जिसने चरणों की पूजा की उसका भी कल्याण जिसने नहीं माना वैर किया उसका भी उद्धार-स्वामी राजनारायणाचार्य

जिसने चरणों की पूजा की उसका भी कल्याण जिसने नहीं माना वैर किया उसका भी उद्धार-स्वामी राजनारायणाचार्य
भगवान से जुड़ने से मंगल ही मंगल होता है। चाहे भगवान से दोस्ती कर लो चाहे वैर कर लो। जिसने चरणों की पूजा की उसका भी कल्याण जिसने नहीं माना वैर किया उसका भी उद्धार। इसलिये भगवान को दयालु कहा गया है। भगवान के श्री रविन्द्र चरण कमलों में जिसने भी अपने को अर्पित कर दिया जिसने अपने मन को ईश्वर में लीन कर लिया।
उसे प्रभु की कृपा अवश्य मिलती है। इसलिये मन को मजबूत करे। उक्त बातें निमेज ग्राम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में देवरिया पीठाधिश्वर स्वामी राजनारायणाचार्य जी महाराज उपस्थित श्रोताओं से ज्ञान एवं वैराग्य की श्रीमद्भागवत कथा रूपी अमृत का रसपान कराते हुए कही। श्रीमद्भागवत कथा को आगे बढ़ते हुए भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा सुनाए। उन्होनें कहा कि जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए।
दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- ‘अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी। प्रभु ने सब मार्ग को सुलभ कर दिया।
चंचल चित से भोग विलास का सुख नहीं मिल पाता
स्वामी जी कहते है मन कभी तृप्त नही होता।अतिशय भोग विलास करने से चित चंचल हो जाता है और चंचल चित से भोग विलास का सुख नही मिल पाता।उन्होंने कहा कि चित संतो के चरणों मे अनुराग पैदा करने से स्थिर होता है। इसलिये मन काबू में नहीं होगा तो वासना उत्पन्न होती है एवं भगवान के चरणों मे ध्यान लग जाये उसे उपासना कहते है।