने बाएं हाथ की उंगली से पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी से कहा तुम लोग भी अपनी अपनी लाठी डंडे का सहारा दो और पूरे ब्रज की रक्षा की।
भगवान कृष्ण ने 7 दिनों तक बिना कुछ खाए गोवर्धन पर्वत को अपने अंगुली पर उठाते रक्खा। जब आठवें दिन बारिश थम गई और सभी ब्रजवासी गोवर्धन पहाड़ से बाहर आ गए। सब समझ गए कि कान्हा ने सात दिन से कुछ नहीं खाया है। सभी गोपो ने पूछा यशोदा से की आप लल्ला को कैसे भोजन कराती हो और उन्होंने बताया की वो दिन में आठ बार आठ पहर अपने लल्ला को भोजन कराती है। तब गोकुल निवासियों ने भगवान कृष्ण के लिए कुल छप्पन प्रकार के भोज्य सामग्री तैयार किए, प्रत्येक दिन के आठ पहर के अनुसार सात दिनों को मिलाकर 56 भोग में वही व्यंजन होते हैं जो भगवान श्री कृष्ण कन्हैया को पसंद थे।
माना जाता है कि तभी से यह 56 भोग परंपरा शुरू हुई थी। आज की कथा में भगवान को 56 भोग लगाया गया।गीता के महत्व की चर्चा करते हुए स्वामीजी ने कहा कि जिस घर मे श्रीमद्भागवत गीता,रामायण पुराण आदि धार्मिक ग्रंथ पढ़े जाते है वहा से सारे कष्ट कोसो दूर भाग जाते है।