June 19, 2025

पाप से मुक्ति के लिये श्रीमद्भागवत की कथा सुननी चाहिये-स्वामी राजनारायणाचार्य

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पाप से मुक्ति के लिये श्रीमद्भागवत की कथा सुननी चाहिये-स्वामी राजनारायणाचार्य

बक्सर जनपद के ब्रह्मपुर
प्रखंड के निमेज गांव में श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ तिरूपति मंदिर भक्ति वाटिका देवरिया के पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी राजनाराणाचार्य के मुखारविंद से गुरुवार को प्रारंभ हुआ।सर्वप्रथम श्रीमद्भागवतजी एवं ठाकुर जी की झांकी निकली गयी जो कि गांव के मुख्य मार्ग से होते हुए पुनः कथा स्थल पर पहुची।कथा के आयोजक धीरज ओझा द्वारा सर्व प्रथम श्रीमदभागवतजी एवं ठाकुर जी की आरती उतारी गयी। तत्पश्चात कथावाचक स्वामी राजनारायणाचार्य जी महाराज का गणमान्य लोगों ने फूल माला पहनाकर स्वागत किया।कथा का शुभारंभ दोपहर तीन बजे से प्रारंभ हुआ जो शाम सात बजे तक चला।स्वामीजी ने श्रीमद्भागवत के महात्म्य के बारे में उपस्थित सज्जनों को बिस्तार से बतलाया।उन्होंने कहा कि जन्मों जन्मों का पुण्य जब फलित होता है, ठाकुर जी की जब असीम कृपा होती है तो व्यक्ति श्रीमद्भागवत की कथा सुनता है।श्रीमद्भागवत की कथा सुनने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते है।श्रीमद्भागवत कोई पुस्तक नहीं, कोई साधारण ग्रंथ नहीं, श्रीमद्भागवत तो भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात वांग्मय स्वरूप है। स्वामीजी कहते है- “भगवता प्रोक्तं इति भागवतं “भगवान नारायण ही भागवतजी के प्रथम प्रवक्ता हैं।
भगवान नारायण ने सर्वप्रथम भागवत कथा ब्रह्मा जी को सुनाई, जिसे कहते है चतुश्लोकी भागवत। ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र नारद जी को सुनाई, नारदजी ने व्यास जी को सुनाई! व्यासजी ने उसका विस्तार किया, व्यास का एक अर्थ विस्तार भी है। तो व्यासजी ने विस्तार किया, भागवत को बारह (12) स्कन्ध और 335 अध्याय तथा 18000 श्लोकों का विस्तार किया।फिर व्यासजी ने यह भागवत कथा अपने ही पुत्र शुकदेव जी को सुनाई, और शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाई, और उसी समय यह कथा सूतजी ने सुनी, तो सूतजी ने शौनकादि सहित 88000 ऋषियों को भागवत कथा सुनाया।इस तरह से यह कथा परंपरागत रूप से आज आप भी इस कथा का रसपान कर रहें हैं।कर्म और अकर्म के बारे में स्वामीजी ने कहा कि जो मनुष्य अपने माता पिता की सेवा करे है वो कर्म है और जो उन्हें दुःख देते है अकर्म है।कर्मो का फल मनुष्य को अवश्य भोगना पड़ता है।मृत्यु अटल सत्य है।अगर हम छोटी सी यात्रा करते है तो यात्रा के लिये तमाम इंतजाम करते है लेकिन मृत्यु के बाद जो महायात्रा करनी है इस महायात्रा के लिये हम क्या इंतजाम करते है ये भी सोचना है।इसलिये मनुष्य जितने पाप करता है उस पाप से मुक्ति के लिये उसे श्रीमद्भागवत की कथा सुननी चाहिये।

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